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देवदास नामक दो कवियों के दो भिन्न-भिन्न हनुमान चरित
0 डा. ज्योति प्रसाद जैन 'विद्यावारिषि'
जनवरी १९८१ में विदिशा के श्री राजमल मडवैया 'हनुमान चरित' का परिचय दिया था। उनके कथनानुसार ने 'पवन पुत्र हनुमान चरित्र' शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित इस रचना को हनुमानरासा भी कहते हैं, वह २००० के की थी जिसको 'श्री कविवर ब्रह्मदेवदास रचित' सूचित लगभग दोहा चौपाई आदि छंदों में निबद्ध है, ग्रन्थ का किया है। रचना को सवत् १८३४ (सन् १७७७ ई०) मे कथा भाग बडा ही रोचक है, इसके कर्ता ब्रह्मचारी कवि प्रतिलिपि कराकर किन्ही डालचन्द्र के पुत्र गनपतराय
देवदास है जो मालदेश की भट्टारकीय गद्दी के अधिद्वारा माकवाही के जैन मन्दिर मे दान की गई हस्तलिखित जा . लितकोनि मिले और aiane प्रति पर से प्रकाशित किया गया है। इस रचना मे सब हो जाने पर उक्त आर्यब्रह्म देवदास ने सवत १६८१ की मिला कर ८४७ दोहा-चोपाई आदि है । ग्रथान्त के ८४०- साख सुदी : गुरुवार के दिन राइसेनगढ के चन्द्रप्रभु ८४३ चार पद्यो में ग्रन्थकार ने अपना परिचय दिया है कि चैत्यालय मे इस ग्रन्थ की रचना की थी। पडित जी द्वारा मल ग्रन्थ के शारदागच्छ मे मुनि रत्नकीति हुए, जिनके
उद्धत ग्रन्थ की अन्त्य प्रशस्ति की १८ चौपाइयो मे कवि शिष्य मुनि अनन्तकीति थे। इन अनन्तकीर्ति के शिष्य
ने मालवा देश में स्थित पर्वत पर निर्मित उक्त राय सैन ब्रह्म देवदास थे जिन्होने सवत १६१६ की बैसाख कृष्ण
गढ नामक दुर्ग का, उसके चन्द्रप्रभु चैत्यालय, अन्य मठ नवमी के दिन प्रस्तुत 'हनकथा' रचकर पूर्ण की थी।
मदिर देवल आदि भवनो का, तालाब, बापिका, कूप, बाग स संक्षिप्त परिचय के अतिरिक्त कवि ने अपने बरेजो आदि का, वहा बसने वाले पौरापाट, गजरवानी, विषय मे और कोई सूचना नही दी है-अपने जन्म स्थान पोसवार, गोलापूर्व, गोलालारै लमेनू आदि विभिन्न निवास स्थान, ग्रन्थ के रचना स्थल, किनकी प्रेरणा से यह जातीय जैनीजनो का, अपने गुरु भद्रारक ललितकीति का रचना की है, इत्यादि कोई उल्लेख नही किया। ग्रन्थ के तथा ग्रन्थ रचना की उपरोक्त तिथि आदि का उल्लेख अंत में दो दोहो मे किसी प्रतिलिपिकार ने माघ शुक्ल
किया है । ग्रन्थकर्ता ने स्वय अपना नाम 'आर्य ब्रह्म कवि दोयज चन्द्रवार को उक्त प्रति के लिखने की सूचना दी है- देउदास दिया है। पडित जी ने ग्रंथ के कुछ प्रकरण भी संवत् तथा अपना अन्य कोई परिचय नही दिया है। अन्त उद्धृत किए हैं, यथा रावण द्वारा सती सीता को फुसलाने में छपा है 'इति था हनूमान चरित्र सम्पूर्ण'। कहा नही जा के लिए निपुणमति नामक दूती का, तदनन्तर अपनी पटसकता कि वह मूल रचनाकार की पुष्पिका है, या प्रति- रानी मन्दोदरी का भेजा जाना, उन दोनो के साथ सीताजी लिपिकार को अथवा वर्तमान प्रकाशक मडवैया जी की। के साथ रोचक सवाद तथा अन्ततः विफल मनोरथ होकर इस प्रकार भ० अनन्तकीति के शिष्य ब्रह्मदेवदास नामक लौटना आदि । प० परमानद जी ने ग्रन्थ का उपरोक्त कवि की इस पहन कथा' (९४७ छंद परिमाण) का रचना परिचय आदि शाहगढ (जिला सागर) के शास्त्रभंडार के काल सन् १५५६ ई० है।
एक जीर्ण गुटके में प्राप्त प्रति पर से दिया था। इस प्रकार शोधांक ६ फरवरी १९६०) २ पृष्ठ २१४-२२० पर आर्य ब्रह्म कवि देउदाम कृत प्रस्तुत हनुमान चरित या हसुप्रकाशित अपने हिंदी भाषा की अप्रकाशित नवीन रच- मानरासा (लगभग २००० छद परिमाण) का रचनाकाल नाएं' के अन्तर्गत स्व. पं० परमानन्द जैन शास्त्री ने एक सन् १६२४ ६० है।