SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि स्वयंभू विषयक शोध-खोज - विद्यावारिधि डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन अपभ्रंश भापा के सुप्रसिद्ध महाकवि स्वयंभू के विषय जनरल, भा० १ सन १९३५ मे प्रकाशित अपने लेख स्वयंभू में गत साधिक साठ वर्षों में पर्याप्त लिखा गया है । उक्त एण्ड हिज टू पौइम्स इन अपभ्रंश' मे कविवर और ऊहापोह एवं शोध खोज से तद्विषयक अध्ययन की प्रगति उनके दोनों महाकाव्यो का परिचय दिया, तथा डा. का परिचय प्राप्त होता है और प्रतीत होता है कि अभी एच. डी. वेलकर ने कवि के छंद ग्रन्थ का अन्वेषण भी स्वयभू विषयक अध्ययन अपूर्ण हो है। करके उसका उपलभ्य भाग रायल एशियाटिक सोसाइटी कविवर का सर्व प्रसिद्ध महाकाव्य 'पउमचरिउ को बम्बई शाखा के जर्नल (नई सीरीज), भा-२, सन अपरनाम 'रामायण' है जिसके बल पर उनकी गणना मात्र १९३५-३६, में प्रकाशित कराया। प्रो० मधुसूदन मोदी अपभ्रश भाषा के ही नही, समस्त भारतीय साहित्य के का गुजराती लेख 'अपभ्र श कवियो चतुर्मुख स्वयभू अने सर्वोपरि महाकवियो में की जाती है। गोस्वामी तुलसीदास त्रिभुवन स्वयभू' १९४० मे भारतीय विद्या' नामक से सैकड़ो वर्ष पहले से, तथा स्वय उनके समय मे भी उत्तर पत्रिका के वर्ष १ अक २-३ मे प्रकाशित हुआ। उन्होने भारत में स्वयंभू रामायण का प्रभूत प्रचार था। इस ग्रन्थ चतुर्मुख और स्वयंभू को अभिन्न समझने की भूल की । पं. की अनेक प्रतिया १५-१६वी शती ई० की ग्वालियर नाथूराम जी प्रेमी ने भारतीय विद्या (व. २ अ-१) मे आदि के शास्त्र भंडारो में प्राप्त हुई है। कवि का दूसरा प्रकाशित अपने लेख तथा १९४२ मे प्रकाशित अपनी महाकाव्य 'रिट्ठणे मिचरिउ' अपरनाम 'हरिवश पुराण' पुस्तक 'जैन साहित्य और इतिहास' के प्रथम संस्करण के है, तीसरी कृति उनकी पद्धडियावद्ध 'पंचमीचरिउ' (नाग- महाकवि स्वयभू और त्रिभुवनस्वयंभू' शीर्षक निबध (पृ. कुमार चरित) हैं जो अद्यावधि अनुपलब्ध है । स्वयभू ३७०-४६५) मे मोदी जी की उक्त भूल का निरसन किया छन्द नाम से उन्होने अप्रभंश भाषा का एक छन्द शास्त्र तथा पिता-पुत्र कविद्वय के संवन्ध मे विस्तृत ऊहापंह की भी रचा था और एक अपभ्र श व्याकरण (स्वयभू व्या- और दोनो महाकाव्यो के आद्य एव अन्त्य पाठ भी उद्धृत करण) भी रचा बताया जाता है। कई अन्य छोटी-छोटी किए। महापडित राहुल सास्कृत्यायन ने १९१ मे रचनाओं के उल्लेख भी मिलते है यथा 'शुद्धय चरित' या प्रकाशित अपने प्रथ हिन्दी काव्यधारा' में स्वयंभू रामायण 'सुब्वय चरित', एक स्तोत्र, आदि। के कई काव्यात्मक अवतरण उदघत करते हुए प्रथम श्रेणी ___आधुनिक युग में १८२० ई. के लगभग डा०पी० के महाकवि के रूप में उनका समुचित मूल्याकन किया डी० गुणे ने कवि स्वयभू की खोज सर्व प्रथम की थी। और यह भी इंगित किया कि गोस्वामी तुलसीदास के उनके उक्त लघु परिचय के आधार से मुनिजिनविजय जी रामचरितमानस पर स्वयभू रामायण का प्रभूत एव प्रत्यक्ष ने इन कविवर की ओर विद्वतगण का ध्यान आकृष्ट किया प्रभाव रहा। प० परशुराम चतुर्षेदी और डा. त्रिलोक और पं० नाथूराम प्रेमी ने भी जुलाई १९२३ के 'जैन नारायण ने भी अपने लेखो आदि में स्वयभ् तथा उनके साहित्य समालोचक' में प्रकाशित अपने लेख 'महाकवि महाकाव्य की चर्चा की । किन्तु राहुल जी तथा उक्त पुष्पदंत और उनका महापुराण' में स्वयंभू के पउमचरिउ दोनों विद्वानों की कई प्रान्त धारणाएं भी रहीं। की चर्चा की। १९५२-१९६२ में डा. एच. सी. भायाणी मे तीन तदनन्तर प्रो० हीरालाल जैन ने नागपुर यूनीवर्सिटी हस्तलिखित प्रतियों के आधार से स्वयंभू के पउमचरित के
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy