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________________ वर्ष ३७, कि०४ अब से परिचित थे। परिचय में आने के इनके दो ही जो कि मैं यह ग्रन्थ लिखकर प्रस्तुत कर सका।" अपसरात होते हैं । प्रथम तो यह कि कवि रघु के कवि विनय गुण के धनी थे, मानी नहीं, निरभिमानी समान ग्वालियर या उसके किसी निकटवर्ती क्षेत्र निवासी थे। ऐसे सुन्दर काव्य की रचना करके भी वे स्वयं को हों और वे रहधू की साहित्यक गतिविधियों से भी परिचय जड़मति कहते हैं। काव्य मे हुयी अर्थ और मात्रा की रहे हैं, जो कालान्तर में रोहतक आ बसे होंगे क्योकि हीनाधिकता के लिए वे न केवल श्रुतदेवी से क्षमा याचना प्रस्तुत कृति में उपलब्ध बुन्देली शब्द उपलब्ध होते हैं। कराते हैं अपितु विवुधजनों से भी। आचार्य अमितमति ने दूसरी यह सम्भावना भी उदित होती है कि रइधू की कृति भी इसी प्रकार की क्षमा याचना की है। अतः प्रतीत पासवाहचरिउ हो सकता है किसी अन्य व्यक्ति द्वारा होता है कि इस प्रसंग में कवि ने पूर्व रीति का भली भांति रोहतक ले जायी गयी हो। यदि इस संभावना को ठीक निर्वाह किया है। मानते हैं तो इससे भी कवि का ग्वालियर या उसके प्रस्तुत ग्रन्थ में कवि ने एक ओर जहां आत्मपरिचय निकटवर्ती क्षेत्र का होना ज्ञान होता है, क्योंकि अन्य किसी प्रत्यक्ष रूप से न के बराबर दिया है, दूसरी ओर अन्य रचना की पंक्तियों का स्वरचित पंक्तियो के रूप में कवि के प्रेरक का उल्लेख सविस्तार किया है। उन्होंने लिखा तभी उपयोग करेगा जब उसे यह विश्वास प्राप्त होकि है कि जिनकी प्रेरणा एव निवेदन पर यह ग्रन्थ रचा गया अपत पंक्तियों के लेखक को इससे कोई अप्रसन्नता न होगी। था, वे चौधरी देवराज वैश्यों में प्रधान, अग्रवाल कि यह तभी संभव है जब परस्पर में अति आत्मीयता कुलोत्पन्न, सिघल (संगल) गोत्री, रोहतक निवासी थे। रोता विना HIT या निकट बाम चौधरी चीमा जिनकी गाल्हाही नाम की भार्या थी, के संभव दिखाई नहीं देती। अतः इस सभावना से भी देवराज चौधरी के प्रपितामह थे। चीमा को चूल्हा नाम कवि का ग्वालियर या किसी उसके निकटवर्ती क्षेत्र का । से भी सम्बोधित किया गया है। करमचन्द जिनकी भार्या निवासी होना ज्ञात होता है।। का नाम दिवचन्दही था, देवराज के पितामह थे। रचना के अन्त में कवि ने लिखा है कि "परम्परा से करमचन्द के तीन पुत्र हुए थे-महणा गैरवण और जिसशात जिमचन्द्र सुरि ने सिद्ध किया था, उसे सूत्र रूप ताल्हू । इनमें महणा के चार पुत्र हुए थे-देवराज,मामू में मैंने सुन्दर एवं सुगम-सुखद भाषा में इस कृति को चुगना और छुट्टा या छुटमल्लु । इन चारो की मां का मिबद्ध किया है।" इस उल्लेख से कवि माणिक्कराज नाम खेमाही था। देवराज और उनकी भार्या णोणाही से जिनचन्द्र सूरि के विशेष कृतज्ञ रहे ज्ञात होते हैं। हो दो पुत्र हुए थे - हरिवश और रतनपाल । हरिवंश की सकता है जिनचन्द्र कवि के विद्या गुरु और पचनन्दि भार्या का नाम मेल्हाही और रतनपाल की भार्या का नाम पीक्षागुरु रहे हों। भूराही था । देवराज के छोटे भाई मा की चोचाही रचना में कवि देव, शास्त्र और गुरु तीनों के श्रद्धालु नाम की भार्या थी। इन दोनों के तीन पुत्र हुए थेजात होते हैं। इस ग्रन्थ के मादि में कवि ने येव के रूप नागराज, गेल्ड और चामो । नागराज की भार्या का नाम में तीकरों का नामस्मरण किया ही है। गुरुपरम्पराका सूबटही था। देवराज के दूसरे छोटे भाई चुगना और उल्लेख कर गुल्मों के प्रति जहां कषि ने कृतज्ञता प्रकट उसकी भार्या दूगरही के चार पुत्र हुए थे-बेतसिंह, की है वहां वीर जिनेन्द्र के मुख से निकसित सारभूत श्रीपाल, राजमल्ल मोर कुंवरपाल । देवराज के सबसे भटारिका सरस्वती से प्रमाद वश किये गए भागम विरुद्ध छोटे भाई जिन्हें संभवतः सबसे छोटा होने कारण छुट्टा कथन के प्रति या कोई अक्षर रह गया हो तो उसके प्रति छुटमल्लु कहा गया कहा गया होगा, उनकी भार्या का क्षमा याचना भी की है। अपने ही इतर अम्प में उन्होंने नाम फेराही था। इन दोनों के एक ही पुत्र हमापा, सरस्वती की सुषदेवी (श्रुतदेवी) भी कहा है।" गुरुश्रवा जिसका नाम था दरगहमल्ल । प्रकट करते हुए उन्होंने लिखा है कि यह गुरु कृपा ही है रोखण देवराज चौधरी के पिता महणा का अनुष
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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