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क्या राजा श्रेणिक ने आत्म-हत्या की थी ?
(लेखक-रतनलाल कटारिया, केकड़ी।
नीचे जैन ग्रन्थों के आधार से इस पर समीक्षात्मक मे क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर तीर्थकर प्रकृति का बन्ध विचार किया जाता है :
किया। (१) भगवद् गुणभवकृत उत्तरपुराण पर्व ७४ के उपान्त्य (४) ब्र० नेमिदत्त कृत कथाकोश कथा नं० १६ और में लिखा है :
१०७ मे भी ठीक प्रभाचन्द्र कृत कथाकोश के अनुसार श्रावकोत्तम श्रेणिक ने गौतम गणधर से पुराण श्रवण वर्णन है। कर क्रमश: उपशम क्षायोपशमिक और क्षायिक सम्यक्त्व
(५) रामचन्द्र मुमुक्षु कृत-पुण्याश्रव कथा कोश पृष्ठ प्राप्त किया। फिर गणधर देव ने बताया कि हे-श्रेणिक
३२ से ६१ मे लिखा है - तूं तीर्थकर नाम कर्म का बन्ध करेगा, नरकायु बद्ध होने से
निर्वासित श्रेणिक अपने साथी के साथ भागवतधर्मी प्रथम नरक जावेगा फिर वहां से याकर महापप नामा
जठराग्नि (भोजन भट्ट) के मठ मे पहुचे। जठराग्नि ने तीर्थकर होगा।
उन्हें भोजन कराया और वे उसके धर्म मे दीक्षित हो गए। (२) हरिषेणकृत कथाकोश कथा नं ६ और ५५ में वैष्णव धर्मी जठराग्नि की परीक्षा लेकर रानी चेलना ने लिखा है :
उन्हें मिथ्या पाया। एक दफा राजा श्रोणक ने यशोधर राजाश्रेणिक चेलना से विवाह करने के पूर्व भागवत- मुनि के गले में सर्प डाला जिससे उन्हे नरकायु का बन्ध वैष्णव धर्मी थे। उन्होने यमधर मुनिराज पर घोर उपसर्ग हुआ। मुनि द्वारा आशीर्वाद देने पर णिक उनके भक्त किया जिससे नरकायु का उन्हे बन्ध हुआ। फिर मुनि- हो गए उन्हें उपशम सम्यक्त्व और जाति स्मरण भक्ति से सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई। देवों ने भी उनके त्रिगुप्ति मुनियों से वेदक सम्यक्त्व और महावीर स्वामी क्षायिक सम्यक्त्व की परीक्षा कर उन्हें मुक्ताहार भेंट से क्षायिक सम्यक्त्व तथा तीर्थकर प्रकृति का बन्ध प्राप्त किया। उन्होंने तीर्थकर प्रकृति का बन्ध किया। वीर किया। श्रेणिक के क्षायिक सम्यक्त्व की देवो ने परीक्षा निर्वाण के बाद ३ वर्ष ८॥ मास व्यतीत होने पर मनो- ली और प्रसन्न हो श्रेणिक और चलिनी की पूजा की वांछित महान भोगो के भोगकर राजा श्रेणिक नरक उनका अभिषेक किया और उन्हे वस्त्राभूषण प्रदान गये।
किये। मानसेष्टान्महाभोगान् भुक्त्वाकालं विहाय च । श्रेणिक ने कुणिक को राजा बना दिया फिर भी
पूवोक्त श्रेणिको राजा सीमन्त नरकं ययौ ॥३०८॥ उसने उन्हें लोहे के कटघरे मे बन्दी बना दिया। अपनी (३) प्रभाचन्द्र कृत कथाकोश कथा नं० २१ तथा 80- माता से अपने प्रति श्रेणिक के अपार स्नेह की बातें सुनकर ३१ में लिखा है :
कुणिक अपने पिता को बन्धन-मुक्त करने दौड़ा । श्रेणिक राजाणिक वैष्णवधर्मी थे उन्होंने यशोधर मुनि ने उसे मलिन-मुख आता देखकर विचार किया यह दुष्ट राज पर उपसर्ग कर नरकायु का बन्ध किया फिर उनसे मुझे न जाने क्या और दुख देगा, तलवार की धार पर तत्व सुनकर उपशम सम्यक्त्व प्राप्त किया। त्रिगुप्ति गिरकर प्राणान्त कर लिया। कुणिक ने शोक के साथ मनियों से वेदक सम्यक्त्व और महावीर स्वामी के पादमूल अग्नि संस्कार कर ब्राह्मणो को खब दान दिया।