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4० शिरोमणिरात की "धर्मसार सता"
उपर्यक्त प्रशस्ति से हमें पं० शिरोमणिदास के बारे प्रस्तुत कृति बड़ी ही रोचक और मार्मिक है तथा में अच्छी खासी जानकारी प्राप्त हो जाती है फिर भी साहित्यिक एवं तात्विक दृष्टि से अति विवेचनीय है। जिन भट्टारकों का उल्लेख पण्डित जी ने किया है इसमें दोहा, चोपाई, कवित्त, छप्पय आदि छन्दों का उनके विषय में भी संक्षिप्त-सी जानकारी बावश्यक है। प्रयोग किया गया है जो बड़े ही मनोहारी है। गिनने में क्योंकि सकलकीति नाम के कई भट्टारक विद्वान् हुए है केवल ७५५ छंद सात सन्धियों में प्राप्त हुए पर कवि के अतः प्रस्तुत भ० सकल कीति जी बलात्कारगण की जेरहट लिखे अनुसार कुल छन्द संख्या ७६३ है । अस्तु पांचशाखा के प्रमुख आचार्यों में से एक थे। आपने स०१७११ आठ छन्दों का अन्तर गिनने मे ही निकल मावेगा । संपूर्ण में एक मूर्ति प्रतिष्ठित की थी जो परवारमदिर (नागपुर) अप सात सन्धियों में विभाजित है जो निम्न प्रकार है:मे।म० १७१२ में प्रतिष्ठित भ० पार्श्वनाथ की मूति १. राजा श्रेणिक प्रश्नकरण नाम वर्णन की प्रथम बाजार-गांव (नागपुर) मे है। सं. १७१३ की प्रतिष्ठित
सधि छन्द सख्या मूर्ति भ. पाश्र्वनाथ की नरानपुर में है। पौरा जी
२. सम्यक्त्व महिमा वर्णन द्वितीय सन्धि छंद संख्या ५६ स्थित एक मूर्ति सं० १७१८ को आपने ही प्रतिष्ठित की
३. ५३ क्रिया वर्णन नाम तृतीय सधि छंद संख्या १९४ थी। महार जी स्थित षोडकारण यंत्र सं० १७२० में
४. कर्म विपाक फल वर्णन नाम च० " " १४८ आपने ही प्रतिष्ठित किया था। विस्तृत जानकारी के लिए
' ५. तीर्थकर (जोगीस्वर) धर्म महिमा वर्णन नाम पंचम भट्टारक सम्प्रदाय के पृष्ठ २०२ से २०८ तक देखें।
सधि छद सख्या प्रस्तुत कृति की तीन-चार पाडुलिपियां प्राप्त होती है
६. तीर्थकर (जोगीश्वर) गर्म, जन्म, तर, ज्ञान वर्णन हैं । एक तो मेरे पास है जो करेरा निवासी सेठ मक्खन
नाम षष्ठम सधि छन्द सख्या लाल जी वस्त्र विक्रेता ने दी है। वे बह ही सरल परि. ७.तीर्थकर (जोगीश्वर) मोक्षगमन वर्णन नाम सप्तम णामी, उदार हृदय एवं धार्मिक जीव है, वे जितने
सन्धि छन्द संख्या धर्मानुरागी हैं उतने ही साहित्यानुरागी भी है मेरे साथ बैठकर घण्टों धार्मिक चर्चा करते हैं । यह प्रति १६/c.m लम्बी और ११॥c. m' चौड़ी है। इसमें ८९ पत्र हैं प्रस्तुत कृति को कई विशेषणयुक्त नामो से उल्लिखित प्रत्येक पत्र पर ११-११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पक्ति में किया गया है जैसे धर्मसारपंथ, धर्ममारचौपाई, धर्मसार छंद २३-२४ अक्षर हैं प्रति स्पष्ट और सुवाच्य है तथा रचना
बद्ध आदि-आदि । जब मैंने प्रस्तुत कृति का गम्भीरतापूर्वक काल के १६० वर्ष बाद की है। प्रस्तुत पाडुलिपि गुट के
अध्ययन-मनन किया, तो मुझे इसमे "बिहारी सतसई" के की आकृति जैसी है अतः इसमे दिशाशूल के दिन, सम्यक्त्व
कुछ तत्वों के दर्शन प्राप्त हुए । सर्वप्रथम तो जैसे बिहारीके २५ दोष, पंचमंगल, बिनदर्शन पाठ आदि कई छोटी• दास की एक ही कृति प्राप्त है उसी तरह पं. शिरोमणिछोटी रचनायें भी संग्रहीत है।
दास की एक ही कृति उपलब्ध है। सम्भव है शोष-खोज इसके अतिरिक्त एक प्रति आरा में होनी चाहिए करने पर कोई और कृति प्राप्त हो जावे । दूसरे यह सात जिसके आधार पर स्व.पं. नेमीचन्द्रजी ज्योनिषाचार्य ने संधियों में विभाजित है, तीसरे इसमें सात सौ प्रेसठ छंदों लिसाइनके अतिरिक्त तीन प्रतियों का उल्लेख राज- की रचना । चौथे छन्दों के अर्थों की गम्भीरता, लालित्य स्थान सूची भाग ४ में उपलब्ध होता है। इनमें से एक एवं अलंकार युक्त छन्दोबद्धता ने मुझे बहुत प्रभावित प्रति सं० १७६४ की लिखी हुई है जो रचनाकाल के किया और सहसा मेरा मन इस कृति को 'धर्मसार सतसई केवल १२ वर्ष बाद ही की है जो सम्भवत: अधिक प्रामा- लिखने के लिए उल्लसित हो उठा । पाठक ! मेरी इस णिक-और संपादन के लिए उपयुक्त होनी चाहिए। धृष्टता को क्षमा करेंगे और यदि 'मतसई नाम अनुपयुक्त