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________________ स्थानीय संग्रहालय पिछोर में संरक्षित जैन प्रतिमाएं नरेश कुमार पाठक अम्बिका का आलेखन इस कलाकृति की विशेषता है । पर्श्वनाथ- स्थानीय संग्रहालय पिछोर (जिला ग्वालियर) की स्थापना सन् १९७६-७७ ईस्वी सन् में मध्य : देश शासन के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा जिला पुरातत्व संघ ग्वालियर के सहयोग से भूतपूर्व पिछोर रियासत के एक प्राचीन भवन में की गई। इसमे ग्वालियर एव चम्बल सम्भाग के विभिन्न स्थानों से मूर्तियाँ एकत्रित की गई है, जो धार्मिक मान्यताओ के आधार पर शैव, शाक्त, वैष्णव एवं जैन धर्म से सम्बन्धित है। जैन धर्म से सम्बन्धित प्रतिमाओं का विवरण इस प्रकार है :आदिनाथ प्रथम तीर्थङ्कर आदिनाथ की दो उल्लेखनीय प्रतिमा संग्रहालय मे सरक्षित है। जो मालीपुर से प्राप्त हुई हैं । प्रथम प्रतिमा (सं० क्र० e ) कायोत्सर्ग मुद्रा में अपने लांछन वृषभ सहित शिल्पाकित है। दोनो ओर चावरधारी परिचारक एव चावरधारिणी का अंकन है। प्रतिमा के सिर पर कुन्तलित केशराशि लम्वे जटा एव पीछे प्रभामण्डल सुशोभित है। वितान में त्रिछत्र, दुन्दभिक व मालाधारी विद्याधरों का अंकन है। परिकर मे जिन प्रतिमा, गज, सिंह तथा मकर व्यालो का आलेखन है। पादपीठ पर धर्मचक्र जिसके दोनो ओर सिंह आकृतियाँ अकित है । आदिनाथ की दूसरी प्रतिमा में [सं० क्र० १० ] पद्मासन की सौम्य एवं शान्त मुद्रा मे तीर्थङ्कर आदिनाथ अपने ध्वज लांछन वृषभ सहित निर्मित है। सिर पर कुन्त लित केशराशि तथा लम्बे जटाओं एव वक्ष पर 'श्री वत्स' का आलेखन कलात्मक है। मुख्य प्रतिमा प्रभामण्डल से सुशोभित है । पार्श्व में दोनो ओर चामरधारी परिचारक खड़े है । वितान में त्रिछत्र, दुन्दभिक और परिकर में गज, सिंह व मकर व्यालों का शिल्पांकन है। आसन पर धर्मचक्र दोनों ओर सिंह आकृतियां और परिचरों का अंकन है। पादपीठ पर दायी ओर मानवीय गरुड़ के ऊपर यक्षणी चक्रेश्वरी बायी ओर सिंह पर सवार यक्षणी अम्बिका है, जो अपने दायें हाथ में लघु-पुत्र प्रियंकर को लिये है । ऊपर आम्र लुम्बी अंकित है। प्रतिमा मूर्ति विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । क्योंकि आदिनाथ के साथ यक्षणी मालीपुर से ही प्राप्त दो प्रतिमा तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की संग्रहालय में सरक्षित है। प्रथम प्रतिमा में योगासन मुद्रा मे [स० ऋ० १] पादपीठ पर बैठे है। सिर पर कुन्त लित केशराशि ऊपर सप्तपर्ण नागमौलि की छाया है । पार्श्व में दायें-बायें चावरधारिणी एवं चावरधारियों का अंकन है । पादपीठ पर दायें-बायें यक्ष धरणेन्द्र एव यक्षणी पद्मावती अकित है । आसन पर दोनों ओर सिंह आकृति तथा मध्य में धर्मचक्र अंकित है । वितान में हाथियों द्वारा अभिषेक का दृश्य परिकर मे गज, सिंह एवं मकर व्यालों का आलेखन है । पार्श्वनाथ की दूसरी प्रतिमा [सं० क्र० २] में कायोमर्ग मुद्रा में खड़े हुए तीर्यकर के सिर पर कुन्तलित केशराशि, ऊपर सप्तफण नाग मौलि की छाया है । वितान में त्रिछत्र, दुन्दभिक, मालाधारी विद्याधर युगल, हाथियों द्वारा किये जा रहे अभिषेक का दृश्य अकित है । पादपीठ पर दायें यक्ष धर्णेन्द्र एवं बायें यक्षणी पद्मावती अकित है । दोनों ओर परिचारिकों का आलेखन है । लांछन विहीन तीर्थंकर - संग्रहालय में लांछन विहीन तीर्थङ्कर की तीन पद्मासन में एवं चार कायोत्सर्ग मुद्रा में निर्मित प्रतिमाएं संरक्षित हैं । मालीपुर-सुजवाया से प्राप्त तीर्थङ्कर प्रतिमा पद्मासन [सं० क्र० ३ ] में शिल्पांकित है। मूर्ति के सिर पर कुन्तलित केशराशि पीछे आकर्षक प्रभावली, दोनों पार्श्व में सिर विहीन चावरधारियों का अंकन है। आसन पर भग्न अस्था में यक्ष-यक्षणी, मध्य में धर्मचक्र एवं सिंह आकृतियों का अंकन है । वितान में दायें ओर अभिषेक करता हुआ हाथी व विद्याधर युगलों का अंकन है । दोनों पार्श्व में दो जिन प्रतिमा अकित है। परिकर में सिंह एवं मकरव्यालो से अलकृत है । पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में निर्मित दूसरी मूर्ति नरवर [सं० ० ४] प्राप्त हुई प्रतिमा के सिर पर कुन्तलित केशराशि, वक्ष पर 'श्री वत्स' का अंकत है । दोनों
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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