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जंन न्याय के सर्वोपरि प्रस्तोता - श्रीमद् भट्टाकलंकदेव
विक्रमाक शकाब्दीय शतसप्त प्रमाजुषि । कालयतिनो बौद्धवादी महानभूत ॥
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६. एम० ए० आर०, १६२३, पृ० १५ (१०वी शती), एपी० कर्णा० भा० २, न० ६४, पृ० १७ व न० ६७ आदि । प्रथकारों मे प्रभाचन्द्र श्रीचन्द्र वादिराज अजितसेन, अजित ब्रह्म, शुभचन्द्र आदि ।
१०. एपी० कर्णा० भा० २, न० ६७ पृ० २७, ६० बं० गो० इन्सीक० न० ५४ आफ ११२६ ई० । ११. हीरालाल, केट० मेनुकट्स भूमिका पृ० २६ व १९ यह कथाकोश अब भा० शा० पीठ से प्रकाशित है। १२. देखिए, राईस, मैसूर एण्ड कुर्ग, पृ० २०० - २०१
एम० ए० आर०, १६१८, पृ० ६८ । १३. प्रमस्ति सह (आरा, १९४२), १०१। १४. पीटरसन रिपोर्ट न० २, पृ० ७१. अल्लेकर, राष्ट्रकूटाज एड देवर टाइम, पृ० ४०६ ।
१५. क० मेकेजी कलेक्शन आफ मेनुस्क्रिप्ट्म (कंट०, भ० ३० ४२३-३६) ।
१६.दी मे जीवन्स भूमिका पृ० ४० १७. क्लासीफाईड कंट आफ तमिल प्रिन्टेडबुक्म १८६५ पृ. ६५-६६ ।
१८. ए स्केच आफ दी डायनेस्टीज आफ माउथ इंडिया, पृ० ७३ ।
१६. इन्स० एट ५० वे० गो० (बगनोर १८६६ ), भूमिका पृ० ४५, मैसूर इन्सक्रि० १० ५६, पप रामायण, पृ० ३ - राईम को तिथि सूचक श्लोक का कोई ऐसा पाठ प्राप्त हुआ प्रतीत होता है जिसमे मत प्रमाजुषि के स्थान मे 'सप्तरी नाद्रि' शब्द रहे । किन्तु यदि उक्त पाठ मे कुछ सत्याश है तो उसे विक्रम संवत् का वर्ष ही मानना उचित था । अर्थात् वि० स० ७७७= सन् ७२० ई०, और तब वह अकलकदेव की अन्तिम उत्तरावधि का सूचक हो सकता है २०. इस तिथि को न मान्य करने वालों में एम० के० आयगर ८५५ ई० के पक्ष मे रहे (एन्शेन्ट इंडिया पृ २६९), आर० जी० भंडारकर ७७० ई० के (रिपोर्ट १८८६, पृ० ३१), स० च० विद्याभूषण ७५० ई० के (हिस्ट० मेडि० इडि० लाजिक पृ० २६), नाथूराम
प्रेमी ५३७५६० (जन हितंची भा० १२ १०७ ८) के० बी० पाठक ७४४-८२ ई० ( एनल्स बी० ओ० आर० आई०, भाग ११, न०२, पृ० १५३), अल्लेकर ७०० ई० (राष्ट्रकूटाज पृ० ४०६), महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य (न्याय कु० च० भा० १, प्रस्ता० ) ७२०-८० ई० के पक्ष मे रहा ।
२१. डा० स० च० विद्याभूषण पूर्वोक्त पृ० २६ । २२. जर्नल भडारकर ओ०रि० इ० भा० ११, न० २, पृ० १५५ ।
सन् १९०५ मे ही मद्रास के गवर्नमेंट एपीगेपिस्ट ने रामेश्वर मन्दिर के शि० से० मे उरिचित 'साह सत्तुग' का आशय राष्ट्रकूट दन्ति दुर्ग में हो सकता है । यह सम्भावना व्यक्त की थी और यह भी कि सभयनया अकलकी अनुभूति का साहसत्तुम भी वही नरेश है (एपी रिपोर्ट, मदन सरकिल फार १९०५, पृ० ४९) इस तिथि रहित हित एवं त्रुटिन अभिलेख को जो दन्ति के समय से कम से कम दो सौ वर्ष पश्चात् अकित कराया गया था। डा० बी० ए० सालतोर ने अपना आधार बनाकर साहमतुग का समीकरण राष्ट्रकूट दन्तिदुर्ग के साथ कर दिया (दी एज आफ गुरु अकलक-अनंत बाम्बे हिस्टोरिकल गोमावरी ०६० १०-१३) ।
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२३ अनेकर पूर्वक पृ० ४०६, उपाध्ये, जर्नल भडारकर ओ० नि० ई० भा० १८ पृ० १६४ ।
२४ एम० श्रीक शास्त्री ६४५ ई० - (जर्मन भंडारकर बी० वि०६० भा० १२ २०३ ०२५५), ० जुगलकिशोर मुख्तार - ६४० ई० (स्वामी समन्तभद्र, पृ० १२५) ए० एन० उपाध्येय, ७वी शती ई० का अन्तिम पाद (जर्नल भडारकर भा० १८, पृ० १६४, फु० नो०)।
२५. न्यायकुमुदचन्द्र भाग २, प्रस्तावना ।
२६. वही, तथा उसी के प्रथम भाग को, अकलक-प्रन्थत्रय की व राजवातिक की प्रस्तावनाए एस० सी० चोपाल की परीक्षामुखम् की भूमिका, पाठक एवं विद्याभूषण के पूर्वोक्त सदर्भ आदि । २७. वही। २८. बड़ी
[शेष पृ० १२ पर]