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विश्व शान्ति में भ० महावीर के सिवान्तों की उपादेयता
तन्त्रता की प्रजातंत्रात्मक घोषणा की। उन्होंने एक बहु- व्यक्ति अहिंसक अपने आप हो जाता है। अहिंसा केवल मूल्य सिद्धांत का शंखनाद किया, अस्तित्व की दृष्टि से निवृति परक साधना नहीं, यह व्यक्ति को सही रूप में सभी जीव स्वतन्त्र व आत्मशक्ति की अपेक्षा समान है। सामाजिक बनाने का अमोघ मन्त्र है। हिसा व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक विषमताओं का कारण कर्म है। मानस से सीधा सम्बन्ध रखती है मानसिक हिंसा का दोष जीव अपने ही कारण से संसारी है और अपने ही कारण द्रव्य हिंसा से कम नही। हिंसा से पाशविकता का जन्म मुक्त हो जायेगा।
होता है अहिंसा से मानवीयता व सामाजिकता का । भगवान मानवतावादी थे। वे जाति को मल्य नही भीतर मे चलने व पलने वाली हिंसा बाहर की हिंसा देते थे। सम्प्रदाय व जाति से हटकर उनका धर्म राज- से कहीं अधिक भीषण व खतरनाक होती है। बाहर की मार्ग से जाता है। इस राजमार्ग पर सभी को चलने का हिंसा हमे उतना नही जलाती जितनी की भीतर की हिंसा समान रूप में अधिकार है। महावीर के धर्म को हम जोड़ने पल-पल मे तिल-तिलकर हमे जलाती है। वर्तमान में चलने वाला धर्म कहेंगे, यह विभिन्न जातियों एवं धर्मों को जोडता वाले शीत युद्ध इसलिए सबसे अधिक खतरनाक तषा है। सबको एक साथ मिलकर चलने, रहने व जीने का भीषण है कि वे हमें ही नही हमारी संस्कृति को भी धीरेअधिकार देता है। यह प्राणी मात्र का धर्म है सभी प्राणियों धीरे मिटाते जा रहे हैं, बाहर से भले ही वे क्रूर व बर्दनाक मे एक जैसे सुख-दुख की बात करने वाला धर्म है। न दिखते हो किन्तु उनमें निरन्तर हिंसा का लावा धधकता
भगवान ने समस्त जीवो पर मंत्री भाव रखने एव रहता है। समस्त ससार को समभाव से देखने का निर्देश दिया। हम नहीं जानते कि आने वाला कल कैसा होगा, उन्होने कहा जाति की कोई विशेषता नही । प्राणी मात्र किन्तु हमें यह प्रत्यक्ष रूप मे दिखलाई पड़ रहा है कि हिंसा आत्मतुल्य है इसलिये सबके प्रति मैत्री भाव रखे। यह के नित नए औजार बनते जा रहे हैं। इनके प्रयोग करने आन्तरिक समानता का धर्म है । अहिंसा धर्म का अनुयायी के तरीके बदलते जा रहे हैं, जब तक राग-द्वेष की भट्टी वही बनता है जिसके अन्तःबाह्य दोनो समता पर अब जलती रहेगी तब तक मनुष्य दमन, शोषण व अत्याचार लम्बित हो।
से विमुक्त नही हो सकता। अध्यात्म ही उसे सुख व शांति ___अखिल विश्व के पाप समूह एव अश:ति के कारणों प्रद
प्रदान कर सकता है। जिस किसी भी क्रिया के साथ राग को यदि वर्गीकरण किया जाय तो पांच होगे। हिंसा मूठ,
द्वेष मूलक आवेश होगा वहाँ नियम से प्रतिक्रिया होगी चोरी, कुशील व (अत्यधिक) परिग्रह । आज जो सर्वत्र
और प्रतिक्रिया पुन. प्रतिक्रिया को जन्म देगी। इस प्रकार अशांति व्याप्त है वह केवल इन पाच अनैतिक कारणो से हिंसा युद्ध-संघर्ष तथा अशांति से शांति व सुख मलक है। बहुमुखी पतन एवं अशाति की विभीषिका मे अहिंसादि समाधान नहीं होगा । यदि हम वास्तविक शांति चाहते हैं पांचों सिद्धांत अवश्य ही सम मार्ग का प्रदर्शन करते हैं। तो अहिंसा व साम्पभाव के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है। उनके सर्वोदयी आदर्श सिद्धांत स्वस्थ समाज राष्ट्र तया जहां राग-द्वेष का भाव उत्पन्न होता है वहां हिंसा विश्व का निर्माण कर सर्वत्र शान्ति स्थापित कर सकते हैं हुए बिना नहीं रहती इसलिए यदि हम वस्तुतः समस्या का इसमें सन्देह नही ।
समाधान करना चाहते हैं तो सदा सदा के लिए यही अहिंसा:-जीन का विधानात्मक मूल्य-भगवान अभ्यास करना चाहिये कि राग-नेष किसी प्रकार उत्पन्न महावीर ने अहिंसा के प्रतिपादन द्वारा व्यक्ति के चित्त को न हो। बहुत गहरे से प्रभावित किया । जब व्यक्ति सभी जीवों को अहिंसा व समता एक सिक्के के दो पहलू है मन में सम भाव से देखता है तो राग-द्वेष का विनाश हो जाता है यदि अहिंसा का भाव होगा तो जगत के सभी जीवों पर सम भाव एवं आत्मतुल्यता की दृष्टि का विकास होने पर समदृष्टि हुए बिना न रहेगी। उसमें छोटे बोकेरका