SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त का चितेरा किस प्रकार वाणी का कलाकार बनकर प्रणम्य अहिंसा के सिद्धान्त (पृष्ठ १५४), जैनधर्म और बौद्ध धर्म हो जाता है, यह पं० जी ने अपने व्याख्यान की उन दो की अहिंसा मे तात्विक दृष्टिकोण का भेद (पृष्ठ ८९) आदि संध्याओं में प्रनाणित कर दिया। प्रसंग सार्थक हैं। मैं समझता हं जब पडित जी ने व्याख्यान का विषय पुस्तक की शैली के विषय में दो शब्द कहना आवश्यक निचित किया--'भारतीय धर्म और अहिंसा' तव उनके है। पडित जी मे यह कला है कि वह दुरुह से दुरूह विषय मन मे विषय की सीमा इतनी ही रही होगी कि यह प्रति- को मुलझा कर सामने रख देते हैं। पुस्तक मे स्थान-स्थान पादित किया जाये कि आदि तीर्थकर भगवान ऋषभनाथ पर रोचक कथा-प्रसग पाठक को प्रमुदित करते हैं। पडित के युग में अहिंसा का जो स्वरूप निर्धारित हुआ उसका जी का अध्ययन इतना व्यापक है कि वेद, पुराण, उपनिषद, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य क्या था और फिर अहिसा का स्वरूप महाभारत के सदर्भ सहजता से जुड़ते चले जाते है। उत्तरवैदिक धर्म मे पौराणिक युग की श्रमण सस्कृति मे तथा रामचरित का वह प्रसग यथा स्थान जुड़ गया है जहा बौद्ध धर्म में वह क्या रहा । किन्तु जब वह अपना भाषण वाल्मीकि के आश्रम में महर्षि वशिष्ट के पधारने पर उनके लिखने बैठे तो अहिंसा के सदर्भ को आधुनिक युग के मत्कार मे बछिया का वध किया गया है। वहां और दो चिन्तन, समस्याओ, प्रश्नो को जीवन-पद्धति और सामाजिक शिष्यो का वार्तालाप चलता है : परिप्रक्ष्य से जोडकर व्याख्यायित करने की आवश्यकता को वह दृष्टि से ओझल नही कर सके । यही कारण है कि "अच्छा, वशिष्ठ ऋषि आये है ?" अहिमा पर लिखी जाने वाली पुस्तकों में यह अद्यतन और "हाँ ?" अद्वितीय है। मासाहार और शाकाहार,' औषधि-उपचार "मैंने तो समझा कि कोई व्याघ्र या भेड़िया आया है।" और अहिंसा', 'गाधी जी और अहिंसा, 'बिश्वशान्ति और "अरे क्या बकते हो।" अहिंसा,' 'अहिंसा और वीरता मे भेद,' अहिंमा और "उसने आते ही बेचारी कल्याणिका गौ को खा शासकीय दण्ड विधान, आदि अनेक विषयो को मौलिक डाला।" ढग से उठाया हैं और अहिंसा के दृष्टिकोण को प्रतिपादित नाटक का यह अश पंडित जी की शैली के कारण किया है। तात्पर्य यह है कि विद्वानो में पडित कैलाशचन्द्र जीवित और सटीक हो गया है। जी ऐसे हैं जिनका शास्त्रीय ज्ञान गहराई मे तो विशिष्ट है विद्वत्ता का गुण बौद्धिकता माना जाता रहा है। पं० ही, पंडित जी आधुनिक जीवन की समस्याओ से भी साक्षात्कार करते है और इसीलिए उनकी जैन दर्शन की कैलाशचन्द्र जी ने 'इसमे रोचकता' का आयाम जोडकर व्याख्या आधुनिक युग के जिज्ञासुओ और श्रोताओ को भी बौद्धिकता को अक्षुण्ण रखा है। आकर्षित करती है। __ यह पुस्तक ऐसी है कि इसका अनुवाद यदि भारतीय भाषाओ मे और विदेशी भाषाओ मे किया जाये तो जैनधर्म में अहिंसा का स्वरूप क्या है- महाव्रत और सांस्कृतिक जगत को पडित जी की यह देन व्यापक अणुव्रत की भूमिका तथा स्वरूप क्या है, हिंसा के १०८ 5 रूप से प्रबुद्ध, प्रेरित और उपकृत करेगी। प्रकार क्या है आदि अनेक विषयो को सुबोध ढग से सममाया गया है। विस्तार के साथ-साथ सारसक्षेप भी देते -लक्ष्मीचन्द्र जैन . गये हैं ताकि विवेचन हृदयगम हो जाये। जैनी अहिंसा के निदेशक, भारतीय ज्ञानपीठ मूल सिद्धान्त (पृष्ठ १४१), गाधी जी द्वारा प्रतिपादित नई दिल्ली
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy