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________________ साहित्य-समीक्षा भारतीय धर्म एवं अहिता : है । कारण यह कि इससे अनेक धार्मिक सम्प्रदायो के ऋषियों और महापुरुषों की छवि धूमिल होती है । 'धूमिल' लेखक : सिद्धान्ताचार्य प० कलाशचन्द्र शास्त्री, वाराणसी शब्द तो बहुत शिष्ट है-वास्तव में उनके द्वारा प्रतिपादित प्रकाशक : श्री राजकृष्ण जैन चरी० ट्रस्ट, दरियागज दिल्ली हिंसक विधान मुख पर कालिख पोत देता है। साइज : २३४३६ x १६ पेज २१६, मूल्य : २५ रु०।। सिद्धान्ताचार्य पडित कैलाशचन्द्र जी ने अहिंसा के विद्वद्वर सिद्धान्ताचार्य प० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री को कल्याणकारी स्वरूप को तो दर्शाया ही है, उनका मुख्य यह पुस्तक 'भारतीय धर्म और अहिंसा' अनेक अर्थों मे विषय और ध्येय भी यही है, किन्तु उन्होंने साहस के साथ एक विशिष्ट और विलक्षण कृति है, अहिसा, भारतीय उन वीभत्स सदों को और क्रियाकार तथा विधि-विधान विचार पद्धति, और विशेषकर जैन दर्शन तथा जैन जीवन की उन कुत्सित छवियो को उकेरा है जहा मनुष्य पशु से चर्या का मूलभूत सिद्धान्त है। इस विषय पर अनेक भी नीचे उतरकर इमी दुनिया मे, इसी मानव समाज में पुस्तकें लिखी गई है। जैनधर्म से सम्बन्धित कोई भी नर्क को सशरीर उतार लाता है। सम्मेलन हो, कोई भी आयोजन या सगोष्ठी हो जिसमे किसी भी वक्ता को धर्म या दर्शन पर कुछ बोलना हो, पडितजी ने जब यह व्याख्यान श्री राजकृष्ण जैन अहिंसा की धुरी पर ही उसके विचारो का चक्र घूमेगा। चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के अन्तर्गत इसी बीज पर विषय का पादप पनपेगा, पल्लवित और स्थापित श्री राजकृष्ण जैन स्मृति व्याख्यान माला मे पुष्पित होगा । महान आचार्यों ने अहिंसा पर जो चिन्तन विश्वविद्यालय के मच से विद्वानो और बौद्धिक वर्ग के किया है, मन वचनकाय की भूमिका पर इसे प्रस्थारित सामने प्रस्तुत किया तो थोताओ मे बैठे-बैठ मैं इतना करके आश्रव, बन्ध और निर्जरा का जो व्यापक ससार बेचैन हो गया कि मैंने चाहा कि कहू-पडित जी, इस रचा है, वह विश्व के समग्र दर्शन शास्त्र, मनोविज्ञान और प्रमग को बन्द कर दें। मुझे र था कि विवाद उठ समाज शास्त्रीय अध्ययन मे अपूर्व और अद्भुत है कि भार- खड़ा होगा और उस कर्मकाण्ड तथा विधिविधान को तीय प्रज्ञा इससे गौरवान्वित हुई है। बड़ी बात यह कि अपनी धार्मिक परम्परा का अग मानने वाले विरोध करेंगे अहिंसा-चिन्तन के इतने बड़े प्रसार के जीवन के साथ और कहेगे कि जो प्रतीको और अलकारो में कही गई है, जोड़ने की कला भी जैन तीर्थकरो और आचार्यों की देन उमे पडित जी स्थूल शाब्दिक अर्थों में प्रस्तुत करके धार्मिक है। अहिंसा के विचार और व्यवहार को गहरी छाप अन्य परमरा की निंदा कर रहे हैं । किन्तु किसी एक भी विद्वान, धर्म-प्रवर्तको के चिन्तन और जीवन निर्देश मे प्रतिबिम्बित एक भी श्रोता ने चू नही की । कोई करता भी कैसे क्योकि है। ऋग्लेद के ऋषियो की ऋचाओ से लेकर गाधी एक-दो सदर्भ हों तो प्रतीक खोजने का मानसिक श्रम किया अरविन्द और बिनोबा के वचनो प्रवचनो तक यह परपरा जावे, यहा तो हिंसा के कुत्सित व्यापार की एक पूरी चली है। अहिंसा-दर्शन राजनीति में सत्याग्रह के रूप मे परम्परा और कड़ी से कडी जोड़ने वाले सदों की एक अवतरित हुआ और उसने इतिहास में चमत्कार उत्पन्न पूरी शृखला ही सामने आ गई। क्या किया जाये । पडित किया । अहिंसा के चिंतन और प्रतिपादन में हिंसा स्वभाव जी ने विषय के प्रति न्याय करने के लिए कितना अध्ययन आता है, किन्तु अब तक हिसा के विद्रूप की लोमहर्षक, किया है, प्रमाण जुटाने में कितना श्रम किया है-देख प्राणो को हिला देने वाली छवि आखो से भोझल रखी गई सुनकर आश्चर्य होता है ! रोगटे खड़े कर देने वाले चित्रों
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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