SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है फिर आप निद्ध वाणी रूपी धेनु का नवरसक्षीर क्यो नही करते " भरत के इस मृदुशील भाषण एवं विनयशील स्वभाव के द्वारा फक्कड एव अक्खड महाकवि बड़ा प्रभावित हुआ और बडी ही आत्मीयता के साथ भरत से बोला - " मैं धन को तिनके के समान गिनता हूं, मैं उसे नही लेता। मैं तो केवल अकारण प्रेम का भूखा हू और इसी से तुम्हारे राजमहल मे रुका हूँ इतना ही नहीं, कवि ने पुन उसके विषय मे लिखा है "भरतस्वय सन्तजनों की तरह सात्विक जीवन व्यतीत करता है, वह विद्यायनी है उसका निवास स्थान संगीत, काव्य एव गोष्ठियों का केन्द्र बन गया है । उसके यहा लिपिक ग्रन्थो की प्रतिलिपियाँ किया करते है। उसमें लक्ष्मी एव सरस्वती का अपूर्ण समन्वय है ।"" कमल सिंह संघवी गोपाचल के तोमरवशी राजा डूंगरसिंह का महामात्य था । उसकी इच्छा थी कि वह प्रतिदिन किसी नवीन काव्य ग्रन्थ का स्वाध्याय किया करे । अतः वह राज्य के महाकवि रह से निवेदन करता है कि हे सरस्वती-निलय, शयनासन, हाथी, घोडे, ध्वजा, छत्र चवर सुन्दर रानिया, रथ, सेना, सोना चांदी, धन-धान्य, भवन, सम्पत्ति, कोष, नगर. ग्राम, बन्धुवान्धव, सन्तान, पुत्र भाई आदि सभी मुझे उपलब्ध है सौभाग्य से किसी भी प्रकार की भौतिक सामग्री की मुझे कमी नही है, किन्तु इतना सब होने पर भी मुझे एक वस्तु का अभाव सदा खटकता रहता है और वह यह कि मेरे पास काव्यरूपी एक भी सुन्दरमणि नही है। उसके बिना मेरा सारा वैभव फीका-फीका लगता है । अत. हे काव्यरत्नाकर, आप तो मेरे स्नेही बालमित्र है अतः अपने हृदय की गाठ खोल कर आपसे सच-सच कहता हूं, आप कृपा कर मेरे निमित्त से एक काव्य रचना कर मुझे अनुगृहीत कीजिए।" कवियों का सार्वजनिक सम्मान : अपभ्रंश-काव्य-प्रशस्तियों मे विद्वान् कवियो के सार्वजनिक सम्मानों की भी कुछ घटनाएं उपलब्ध होती है । १. महापुराण -- ३८।३।।६-१० । महाकवि पुष्पदन्त पृष्ठ ८१ । अपभ्रंश काव्यों में सामाजिक-चित्रण • ३. उपरोक्त – पृष्ठ ८१ । - ४. सम्मत्तगुण० १।१४ । ५. सम्मत्तगुण० ६।३४ । इनसे सामाजिक अभिरुचियो का पता चलता है। 'सम्मतगुणणिहाण कव्व से विदित होता है कि महाकवि रघू ने जब अपने उक्त काव्य की रचना समाप्त की और अपने आश्रयदाता कमल सिंह सघवी को समर्पित किया तब कमल सिंह इतने आत्मविभोर हो उठे कि उसे लेकर वे नाचने लगे। इतना ही नहीं, उन्होंने उक्त कृति एव कृतिकार दोनों को ही राज्य के सर्वश्रेष्ठ शुभ्रवर्ण वाले हाथी पर विराजमान कर गाजे-बाजे के साथ सवारी निकाली और उनका सार्वजनिक सम्मान किया था । " - १५ इसी प्रकार एक अन्य घटना प्रसंग से विदित होता है कि 'पुष्णसवका' नामक एक अपक्ष ण कृति की परिसमाप्ति पर साहू साधारण को जब धीरदास नामक द्वितीय पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई तब बड़ी प्रसन्नता के स. साधारण साहू ने महाकवि रघू एवं उनकी कृति पुष्णका' को चौहानवशी नरेश प्रतापरुद्र के राज्यका नमन्द्रवापट्टन मे हाथी की सवारी देकर सम्मानित किया था। व्यक्तियों के नाम रखने को मनोरंज घटना अपभ्रंश काव्य-प्रशस्तियों मे व्यक्तियों के नाम रखने सम्बन्धी 'कुछ मनोरंजक उदाहरण मिलते है। मेहेसर चरिउ नामक एक अप्रकाशित चरितकाव्य के प्रेरक एवं आश्रयदाता साहू णेमदास के परिचय प्रसंग में कहा गया है कि उसके पुत्र ऋषिराम को उस समय पुत्ररत्न की उपलब्धि हुई है जबकि यह पचकल्याणक प्रतिष्ठा के समय जिनप्रतिमा पर तिलक निकाल रहा था। इसी उपलक्ष्य में उस नवजात शिशु का नाम तिलकू अथवा तिलकचन्द्र रख दिया गया। राजनैतिक तथ्य : अपन श-काव्यों के राजनैतिक अवस्था के जो भी चित्रण हुए है वे सभी राजतन्त्रीय है। कवियो ने सहताग राज्य' एव पचाग मन्त्रियों' के उल्लेख किये हैं । कौटिल्य के अनुसार दुर्ग राष्ट्र खनि सेतु, वन, वन एवं व्यापार ६. पुण्णा सव० १३।१२।२ । ७. उपरिवत् १२।११।१३-१४ । ८. विशेष के लिये दे० र साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन पृ० ४०६-२२ । ६. उपरिवत् ।
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy