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________________ गतांक से मागे अपभ्रश काव्यों में सामाजिक-चित्रण 0 डा. राजाराम जैन, रोडर एवं अध्यक्ष-संस्कृत प्राकृत विभाग, पारा स्वयंवर प्रथा: साहस ही न किया और जो भी प्रतियोगी अपनी हेठी __सुलोचना का स्वयंवर रचाया जाता है जिसमे देश- वाधकर भाग लेने आए उन्हे हार कर शूली पर झूलना देश के राजकुमार आशाओं के तान-वितान बिनते हुए पडा। श्रीपाल ने जब यह सुना तो वह भी अपना भाग्य स्वयंवर मण्डप में आते है। जब राजकुमारी अपने अमात्य अजमाने चल पडता है। राज-दरवार में सर्वप्रथम के साथ मण्डप मे आती है तब उसके अप्रतिम सौन्दर्य को राजकुमारी सुवर्ण देबी उससे निम्न समस्या की पूर्ति के देख कर सभी राजा आशा एवं निराश के समुद्र मे डूबने लिये कहती हैउतराने लगते है। प्रस्तोता द्वारा परिचय प्राप्त करती हई १. समस्या-गउ पेक्खतह सच सुलोचना अन्त में सेनापति मेघेश्वर के गले मे वरमाला पूर्ति--जोवण विज्जा रापयह किज्जह किपि ण गब्बु । डाल देती है।' स्वयम्बर का यह वर्णन कालिदास के जम रुट्टइ णट्ठि एहु जमु गउ पेक्खतहु सब्बु ।। इन्दुमति-स्वयंवर से पूर्णतया प्रभावित है ? अर्थात् यौवन, विद्या, एव सम्पति पर कभी भी गर्व समस्या-पूति-परम्परा : नहीं करना चाहिए क्योकि इस ससार मे जब यमराज अपभ्रश-साहित्य में समस्या-पूर्ति के रूप मे कुछ रूठ जाता है तब सब कुछ देखते ही देखते चना' जाता है। गाथाए उपलब्ध होती है इनके प्रयोग राज दरबारो या २. समस्या--ते पचाणणसीह । सामान्य-कक्षो में होते थे। इनका रूप प्राय. वही था जो पूर्ति-रज्जु-मोउ-महि-घरिणि-धरुभव-भमणहुनणिवीह । आजकल के 'इण्टरव्यू' का है। व्यक्ति के बाह्य परीक्षण जे छडेवि बरतउ करहि ते पचाणिण सीह ।। के तो अनेक माध्यम थे, किन्तु चतुराई, प्रतिमा, अर्थात् राज्यभोग, पृथ्बी, गहिणी एव भवन इन्हे आशुकवित्व प्रश्न के तत्काल उत्तर-स्वरूप आशुप्रतिमा भव-भ्रमण का कारण जान कर जो व्यक्ति उनका आदि के परीक्षणार्थ समस्यापूर्ति के पद्यो से व्यक्ति के त्याग कर देते है तथा श्रेष्ठ तप का आचरण करते है स्वभाव, विचारधारा उसको कुलीनता एवं वातावरण का 'उनकी आत्मा पचाग्नि-शिखा के समान निर्मल हो जाती है।' भी सहज अनुमान हो जाता था। ३. समस्या-तहु कच्चरु सुमट्ठि । 'सिरिवाल चरिउ' मे एक प्रसंग आया है जिसके पूर्ति-जेहिं ण लद्धउ अप्पपुणु तह विसयह सुहइट्ठ । अनुसार कोंकणणापट्टन नरेश यशराशि को १६०० जेहि ण मक्खिउ केलिफलु तहु कच्चरु सुमिट्ठ ।। राजकुमारियों में से ८ हठीली एवं गर्वीली राजकुमारियो अर्थात् जिसने आत्मगुण नही किया, वह विषय-वासना ने प्रतिज्ञा की थी कि वे ऐसे व्यक्ति के साथ अपना विवाह के सुखो को ही सुख मानता है। जिसने कभी भी केला करेंगी जो उनकी समस्याओं की पूर्ति गाथा छन्द में नहीं खाया हो उसे 'कचरा भी मीठा लगता है। करेगा। उनकी यह भी शर्त थी कि जो भी प्रतियोगी उनके ४. समस्या-कासु पियावउ खीरु । उत्तर नही दे सकेगा, उसे शूली पर चढा दिया जायगा पूर्ति—पज्जणु वि छठ्ठी निसिहि हरिणियउ जा वीरु । फलस्वरूप हीनबुद्धि व्यक्तियों ने तो उसमें भाग लेने का ता रुप्पिणि सहियह मणइ कासु पियावउ खीरु।। १. मेहेसर चरिउ-४।१०। २. मिरिवालचरिउ-८।६।१-८ ।
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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