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जीवन्धर कथानक के स्त्रोत
नंदिमुनि एवं कूचिभट्टारक नामक पुराणकारों की स्याद्वादसिद्धि आदि ग्रन्थों के रचयिता आचार्य अजितसेन विद्यमानता के भी सकेत मिलते है। भगवान महावीर की वादीभसिंह का मुनिजीवनकाल १०२५-१०६० ई० प्राय. दिव्य ध्वनि के आधार पर गौतम, सुधर्मा आदि गणधर सुनिश्चित है और गद्यचिन्तामणि एव क्षत्रचूडामणि की भगवानों द्वारा गथित द्वादशागवाणी के १२व अंग रचना उन्होने १०५० व १०६० ई. के मध्य की है। दृष्टिप्रवाद का एक विभाग प्रथमानुयोग था जिसमे अतएव महाकवि हरिचन्द्र और उनके दोनो ग्रथों का पुराण पुरुषो के चरित्र का संग्रह था। आचार्य भद्रबाह रचनाकाल १०६० ई० के उपरान्त और ११०० ई० के थु तकेवलि के उपरान्त उसका सार गाथा निबद्ध नामा- पूर्व, अर्थात् लगभग १०७५ ई० मानना उचित होगा। वलियो एव कथासूत्रों के रूप में मौखिक द्वार में प्रवाहित तिमत्तकदेवकृत तमिल महाकाव्य जीवक चिन्तामणि होता रहा । उन्ही के आधार पर उपरोक्त प्राचीन पुराणग्रथ तमिल भाषा के प्राचीन पाच महाकाव्यों में परिगणित, तथा बिमलमूरि, सधदासगणि, रविपेण, जिनसेन मूरि प्राचीन तमिल माहित्य का मसूज्ज्वल रत्न एव वेजोड़ पन्नाट आदि के पुराण तथा वरागचरित्र प्रभृति अन्य अति प्रतिष्ठिन रचना है। उगमे और वादीभसिंह मूरि की प्राचीन पौराणिक चरित्र भी रचे गए। अस्तु, जीवधर गद्यचिन्तामणि में इतना अद्भुत सादृश्य है कि दोनो में कथानक गुण भद्र का ही आविष्कार अथवा उनकी अपनी
जो भी परवर्ती है उमने पूर्ववर्ती को अपना अधिकार
जो भी परवर्ती कल्पना से प्रसूत था, यह मानने का कारण प्रतीत नही
बनाया है। पहले टी. एम. कुप्पम्वामी, स्वामीनाथ होता। उसके लिए भी उनका आधार उनका पूर्ववर्ती अइयरपिल्ले, चक्रवर्ती आदि अनेक तमिल विद्वान भी पुराणसाहित्य एव पौराणिक अनुश्रु तियाँ थी।
जीवकचिन्तामणि को गद्य चिन्तामणि पर आधारित मानते जीवधर कथा की दूसरी धारा का प्रतिनिधित्व रहे. और उसे भी प्राय. दमवी या ग्यारहवी शती तिम्तकदेव का तमिलकाव्य तथा वादीभसिंह के ग्रथद्वय ई० की रचना अनुमान करते रहे। किन्तु इधर कुछ और अशत हरिचन्द्र व जीवधर चम्पू करते है हरिचन्द्र विद्वान उसका बिल्कुल उलटा सिद्ध करने का प्रयाम कर की एक रचना धर्मशर्माभ्युदय है, जिसकी प्राचीनतम उपलब्ध रहे है। उनकी युक्तिया भी बेदम नही है। उदाहरणार्थ प्रति १२३० ई० की है। पहले अनेक विद्वान काव्य- डा० आर० विजयलक्ष्मी ने जीवकचिन्तामणिका विस्तृत मीमासाकार राजशेखर के एक उल्लेख के नाधार पर एव सूक्ष्म अध्ययन तथा गद्यचिन्तामणि, क्षत्रचूडामणि, हरिचन्द्र का समय १००ई, के लगभग मानते थे। किन्तु जीवधरचपू और उत्तरपुराण के कथानको एव वर्णनो के जैसा कि धर्मशर्माभ्युदय के विद्वान संपादक डा० पन्नालाल साथ उमका तुलनात्मक अध्ययन करके यह निष्कर्ष साहित्याचार्य का कहना है, हरिचन्द्र के ग्रथ न केवल निकाला है कि जीवक चिन्तामणि ७५० और १५० ई० गुणभद्रीय उत्तरपुराण (८६७ ई०) से वरन वीरनदि के के मध्य किसी समय लिखी गई होनी चाहिए। चन्द्रप्रभचरित्र (ल. ५० ई.) और सोमदेव के यो तो जीवकचिन्तामणि के सर्व प्राचीन रपष्ट उल्लेख यशस्तिलकचम्पू (६५६ ई०) से पर्याप्त प्रभावित है। शोकिल्लार पडिन की पेरिय पगणम (११५० ई.) में इसके अतिरिक्त, उनका जीवधर चम्पू वादीभमिह की तथा उमके उगन्त किमी समय लिखी गई कम्बन वृत गचिन्तामणि से भी प्रभावित एव परवर्ती है । वादीभसिंह तमिल रामायण में ही प्राप्त होते है। अत: इससे तो सरि का समय भी आधुनिक युग के प्रारभिक विद्वान पहले इतना ही निकर्ष निकलता है कि जीवकचिन्तामणि की तो ८०० ई० के लगभग मानते थे, तदनन्तर अब अधिकाण रचना ११०० ई० के पूर्व किसी समय हुई । गद्यचिन्तामणि विद्वान १०वी शती ई० का उत्तरार्व मानने लगे। किन्तु, के साथ किए गए उसके तुलनात्मक अध्ययन से यह भी जैसा कि हमने अपने लेख धीमद्वादी भसिंहमूरि मे प्रतीत होता है कि वादसिंह उससे सुपरिचित थे। अस्त तत्सबधित प्राय. सभी प्रालित भ्रान्तियो का निरमन तिरुतक्कदेवकृत तमिल महाकाव्य जीवकचिन्तामणि उतनी करके सिद्ध किया है, गद्यन्तिामणि, क्षत्रचूडामणि प्राचीन भी नही तो कम-से-कम हवी या १०वी शती ई०