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________________ साहित्य-समीक्षा १. वर्षमान जीवन-कोश (Encyclopaedia of इन्दौर पृष्ठ-२२४, वार्षिक शुल्क-बीस रुपये Vardhamana) - प्रस्तुत अक-इक्कीस रुपये । सम्पादक-श्री मोहनलाल बांठिया और श्री श्रीचन्द उच्च कोटि के सर्वागपूर्ण विशेषाको की सुस्थिर चोरडिया । परम्परा के अनुरूप तीर्थकर का प्रस्तुत विशेषाक सर्वथा प्रकाशक---जैन-दर्शन समिति, १६-सी डोवर लेन, कलकत्ता अनुपम है एव सर्वोपरि है। इसमे भक्तामर स्तोत्र के प्रकाशन वर्ष १६८०, पृष्ठ ५२४ , मूल्य प्रामाणिक मूल पाठ के अतिरिक्त उसके अंग्रेजी, हिन्दी, ५० रुपए। मराठी, कन्नड, बगला आदि मे प्रामाणिक अनुवाद, अन्वयार्थ, मत्र और यन्त्र दिए गए है। साथ ही इसमे प्रस्तुत कृति शास्त्री के आधार पर रचित महावीर भक्तामर स्तोत्र सम्बन्धित एव अन्य सम्बद्ध अयोगी विषयों जीवनकोश है जिममे भगवान महावीर के जीवनवृत्त-विषयक पर अधिकारी मनीषियो के शोधपूर्ण एव मारगर्भित ज्ञान ६३ जैन आगम और आगमेतर एव जनेतर स्रोतो मे प्रभूत गम्भीर लेख भी दिए गए है जिसमे इमको उपादेयता सामग्री का सकलन किया गया है। दो खडो में समाप्त बहुगुनी हो गई है । मुन्दर छपाई एव सजधज से युक्त यह जीवन कोश का यह प्रथम खड मात्र है। इसमे प्रधाननया विशेषाक मुविज्ञ सम्पन्न मुविज्ञ पाठको की भक्तामर स्तोत्र मूल श्वेताम्बर जैन आगमो मे सामग्री ली गई है और । विषयक सभी जिज्ञामाओ को शान्त कर उन्हें सुप्रशस्त आगमो की टीकाओं, नियुक्तियों, भाष्यो, मूर्तियो आदि गे मार्ग पर अग्रसर करेगा, ऐसी आशा है। की भी प्रचुर सामग्री का सकलन किया गया है किन्तु इसमे -गोकुल प्रसाद जैन दिगम्बर जैन स्रोतो का पर्याप्त और ममुचित उपयोग नही उपाध्यक्ष, वीर सेवा मन्दिर किया गया प्रतीत होता है, जिससे यह कोश मर्वमान्य न होकर एकागी बन कर रह गया है तथा वर्धमान जीवन ३. दिवंगत हिन्दी-सेवी--- कोण नाम को सार्थक नही करता है। दिगम्बर जैन आगमो लेखक श्री क्षेमचन्द्र 'मुमन' . प्रकाशक-शकुन प्रकाविषयक कतिपय प्रसग और सन्दर्भ तो सर्वथा भ्रामक भी शन ३६२५, मृभापमार्ग, नई दिल्ली-२ . डबल काउन: प्रतीत होते है। इस प्रकार एकागी दृष्टिकोण प्रस्तुन करने ७८८ पृष्ठ बढिया मालीयो कागज ८८६ हिन्दी के कारण यह गरिमा और निष्ठापूर्ण प्रयाम विवादास्पद मेवियो में ७०० के चित्र मजबूत कपडे की जिल्द के साथ बन गया है। कम-से-कम शोधप्रवर्तन की दृष्टि में प्रणीत- गत्ते के सुन्दर डिब्बे मे बन्द मूल्य--तीन सौ रुपए मात्र : संकलित ग्रन्थो मे वस्तुस्थिति का ही अकन अपेक्षित है। 'दिवगत हिन्दी सेवी' मेरे समक्ष है और वह भी स्वस्थ, सब मिला कर लेखक द्वय का यह महत्त्रयास अत्यन्त सुडील, मनोहारी, विशालकाय में। जब देखता है तब सराहनीय, उपादेय एवं उपयोगी है। इसमें सकलित सभी हिन्दी सेवी अनेको रूपो मे आखो और मन मे मूमने लगते है और भारती-भाषा हिन्दी की समृद्धि २. तीर्थकर (मासिक)का भक्तामर स्तोत्र विशेषांक और व्यापकता में प्रयत्नशील अतीत सभी हिन्दीसेवी जनवरी २९८२ साक्षात् परिलक्षित होते हैं । असमजस मे हं कि-समक्षस्थित सम्पादक-डा० नेमीचद जैन। को दिवंगत कसे मान ? यदि दिवगत है तो समक्ष कैसे, प्रकाशक-हीराभया प्रकाशन, ६५ पत्रकार कालोनी, और समक्ष हैं तो दिवगत कैसे !
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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