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________________ २६, वर्ष ३५, कि०१ अनेकान्त इसी विशेषता के कारण गोम्मटमार और लब्धिमार का वर्णन तथा जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, मनुष्यक्षेत्र, नदी, की रचना के पश्चात्, पखण्डागम और कषाय पाहड के पर्वत आदि वा वर्णन। इसमे सब प्रकार के माप तथा साथ उनकी टीका धवला और जपधवला को भी लोग भूल मापने की विधि का भी वर्णन है। गए, और उत्तरकाल में इन मिद्धान्त-ग्रन्था को जो स्थान द्रव्यसंग्रहप्राप्त था, धीरे-धीरे वही स्थान नेमिचन्द्राचार्य के गोम्मट मुनि नेमिचन्द्र रचित, द्रव्यमग्रह नाम का, एक छोटासार लब्धिमार को प्राप्त हो गया। मा प्राकृत भाषा का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है इसमे केवल त्रिलोकसार--- अट्ठावन गाथाएं है। फिर भी टीकाकार ब्रह्मदेव ने इसका गोम्मटमार के रचयिता आचार्य नमिचन्द्र सिद्धान्त- नाम 'बृहद्रव्यसग्रह' लिखा है। इसका कारण यह है कि चक्रवर्ती ही त्रिलोकमार ग्रन्थ के रचयिता है। यह बात इम ग्रन्थ के निर्माण से पूर्व, ग्रन्थकर्ता द्वारा एक 'लघ स्वय ग्रन्थकार ने त्रिलोकमार मी अतिम गाथा मे इम द्रव्य मग्रह' का निर्माण हो चुका था जिसकी गाथा सख्या प्रकार कही है -- २६ भी। ग्रन्थ की अन्तिम गाथा मे ग्रन्थकार ने अपना "इदि णोमिचदमणिणा अपदेणभयादवच्छेग। तथा ग्रन्थ का नाम इस प्रकार दिया हैरइयो निलोयमारो खमत न बहमुदाइरिया ।।" "दव्वमगहमिण मुणिणाहा दोसमंचयचुदासुदपुण्णा । ___... (त्रिलोकमार-१०२८) मोधयन्तु नणुसुत्तधरेण णमिचदमुणिणा भणिय ज ।।" त्रिलोकसार पर माधव प्रापद्य ने एक सरकृल-टीका इम ग्रन्थ के ऊपर ब्रह्मदेव रचित एक सस्कृतवत्ति है। लिखी है जिसकी भूमिका में उसने इस बात का निर्देश इसके प्रारभ में वृत्तिकार ने ग्रन्थ का परिचय देते हारा किया है कि यह ग्रन्थ चामुण्डर य के प्रतिबोधन के लिए लिखा है कि ---"अथ मालवदेशे धारा नाम नगराधिपतिलिखा गया है। टीका के अन्त म प्रशस्ति की एक गाथा मे राजभोजदेवाभिधान · श्रीनेमिचन्द्रमिद्धान्तिदेवैः पूर्व षडयह भी लिखा है कि इस ग्रन्थ की कुछ गाथाएं स्वय मेरे विशतिगाथाभिलघुद्रव्यसग्रह कृत्वा पश्चाद् विशेषतत्त्वद्वारा रची गई है और गुरु नेमिनन्द्राचार्य की मम्मतिपूर्वक परिज्ञानार्थ विरचितस्य वृहद्रव्यमग्रहम्याधिकारशुद्धिपूर्वकइस ग्रन्थ मे समाविष्ट कर दी गई है त्वेनवृत्ति प्रारभ्यते।" अर्थात् -- गुरु-मिचद-समद कदिवय-गाहा हि नहिं रइया । "मालवदेश में धागनगरी का स्वामी कलिकाल सर्वज्ञ माहवचतिविज्जेणिणमणुमणिज्जमझेहि ॥" गजा भोज था। उसमे सबद्ध मण्डलेश्वर श्रीगल के आश्रम इस प्रकार विनोकसार सहकारप----पर रचित एक नामक नगर में श्री मुनिसुव्रतनाथ तीर्थ दूर के चैत्यालय से न वी माती के भाण्डागार आदि अनेक नियोगों के अधिकारी सोमनामक मध्य हुई। राजधष्ठी के लिए, श्री नेमिचन्द्र मिद्धान्तिदेव ने पहले २६ विषय वस्तु-- गाथाओं के द्वारा 'लघुद्रव्यमग्रहनाम का ग्रन्थ रचा, त्रिलोकसार करणानुयोग का ग्रन्थ है। प्राकृन में पीछे विशेष तत्वो के ज्ञान के लिए 'बृहद्रव्यसग्रह' नामक रचित इसकी गायाओ की सख्या १०१८ है। इसके छह ग्रन्थ रना । उसकी वृत्ति को मै प्रारम्भ करता हूँ।" प्र अधिकार है---लोकमामान्य, भावनलोक, पन्तरलोक, ग्रन्थ का कर्तृत्व-- ज्योतिर्लोक, वेमानिक लोक और नतिर्यकलोक । इस ग्रन्थ का कर्तृत्व विवादग्रस्त है। सामान्यतः, इन छह अधिकारो के माध्यम से त्रिलोकमार में जिन नमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती को ही द्रव्यसंग्रह का रचयिता बातो का वर्णन किया है वे इस प्रकार है --तीनो लोको माना जाना रहा है। श्री डॉ० शरच्चन्द्र घोषाल ने भी का साङ्गोपाङ्ग वर्णन - यथा नरक और नारकियों का द्रव्यसयह के अग्रेजी अनुवाद (आरा सस्करण) की भूमिका वर्णन, चारो प्रकार के देवताओ के भेद, प्रभेद, उनके रहने में इसे इन्ही नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की कृति बताया है। के स्थान, आवास, भवन, आयु, परिवार, विमान, गति आदि किन्तु प० जुगलकिशोर जी मुख्तार द्रव्यसंग्रह के
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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