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________________ आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती २५ विषयवस्तु की गाथा न० ६७२ मे तथा द्वितीय केशववर्णी या वत्ति श्री माधवचन्द्र आचार्य ने 'क्षपणासार' नामक एक की प्रारम्भिक गाथा मे । कर्मकाण्ड की गाथा न० ६७२ अन्य ग्रन्थ मस्कृत गद्य मे लिखा है। इस ग्रन्थ और इस प्रकार है नेमिचन्द्र के प्राकृत-गाथाओ वाले 'क्षपणासार' का विषय "गोम्मट सुत्तल्लिहणे गोम्मट रायेण जा कया देसी। एक ही है । सभवत इमी कारण लब्धिसार के उनर-भाग सो राओ चिरकाल णामेण य वीरमत्तण्डी।" का नाम क्षपणासार दे दिया गया है। केशववर्णीया वृत्ति की प्रथम गाथा इस प्रकार है-- "नेमिचन्द्र जिन नत्वा सिद्ध श्री ज्ञान भूपणम् । गोम्मटगार के जीवकाण्ड में जीव का, कर्मकाण्ड में वृत्ति गोम्मटसारस्य कूर्वे कर्णाटवत्तित ।" जीव द्वारा बाधे जाने वाले कर्मो का और लब्धिसार में यहा 'कर्णाटवृत्तित' पद से अभिप्राय, चामुण्डगय जीव के कर्मबन्धन से मुक्त होने का उपाय तथा प्रक्रिया द्वारा लिखित कर्मकाण्ड की कन्नड टीका से है। बताई गई है। लब्धिसार-क्षपणासार मोक्ष की प्राप्ति के कारणभूत मम्यग्दर्शन और गम्यकलब्धिमार और क्षपणासार को गोम्मटमार का ही चारित्र की लब्धि अर्थात् प्राप्ति का कथन होने के कारण उत्तर भाग समझना चाहिए। प्राकृत गाथाओ में निबद्ध ग्रन्थ का नाम लब्धिमार है। दोनो ग्रन्थों की सम्मिलित गाथा-सख्या ६५३ है।" "मम्यग्दर्शनचाग्थियो ब्धि प्राप्तियस्मिन् प्रतिपाद्यते डॉ० घोपाल ने 'लब्धिमार की गाथा-सख्या ३८० तथा म लब्धिमा राख्यो ग्रन्थ ।" - -(लब्धिमार टीका) क्षपणामार कीगाथा-सख्या २७०, इस प्रकार कुल गाथा मर्वप्रथम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का कथन है। उसकी सख्या ६५० लिखी है । वस्तुत गाथा सख्या ६५३ ही है। प्राप्ति पाँच लब्धियों के होने पर होती है। वे हैगाथाओ की विभिन्नता का कारण यह है कि गयचन्द्र क्षयोपशम, विशुद्धि देशना, प्रायोग्य और करणलब्धि । शास्त्रमाला बबई वाले मंस्करण में गाथाओ की मख्या ६४६ है, क्योंकि उसमे गाथा न० १५६, १६७, २७८, नया गाथा न० ३६१ तक चारित्र मोहनीय कर्म के उपशम ५३१ नहीं है ये चार गाथाएँ हरिभाई देवकरण ग्रन्थमाला करने का कथन है। उसके आगे चारित्र मोह की क्षपणा से प्रकाशित सम्करण (शास्त्राकार) मे सम्मिलित कर दी का कथन है। क्षपणा के अन्तर्गत जो क्रियाये होती है उन्ही गई है। डॉ. घोषाल ने गाथाओ की सख्या ६५० किम को आधार बना कर चारित्र मोह की क्षपणा के अधिकारो आधार पर लिखी है, यह बात विचारणीय है। का नामकरण किया गया है। वे अधिकार है---अध करण यहा यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि लब्धिमार अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण- ये तीन करण, बन्धाऔर क्षपणासार, दोनो एक ही ग्रन्थ है। जैसे इस ग्रन्थ की पसरण और मत्वापसरण--ये दो अपसरण, क्रमकरण, प्रथम गाथा में ग्रन्थकार ने दर्शनलब्धि और चारित्रलब्धि कपायो आदि की क्षपणा, देशघातिकरण, अन्तरकरण, को करने की प्रतिज्ञा की है, वैसे ही अतिम गाथा (६५२) मक्रमण, अपूर्वस्पर्धककरण,कृप्टिकरण और कृष्टि अनुभवन मे भी कहा है कि-"नेमिचन्द्र ने दर्शन और चरित्र की (गाथा ३६२)। इन्ही अधिकारी के द्वारा उस क्रिया का लब्धि भले प्रकार कही।" ढुढारी भाषा टीकाकार प० कयन किया गया है। टोडरमल ने भी लिखा है कि...-"लब्धिसार नामक शास्त्र गोम्मटमार की तरह लब्धिसार भी एक संग्रह ग्रन्थ विषे कही।" अत. इस ग्रन्थ का नाम लन्धिसार ही है। है। दोनो मे खट्खण्डागम, कषायपाहुड और उनकी धवला. ___टीकाकार नेमिचन्द्र की संस्कृत-टीका, गाथा न० टीका का सार ही सगृहीत नहीं किया गया है, प्रत्युत उनसे ३६१ तक पाई जाती है, जहाँ तक चारित्र-मोह की तथा पंचसग्रह से बहुत-सी गाथाए भी सगृहीत की गई है। उपशमना का कथन है। चरित्र मोह को छपणा वाले भाग सग्रह होने पर भी इनकी अपनी विशेषता ध्यान देने पर संस्कृत टीका नहीं है। योग्य है।
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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