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________________ २६, वर्ष ३५, कि०४ अनेकान्त वाली भरतक्षेत्र की लक्ष्मी का निवासभूत अद्वितीय कमल पत्रो में भरत और बाहबली प्रधान थे। शेष १८ भाई भरत के ही सहोदर थे। जब भगवान् ऋषभदेव ने दीक्षा २. वहाँ के लोग विद्वान होते हुए भी अहंकार रहित ली तो उन्होंने अयोध्या के अपने पद पर भरत का राज्या भिषेक किया और बाहुबली को तक्षशिला के पद पर । ३. वहाँ तलवार को ग्रहण करने वाले लोग है तथा शेष पत्रों को भी यथायोग्य राज्य प्रदान किया । अगकुमार वहां मूखों का सद्भाव नही है। ने जिस देश को प्राप्त किया, वह अगदेश के नाम से प्रसिद्ध ४. वहाँ की स्त्रियाँ गले में हार धारण करती है। हुआ। कुरु नामक पुत्र के नाम से कुरुक्षेत्र और बग, ५. वहाँ के बाजारों में चित्र-विचित्र मणियों रखी कलिंग, सूरसेन एव अवन्ति के नाम से तत्तत् देश प्रसिद्ध गई हैं, जिनकी किरणों से शरीर कल्माषित होने के कारण हुए। कुरु का पुत्र हस्ति नामक राजा हुआ, जिसने लोग एक दूसरे को पहिचान नही पाते है। हस्तिनापुर को बसाया। यहाँ गगा नामक पवित्र नदी ६. वहाँ के भवनो मे ऊँचे-ऊँचे स्तम्भ लगे हुए है। प्रवाहित होती है। मल्लिनाथ स्वामी का समवसरण ७. वहाँ के लोग दूसरे लोगों के सहायक है। हस्तिनापुर आया था। इस नगर मे विष्णुकुमार मुनि ने ८. वहां के मनुष्य लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए अत्यधिक बलि द्वारा हवन के लिए एकत्र सात सौ मुनियो की रक्षा खेदयुक्त नहीं होते है। की थी। सनत्कुमार, महापद्म, सुभौम और परशुराम का ६. वहाँ के लोग युद्ध मे विजय प्राप्त करते है। जन्म इसी नगर में हुआ था। इस महानगर मे शान्ति, १०. वहाँ के निवासी ससारी होने पर आत्माधीन, कुन्थु, अरह और मल्लिनाथ के मनोहर चैत्यालय थे । सुखी तथा समान गुणो से युक्त है। अम्बादेवी का प्रसिद्ध मन्दिर भी इसी नगर में विद्यमान ११. वहाँ का राजा विविध गुणो से युक्त है। था। विविध तीर्थकल्प का उल्लेख-विविध तीर्थकल्प नामक ग्रन्थ में बताया गया है कि आदि तीर्थकर के सौ -अध्यक्ष, सस्कृत-विभाग वर्धमान कालेज, बिजनौर १. जिनसेन : हरिवंशपुराण ४५॥६-३८ २. वही १३१७-१६ ३. वही १३।३३ ४. वही १३३४३-४५ ५. वही ४५॥६-६८ ६. जिनसेन : आदिपुराण १६३१५२ ७. वही १६३१५३ ८. असग : शान्तिनाथपुराण १३।१-१० ६. श्री सुदर्शनमेरुबिम्बप्रतिष्ठा स्मारिका पृ०७ पर डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन का लेख । १०. डॉ. जगदीशचन्द्र जैन : प्राकृत साहित्य का इतिसास पृ० ६१। ११. वही पृ०६६ १२. वही पृ० १४१ १३. वही पृ० ३०३ १४. भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (प्रथम भाग) पृ० २२ १५. विमलसूरि : पउमचरिय ६५१३४ १६. श्रीमद्भागवत ११११४८ १७. पउमचरिय ६७१, २०।१० १८. वही २०११८० १६. वही ६५१३४ २०. हरिवंशपुराण ५३।४६ २१. वही ५४।२-३ २२. हरिवंशपुराण ५४।६३-७१ २३. वही ५४/७३ २४. पद्मचरित ४।६ २५. पद्मचरित ४१७-२२ २६. जिनसेन : हरिवशपुराण सर्ग-२० २७. विमलसूरि : पउमचरित २११४३ २८. शान्तिनाथ गुराण १३।११-२० २६. सिरिआइतित्थेसरस्स दोण्णि पुत्ता भरहेसर बाहुबलि नामाणो आसि । भरहस्स सहोपरा अट्ठाणउई वि सेसु तेसु देसेसुं रज्जाई दिण्णाइं कुरुनरिंदस्स पुत्तो हत्थी नाम राया हुत्था । तेण हत्थिणाउरं निवेसि । विविध तीर्थकल्प (हस्तिनापुर) पृ. २७
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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