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________________ जैन साहित्य में कुरुवंश, कुरु-जनपद एवम् हस्तिनापुर २५ थे। किसी समय श्रुत के पारगामी महामुनि अकम्पन सात कुमार मुनि राजा पद्म के पास गए। राजा पद्म ने कहा सौ मुनियों के साथ उज्जयिनी के बाह्य उपवन मे विराज- कि मैने सात दिन का राज्य वलि को दे रखा है। अतः मान हुए। उनके दर्णन के लिए नगरनिवासियो की भाँति इस विषय मे मेरा कुछ अधिकार नही है। यह सुनकर राजा भी मन्त्रियों के साथ गया। मुनियो के दर्शन कर विष्णुकुमार मुनि बलि के पास गए तथा इस कुकृत्य को मन्त्री कुछ विवाद करने लगे। उस समय गुरु की आज्ञा रोका । जब बलि नही माना तब उन्होने बलि से तीन पग से सब मुनि सघ मौन लेकर बैठा था, इसलिए ये चारो भूमि दान स्वरूप प्राप्त कर विक्रिय ऋद्धि के द्वारा अपना मन्त्री विवश होकर लौट आए। लौटते समय उन्होंने एक शरीर बढ़ा लिया। उन्होने एक डग सुमेरु पर रखा, श्रुतसागर नाम के मुनि को देखकर राजा के समक्ष छेड़ा। दूसरा मानुषोत्तर पर, तीसरा डग अवकाश न मिलने के सब मन्त्री मिथ्यामार्ग से मोहित थे, अत. श्रुतसागर नामक कारण नही रख सके। इस प्रभाव से पृथ्वी पर खलबली मनिराज ने उन्हें जीत लिया। उसी दिन रात्रि के समय मच गई। देवो ने बलि को बाँध लिया और उसे दण्डित उक्त मुनिराज प्रतिमायोग से विराजमान थे कि मब मत्री कर देश से दूर कर दिया। मुनियों के उपसर्ग निवारण उन्हे मारने के लिए गए, किन्तु देव ने उन्हे कीलित कर की स्मृति स्वरूप ही श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को सारे देश में दिया। यह देख गजा ने उन्हे अपने देश से निकाल रक्षाबन्धन का पर्व मनाया जाता है। दिया। __मुनि दीक्षा का केन्द्र - भगवान् मुनिमुव्रतनाथ के __ चारी मन्त्री हस्तिनापुर आए। उस समय वहाँ राजा समय नागपुर (हस्तिनापुर) का राजा बाहुवाहन था। पद्म राज्य करता था। राजा पद्म बलि आदि मन्त्री के उसकी पत्री मनोहरा थी। उसका विवाह साकेतपुरी के प्रदेश से किले में स्थित मिहबल राजा को पकडने मे सफल राजा विजय के पुत्र वज्रबाह के साथ हुआ था। विवाह हो गवा, अत: उसने बलि मे अभीष्ट वर मांगने के लिए के बाद जब वह अपनी पत्नी को लेकर जा रहा था, तब कहा। बलि ने उस वर को राजा के ही पास धरोहर के वसन्तगिरि पर एक ध्यानस्थ मुनि को दवा और उनका उपरूप रखा। देश मुना । उपदेश सुनकर वह बहुत प्रभावित हुआ और उसने किसी समय अकम्पनाचार्य आदि गान सौ मुनिराज २६ अन्य राजकुमारो के साथ मुनि दीक्षा ले ली । भगवान् हस्तिनापुर आए। उनके विषय में जानकर बलि आदि मुनि सुव्रतनाथ के समय में ही गगदत्त श्रेष्ठी था। उसके मन्त्री भयभीत हो गए। बलि ने राजा पद्म से वर देने पास सात करोड स्वर्ण मुद्राये थी। एक बार भगवान् की प्रतिज्ञा का निर्वाह करने हेतु मात दिन का राज्य हस्तिनापुर पधारे । श्रेष्ठी ने भगवान् का उपदेश मुना। मॉगा। राजा ने बलि को सात दिन का राज्य दे दिया। उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने भगवान् के बलि ने सिंहासन पर आरूढ होकर उन गुनियों पर उपद्रव पास ही मुनिव्रत अगीकार कर लिए"। इस प्रकार करवाया। उसने चारो ओर से मुनियों को घेरकर पत्तो क्षेत्र पर अनेको महान् पुरुपो ने मुनि दीक्षा लेकर का धुआँ कराया तथा जूठन व कुल्हड़ आदि फिकवाए। आत्मकल्याण किया। मुनिगण सावधिक संन्यास धारण कर उपसर्ग सहन करते कल्याणक भूमि-हस्तिनापुर सोलहवे, सत्रहवे एव उस समय मिथिला नगरी में पद्म के छोटे भाई अठारहवे तीर्थकर शान्ति, कुन्थु और अरहनाथ के गर्भ, विष्णकमार मुनि के अवधिज्ञानी गुरु विराजमान थे। जन्म, तप और केवलज्ञान कल्याणक की भूमि रही है। अवधिज्ञानी उन गुरु से पुष्पदन्त नामक क्षुल्लक ने मुनियों इन त.नो के चरित के आधार पर अनेक महाकवियों ने पर उपसर्ग होने का दारुण समाचार सुना। वह गुरु की अपनी काव्य रचना की। कवि असग ने भगवान की जन्म आज्ञा से विष्णुकुमार मुनि के पास आया तथा विष्णुकुमार भूमि हस्तिनापुर की निम्नलिखित" विशेषताओ का वर्णन मुनि से कहा कि आपको विक्रिया ऋद्धि प्राप्त हो गई है, किया हैअतः आप ही इस उपसर्ग को दूर कर सकते है। विष्णु- १. हस्तिनापुर तीनो जगत की कान्ति को जीतने
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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