SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन भूगोल : कुछ विशेषतायें की किरणों को सामने रखने की शृंखला प्रस्तुत है। सूर्य हवा) २. उदीचीन (उत्तरी) ३. दक्षिणवात ४. उत्तर के तापक्षेत्र का भी इसमे विवेचन है और इस सन्दर्भ मे पौरस्त्य (सामने से उत्तर की ओर चलने वाली हवा) अनेक आँकडे दिए गए हैं। प्राभृत ५ सूत्र २६ का नाम ५. सवात्सुक ६. दक्षिणपूर्वतुंगर (Southerly Strong लेश्या प्रतिहित है। इसमें सूर्य के प्रकाश के फैलने का Wind) ७. अपरदक्षिणबीजाप (दक्षिण पश्चिम से चलने वर्णन है। विशेष रूप से सूर्य की किरणों के सामने किसी वाली) ८. अपरवीजाप (Westerlies) ६. अपरोत्तरगर्जन वस्तु के रखने की क्रिया, किरण फेकना तथा प्रतिबिम्बन (उत्तरपश्चिमी चक्रवात) १०. उत्तमसवात्सुक (अज्ञात) के विषय का विस्तृत वर्णन है। इसमे सूर्य की रोशनी के ११. दक्षिण सवात्सुक १२. पूर्वतुगर १३-१४. दक्षिण तया प्रतिबिम्बन के २० वादो का जिक्र है। प्राभूत ६ सूत्र पश्चिमी वीजाप १५. पश्चिम गर्जभ (पश्चिमी आंधी) २७ में गर्मी की दशा या सूर्य के प्रकाश का अन्वेषण है। १६. उत्तरी गर्जभ (उत्तरी आँधी) । अनन्तर यही चक्रवातों सबसे पहले इसमें इसके विषय मे २५ सिद्धान्त दिए है। का निर्देश कालिकावात के रूप में है। इस शब्दावली ने पहले सिद्धान्त मे वर्णन है कि प्रत्येक क्षण मूर्य की रोशनी अव भौगोलिकों को और नाविको को प्रभावित किया प्राप्त की जा रही है और दूसरे क्षण यह अवश्य हो रही और उन्होंने तत्परता से इन अनेक भारतीय पारिभाषिक है। सौर वर्ष की समाप्ति के समय जब कि सूर्य सबसे शब्दो को अपनी भाषा मे ग्रहण कर लिया। जीव विचार? लम्बे दिन आन्तरिक घेरे में रहता है, इसकी अधिकाधिक उद्भ्रामक वात (सूखे पेड़ो से बहने वाली हवायें) ऊर्जा २० की अवधि के लिए आती है। इसके बाद सूर्य २. उत्कलिका वात ३. भूमण्डलीकावात ४. मुखावात परिवर्तन प्रारम्भ करता है। दूसरे सिद्धान्त के अनुमार ५. शुद्ध वात तथा ६. गुञ्जवात का नाम निर्देश है। पृथ्वी धरातल पर पुद्गल सूर्य की किरणो के पडने से प्रज्ञापना मे हिमपात तथा शिलावृष्टि सहित आँधी ऊर्जा पाता है । अनन्तर दूसरे पुद्गल उनके सवाहन द्वारा का निर्देश है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में बादलों के दो वर्गीकरण गर्म होते हैं। तृतीय सिद्धान्त के अनुमार कुछ वस्तुये सूर्य है। प्रथम सात प्रकार के बादलो के नाम दिए गए हैंकी किरणो के पहने मे गर्म होती है और कुछ नहीं होती। १. अरममेघ २. विरसमेघ ३. क्षारमेघ ४. खात्रमेघ प्रज्ञापना तथा आवश्यक चूणि में अनेक प्रकार की ५. अग्निमेघ ६. विद्युन्मेघ ७. विषमेघ (अशनिमेघ)। हवाओ का महत्त्वपूर्ण अध्ययन है। हवाओ के वर्गीकरण दूमरी बार १. सक्षीरमेघ २. घृतमेघ ३. सघृतमेघ ४. सम्बन्ध मे जैन पूरे भारतीय भूगोल विज्ञान मे अद्वितीय अमृतमेघ ५. रममेघ ६. पुष्करमेघ तथा ७. सवर्तक मेघ है। प्रज्ञापना मे १६ प्रकार की हवाओ का वर्णन है- के नाम है। १-४. चारो दिशाओं की हवायें ५-६ उतरती और चढती त्रिलोकसार मे कहा गया है कि कालमेघ सात प्रकार गर्म हवायें ७. क्षितिज के समानान्तर हवाये ८. जो विभिन्न के होते है। इनमे से प्रत्येक सात दिन वर्षा लाता है। दिशाओ से बहती है। ६. वातोद्भ्रम (अनियमित हवाये) सफेद मेघ १२ प्रकार के होते है, इन्हें द्रोण कहते है। १०. सागर के अनुरूप हवाये ११. वातमण्डली १२. इनमे से प्रत्येक सात दिन के लिए वर्षा लाता है। इस उत्कलिकावात (मिश्रित हवायें) १३ मण्डलीकावात (तेजी प्रकार वर्षा का काल १३३ दिन का होता है। जीवाजीवसे चक्कर खाने वाली हवायें) १४. गुजावात (भरभराहट भिगम की टीका मे तुषार, बर्फ तथा शिलावृष्टि सहित का शब्द करने वाली हवाये १५. झझावात हिंसक हवायें ऑधी और कुहरे का कथन है। जो कि वर्फ गिरने में सहायक होती है । १६. संवर्तक वात इस बात का निर्णय करने का बहुत सुनिश्चित आधार (किसी विशेष क्षेत्र की हवा जो कि सूखे वनस्पतियो मे भर है कि जनो के मनुष्य शरीर रचनाशास्त्र तथा चरित्र जाती है १७. घनवात (बलदायक हवा) १८. तनुवात शास्त्र विषयक विचार बड़े बुद्धिमत्तापूर्ण थे और इन १६. शुद्धवात (Gentil Wind) आवश्यक चूणि मे १६ शाखाओ विषयक उनकी जानकारी किसी से कम नहीं प्रकार की हवाओं की सूची है---१. प्राचीन वात (पूर्वी थी। प्रज्ञापना केमनुष्यप्रज्ञा सूत्र ३६ अध्याय १ में मनुष्य,
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy