SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन भूगोल : कुछ विशेषतायें डॉ. रमेशचन्द जैन जैनो के अनुसार विश्व नित्य है, इसका कोई उत्पत्ति ३. उपल (चट्टाना और कच्ची धातुओ के अनेक प्रकार आदि और अन्त नही है। यह विश्व दो भागो मे विभाजित ४. चट्टाने ५, नमक अथवा नमकीली चट्टान ६. बजर भमि है-लोकाकाश और अलोकाकाश । लोकाकाश में सभी ७-१३ लौह तथा कच्ची धातुएँ १४. हीरा १५, १६, द्रव्य है। आलोकाकाश मे केवल आकाश है। जनो ने गति १७. दूसरी चट्टानी निमितियाँ १८. सुरमा १६. मगे के और स्थिति के नियामक धर्म और अधर्म दो द्रव्य अलग समान २०. अभ्रक २१-२२ अभ्रक की रेत २३ गोमेदक से माने है। जिन्हे अन्य किसी दर्शन ने नहीं माना है। (कीमती पत्थर का एक प्रकार) २४ रुचक (एक कीमती आलोकाकाश पूरी तरह किसी वस्तु के द्वारा अप्रवेश्य है, पत्थर) २५ अक २६ बिल्लौर के समान स्वच्छ चट्टाने चाहे वस्तु आत्मा हो या पुद्गल (Matter)। पृथ्वी मण्डल २७ लाल तहदार चट्टान की परत २६-४० रत्न, ग्रेनाइट मध्य के अधोभाग में है। नीचे नरक है। ऊपर स्वर्ग है। तथा परिवर्तनीय चट्टाने एव तलछट सम्बन्धी खनिज द्रव्य । सारा ससार घनोदधिवातवलय, घनवातवलय और जीवाजीवाभिगमोपाङ्ग मे मिट्टी के विज्ञान सम्बन्धी तनुवातवलय नामक वायु की मोती पर्त के सहारे कुछ सूचना है। इसमे मिट्टियो के ६ भेद बतलाए गए हैस्थित है। जैन विचारको ने विश्व के विस्तार का १. अच्छी उपजाऊ मिट्टी २. शुद्ध मिट्टी जो पर्वतीय प्रदेणी माप भी दिया है। यह श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार मे पाई जाती है। ३. मन.शिल (कुछ चट्टानी मिट्री) २३६ राजू घनाकार तथा दिगम्बरों के अनुसार ३४७ राज ४. रेतीली ५. ककरीली ६. गोल पत्थर अथवा पत्थरो की घनाकार है। पृथ्वी अतिगोल (गेदाकार) है। सूर्यप्रज्ञप्ति प्रचुरता से युक्त। मलयगिरि टीका मे उपर्युक्त मिट्रियो मे में कहा गया है कि जब दिन का समय १८ मुहर्त होता है से प्रत्येक की आयु बतलाई गई है। प्रथम मिट्टी एक हजार तो पृथ्वी के प्रकाशित होने का क्षेत्र ७२ हजार योजन वर्ष तक रहती है, दूसरी मिट्टी १२ हजार वर्ष, तीसरी होता है। जब दिन का समय १२ मुहर्त होता है तो १४ हजार वर्ष, चौथी १६ हजार वर्ष, पाँचवी १५ हजार प्रकाशित पृथ्वी का क्षेत्र ४८ हजार योजन होता है। वर्ष, छठी २२ हजार वर्ष । अनेक जैन कृतियो मे इस तथ्य का निर्देश किया गया है सूर्यप्रज्ञप्ति (४०० ई० पू०) मे सूर्य की किरणो के कि हमारी दुनिया में दो चन्द्रमा तथा दो सूर्य है। सूर्य- सामने किसी वस्तु के रखने की क्रिया (Incolation), प्रज्ञप्ति में ग्रहण के दो सिद्धान्तो का विवेचन किया गया किरण फेकना (Radiation) सूर्य के प्रकाश का प्रतिबिम्बन है। इससे स्पष्ट है कि इस कृति का लेखक चन्द्रमा और (Riflection), ऊर्जा (Energy) तथा पृथ्वी एव विभिन्न सूर्य की परछाई दिखलाई पडने के सही सिद्धान्त से धरातलो का गर्भ होना इत्यादि विषयो पर विस्तार से परिचित था और मनुष्यो का एक वर्ग ऐसा था, जिसने इस विवेचन है। यह वर्णन यथार्थ में प्रशसा योग्य है, क्योंकि सिद्धान्त को स्वीकार किया था। इस पुस्तक मे इतने विस्तार से और स्पष्ट रूप से विषयों ___ आयै साम अथवा श्याम (२५० B. C.) भूमि प्रदेश का सही विवेचन इतने प्रारम्भिक समय मे किया गया है, का विभाजन ४० रूपो में करते है—(१) कॅकरीली भूमि जो कि आधुनिक युग के अध्ययन का विषय है। चौथे छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों से भरपूर भूमि) २. रेतीली प्राभृत सूत्र २५ में किसी वस्तु को शुद्ध करने के लिए सूर्य १. आधारग्रन्थ-Development of Geographic knowledge in India (प्रो० मायाप्रसाद त्रिपाठी)
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy