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________________ ( गतांक से आगे) अपभ्रंश काव्यों में सामाजिक चित्रण लोकाचार एवं अन्य विश्वास भारतीय जीवन में लोकाडियां एवं अन्धविश्वासों का अपना विशेष महत्व रहा है। ग्टजनों के स्वागत अथवा विदाई के समय उनके प्रति लोक विश्वासो के आधार पर श्रद्धा समन्वित भावना से कुछ कर्तव्यकार्य किये जाते हैं। इनमें दही, नरसों (सिद्धार्थ), दूर्वादल एवं मंगल कलश जैसी उपकरण सामग्रियों का प्रयोग किया जाता था। महाकवि पुष्पदन्त ने चक्रवर्ती भारत की दिग्विजय यात्रा से लौटने पर लिखा है कि "उस समय जनसमूह आनन्द विभोर हो उठा, राजमार्ग केशर से सीच दिया गया, कपूर की रगोली पूरी जाने लगी, दूर्वादल, दही एव सरसों से स्वागत की तैयारी की जाने लगी' । सर्वत्र वन्दन - बार सजाये जाने लगे " मेहेमर चरिउ 'मैं मगनावार मन्त्राचार, गीत-नृत्य आदि की भी चर्चाए आई है । शकुन-अपशकुन शकुन-अपशकुन जन-जीवन की आस्थाएव विश्वास के प्रमुख तत्व है। अपभ्र श काव्यां में उनके प्रसग प्रचुर मात्रा मै उपलब्ध होते है | स्त्री का दाया एव पुरुषों का बाया नेत्र फरकना, बाल खोले हुए स्त्री का रोना, कोए का विरस बोलना, सियार का रोना, या लगडा कर चलना, गधे का रोना, नक्षत्रों का टूटना, मृग का दायी और भागना इन्हे कवियो ने अपशुकन की कोटि मे रखा है' | स्वप्न में धरती का कम्पन, मूर्ति का हिलना, आकाश मे कबन्ध का नृत्य, राजछत्र का टूटना, दिशाओं का जलना दिखाई देना आदि को अपशुकन कहा गया है* । मेहेसर चरित में एक प्रसंग में कहा गया है कि सुलोचना जब अपने प्रियतम मेधेश्वर के साथ ससुराल के लिये प्रस्थान करती है सब मार्ग मे गंगा तट पर विश्राम करती है। रात्रि के अन्तिम प्रहर में वह स्वप्न देखती है कि एक कल्पवृक्ष गिर रहा है, और उसे कोई सम्हालने का प्रयत्न कर रहा है। इसी प्रकार एक दूसरे स्वप्न में वह माना मणिरत्नों से लदे हुए जहाज को समुद्र मे डूबते डा० राजाराम जैन हुए देखती है। प्रातःकाल जब वह अपने प्रियतम से इन स्वप्न का फल पूछती है तब मेघेश्वर उन्हें दुख स्वप्न कह कर भयंकर भविष्य की भूमिका बतलाता है । 'सिरिवाल चरिउ' मे एक स्थान पर शुभ स्वप्न की चर्चा आई है। चम्पानरेश अरिदमन की महारानी कुन्दप्रभा रात्रि के अन्तिम प्रहर में दो स्वप्न देखती है । प्रथम मे यह वचन का दर्शन करनी है और दूसरे में फलों से लदे हुए कल्पवृक्ष का । वह प्रात काल ही अपने पति से स्वप्नफन पूछती है तो पति उसे शीघ्र ही सुन्दर पुत्ररत्न की प्राप्ति की सूचना देता है । आमोद-प्रमोद अपक्ष - काव्यों में आमोद-प्रमोद एवं मनोरंजन की दो प्रकार की प्रथाएं देखने को मिलती है, एक तो वे, जिनका सम्बन्ध राजघरानों से था और दूसरी वे, जिनका सम्बन्ध जन-साधारण से था । राजघरानों में नृत्यगान गोष्ठिया आखेट जल कोड़ा तथा उपवन-कीडा प्रधान है। नृत्य-गान दोनों ही प्रकार के होते थे, शास्त्रीय भी एव लौकिक भी। पुष्पदन्त ने सगीत के भेद-प्रभेदों की भी चर्चा की है' जो भरत मुनि के नाट्यशास्त्र अध्याय ( ४, ५, ११) से पूर्णतया प्रभावित है । स्वयम्भूकृत पउमचरिउ मे भी इसी प्रकार के उल्लेख मिलते है । जन साधारण में दोला क्रीड़ा, रासलीला चर्चरी, द्यूतकीड़ा, साले तालियों से हसी मजाक आदि के उल्लेख मिलते है । नट-प्रदर्शन के प्रसंग भी प्राप्त होते हैं । पुष्पदन्त ने लिखा है कि नानकुमार यूतक्रीड़ा में बड़ा दक्ष था, उसने उसके द्वारा अर्जित सम्पत्ति से मा के गहने बनवाये थे। हरिवश चरित में वरणाहरण का उल्लेख भी मिलता है" । आर्थिक परिस्थितियां अपभ्रंश -काव्यों में प्राय: समृद्ध समाज का ही वर्णन मिलता है अतः दीन-हीन एवं दरिद्रता प्रताड़ना से पीड़ित । जन इसमें क्वचिन् कदाचित् ही दिखाई पड़ते । हैं ।
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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