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________________ ब्रह्म जिनदास को तीन अन्य रचनाएं खोज करने पर विदित हुआ कि प्रस्तुत सुगन्ध दशमी मिलेगी। कई रचनाओ के नाम तो मैने देखे भी है पर कथा सन् १९६६ में डा० हीरालाल जैन सम्पादित एव नोट नहीं किए। न अन्य भण्डारी की प्रकाशित सूचियां भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित 'सुगन्ध दशमी कथा' नामक देखने का ही समय मिला है । अत: मेरा तो यही लिखना ग्रन्थ के पृष्ठ ५१ से ६४ तक में प्रकाशित भी हो चुकी है कि नागौर भटार के प्रकाशित उक्त शोध-प्रबन्ध को है। डा. हीरालालजी ने इसकी भापा स्पप्टन गुजराती पूरा नहीं समझा जाय और कवि की अन्य रचनाओ व बतलाई है । और नव भापो-ठालो में यह विभक्त है। प्रतियों की खोज जारी रखी जाय, जिसमें नई जानकारी इसके आदि अन्त के कुछ पद्य नीचे दिए जा रहे है- प्रकाश में आती रहे। आदि-- वास्तव में तो कवि ने लम्बे काल तक साहित्य-सजन पच परम गुरु, पच परम गुरु । प्रणमेषु । किया है। अत. छोटी-बड़ी शताधिक रचनाएं प्राप्त सरस्वति स्वामीणमि विनवु सकल कीरति गुणसार । होगी । उनका एक संग्रह-ग्रन्थ हमारे 'समय सुन्दर कवि भुवन कीरति गुरा उपदेस्यु करस्यु रास निरभर । कुमुमाजलि' की तरह प्रकाशित होना चाहिए। जिससे सुगध दशमि कथा रवडी, ब्रह्म जिनदास भणे सार। कवि की रचनाओं का समुचित मूल्याकन हो सके। भवियण जन सबोधवा, जिमि होद पुण्य विस्तार। यहा यह स्पष्टीकरण कर देना आवश्मक समझता हू अन्त - कवि की रचनाओं की भाषा हिन्दी लिखी व मानी जाती श्री सकलकोरति प्रणमिजइ, मुनि भुवन कीरति भवतार । है पर वास्तव में वह तत्कालीन राजस्थानी व गुजराती ही रास कियो मे निरमली, सुगध-दशमि सविचार ॥४२॥ है क्योकि कवि का विचरण क्षेत्र ये दोनो प्रान्त रहे है और पढे गुण जे साभल, मनि धरइ अनि भाव। उसमे भी गुजराती का प्रभाव अधिक है। ब्रह्म जिनदारा भणे सवडी, ते पामै सुख-ठाव ॥४३॥ डा० हीरालाल जैन ने सुगन्ध दशमी कथा को प्रस्ता आश्चर्य है कि १६६६ मे रचित इस रचना का बना पृष्ठ २० ब्रह्म जिनदास ने ६७ रचनाओ के नाम उल्लेख भी डा० राबका ने नहीं किया। दिये है उनमें सेअब सस्कृत की इन दो रचनाओ का विवरण नागौर १. बागधी २. जोगी ३. जीवदया ४. श्रेणिक ५. करभण्डार सूची से दिया जा रहा है जिनका उल्लेख उस कुण्डु ६. प्रद्युम्न ७. कलश दशमी ८. मद्रसप्तमी भ. अष्टाशोध-प्रबध मे, सस्कृत के दिए हुए ग्रन्थों की सूची में हिका १०. श्रावण द्वादशी ११. श्रुति स्कध के नाम डा० नही है। रावका के शोध-प्रबन्ध में नहीं पाए जाते उनकी प्रतियो .४३६ बकचूल कथा-ब्रह्म जिनदास दशी कागज । पत्र की खोज होनी चाहिए। इस तरह खोजने पर और भी सख्या-५ । आकार १०॥४४१॥" । दशा प्राचीन । पूर्ण। बहुत-सी रचनाओं के नाम प्राप्त होने सम्भव है क्योकि भाषा संस्कृत । लिपि नागरी । ग्रन्थ संख्या २७२६ । रचना कवि ने दीर्घ आयु पाई सरकृत एब गुजराती में छोटी-मोटी काल-x लिपिकाल-X । विशेष-श्लोक संख्या १०६ हे। अनेको रचनाएं करते ही रहे है । जिन प्रदेशो में कवि का ८६२-होल रेणुका चरित-पं० जिनदास । देशी विचरण अधिक हुआ है उन प्रदेशो एव आस-पास के भडारी कागज । पत्र संख्या-४६ । आकार १०||४५" । दशा- मे तथा कवि के गुरू सकल कीर्ति का भण्डार एवं प्रभाव जीर्ण-क्षीण । पूर्ण। भाषा सस्कृत । लिपि नागरी। ग्रन्थ जहा अधिक रहा होगा वहा भी खोज की जानी चाहिए। सख्या-१५७३ । रचनाकाल-X । लिपिकाल-XI ७. न. ४६२ लब्धि-विधान गाथा १६६ पत्र-५ हिंदी भा. नागौर भण्डार सूची का अभी पहला भाग ही छपा व्रत कथा है । अतः अन्य आगे के भागो में भी ब्रह्म जिनदास की ८. न. ४६१ सुन्ध दशमी कथा गा.x पत्र-८ , और रचनाएं हो सकती है । इसी तरह अन्य भण्डारों की समस्या पत्र-३ भूचियों में भी इस कवि की अन्य बहुत-सी रचनाएँ (शेष पृ० १२ पर)
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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