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________________ सम्यक्त्व कौमुदी सम्बन्धी अन्य रचनाएँ 'अनेकान्त' के पतम्बर १९८१ के पंह में डा०ज्योतिप्रसाद जैन का 'सम्यक कौमुदी नाम शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ है उसमें उन्होंने लिया हैसम्यक्त्वकौमुदी और सम्यक्त्वकौमुदीच्या नामक पठार रचनायें ज्ञात हो सकी है जिनमें से संस्कृत १६ हिन्दी मे रचित है। इनमे १२ दिसम्बर विद्वानो द्वारा तथा ४ श्वेताम्बर विद्वानो द्वारा है बाशे ज्ञात वे रचनायें है। सभव है भी रचनायें हों जो हमारी जानकारी में अभी नहीं पाई हमारी जानकारी मे घर भी रचनायें यपानिरनकोष पृष्ठ ४२३४२४ मे सम्यक्त्वकौमुदी की सबसे प्राचीनतम प्रति पंजाब भडार न० २८१५ वाली सम्वत १३४३ की लिखी हुई बनाई है। यदि यह लेखन सम्बत सही हो तो मूल रचना का रचनाकाल ईस्वी १२वी शताब्दी के पीछे का तो हो नहीं सकता । (१) गुणाकरसूरि की रचना संवत १४०० ईस्वी की बतलाई है वह 'जिन रत्नकोष' के अनुसार विक्रम संवत १५०४ की रचना है। उसका परिमाण १४८५ इनोकों का पोर रचयिता त्रगच्छ के ये है (२) शेर के ग्रंथ का परिमाण ६६५ श्लोको का है । (३) जयचंद्र सूरि के शिष्य का नाम डा० ज्योतिप्रसाद जी ने नहीं दिया है लेकिन जिनरत्नकोष मे उनका नाम जिन हर्षव दिया है। प्रोर रचनाकार सवत १४६२ की जगह १८८७ दिया है। (४) जिन एवं गणि की यह रचना टीका सहित प्रकाशित होने का उल्लेख किया है । टीका सम्वत १४६७ में जयचंद गणि के द्वारा रचित बतलाई है (५) सोमदेव सूरि के जिनरत्नकोष मे रचना का परिमाण ३३५२ श्लोकों का और वे प्रागग गच्छ के सिहृदत्त सूरि के शिप्प थे, लिखा है । ० श्री नगरचन्द नाहटा इनके अतिरिक्त नं०४ में रसराज ऋषि रचना नाम है पर वह संस्कृत मे नहीं, राजस्थानी में है। अन्य संस्कृत रचनाओं में महिलभूषण, यशकीनि ममेन कवि वाविभूषण घोर धूनसागर की रचन में है ये दिन होनी संभव है। 1 इसी तरह जैन कवियों और डा० ज्योतिसाद द्वारा मनुनिखित ६ राजस्थानी भाषा की पद्यवद्ध रचनाओ का विवरण प्रकाशित हुआ है जिनमें से तीन सत्रहवी शताब्दी की और तीन उग्नसी शतब्दी की है। १. सम्यकौमुदी राम-१६२४ माघमुदी १५ बुधवार को नागौर के निकट 'छे' ग्राम मे रचित पंचांग १५५० वतनत्रीय २. सम्यकौमुदीरापादयं चद्रमूरि की परम्परा के राज के १६४६ मा सुदी ५ गुहार जगवती (मेमात ) नव खंडों में रचित विवरण देखें, जैन गुर्जर] कवियो भाग १ पृष्ठ २६९ । I ३. सम्यक्त्वकौमुदी चौपाई - चद्रगच्छ के शक्तियों के शिष्य जगल रवित सं० १६५२ दी इस रचना की एक मात्र ३० पन की प्रति हमारे प्रभय जैन ग्रंथालय मे स ० १६२६ की लिखी हुई है । ४. सम्यक्त्वकौमुदी चोपाई खरतरगच्छ के महोजी की परमारा में कवि प्रालमचद महापाध्याय समय सुन्दर रचित स० १९२२ मिक्सर सुदी ४ मक्षुदाबाद शहर मे सामसुम गोत्रीय मेरी मुगाल के पुत्र मूलचंद द्वारा कारित । ५. सम्यको चौपाई डाल ६२ ऋषि रचित सं० १८७६ वैशाख सुदी १३ (पृष्ठ १२ पर) (कु) बालचन्द नागौर मे ।
SR No.538034
Book TitleAnekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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