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________________ प्राचार्य नेमिचन्द्र और उनका द्रव्यसंग्रह [] डा० कमलेशकुमार जैन उपलब्ध ऐतिहासिक प्रमाणों के प्राधार पर ज्ञात ग्रन्थों के कर्ता है। प्राचार्य मरूतार को उक्त प्राशका होता है कि नेमिचन्द्र नाम के अनेक विद्वान् हुए है जिन्होंने तत्कालीन शोध-खोज प्रेमियों को एक चनौती साबित हुई, अपनी उदात्त मनीषा का परिचय देते हुए भव्य जीवों के जिमसे परवर्ती विद्वानो ने न केवल उक्त दोनो ग्रन्थकर्तामों कल्याणार्थ विभिन्न मौलिक एवं टीका ग्रन्थों का सृजन में भिन्नता स्वीकार की, सपित विभिन्न प्रमाणो गे किया है। पर्याप्त शोष खोज के प्रभाव मे अब तक उद्धत कर उक्त कथन की पुष्टि भी की। नेमिचन्द्र नाम के एकाधिक विद्वानों मे ऐक्य माना जाता नेमिचन्द्र नाम के विद्वान - रहा है, किन्तु ऐतिहासिक मालोकम-विलोकन से अब यह डा० दरबारीलाल कोठिया ने नमिचन्द्र नाम के अनेक मान्यता प्राय: पुष्ट हो गई है कि गोम्मटसारादि के कत्ती विद्वानों पर विचार करते हए नेमिचन्द्र नाम के भिन्नने मिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती मोर द्रव्य संग्रह के कर्ता मुनि भिन्न निम्न चार विद्वानो का उल्लेख किया हैने मिचन्द्र सिद्धांतिदेव दो पृथक पृथक-पृथक् विद्वान है, एक १. मिदान चक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित एव नहीं। गोम्मटमार प्रादि के प्रणेता लगा गंगवंशीय राजा गचमल्ल प्रारम्भ मे श्री शरच्चन्द्र घोषाल ने अपने द्रव्य स ग्रह के प्रधान सेनापनि चामण्ड गय के गुरु नेमिचन्द्र । इनका के अंग्रेजी संस्करण को विस्तृत भूमिका में गोम्मटसारादि समय विक्रम मवत् १०३५ ईमा की दशवी शती है।' के कर्ता और व्यसग्रह के कर्ता नेमिचन्द्र को एक मानते २. नयनन्दि के शिष्य प्रोर बसूनन्दि सिद्धान्तिदेव के हुए टीकाकार ब्रह्मदेव के इस कथन को स्वीकार किया गूळ नेमिचन्द्र । था कि मेमिचन्द्र का अस्तित्व मालवा के राजा भोज के ३. गोम्मट मार को जीवतत्त्व प्रदीपिका के टीकाकार राज्यकाल ई. सन् १.१८ से १०६०' मे था, क्योकि नेमिचन्द । इन का समय ईसा की भोलहवी शताब्दी है। उपर्युक्त समय में उसका अस्तित्व मानने के अन्य विभिन्न ४. द्रव्य संग्रह के कर्ता नेमिचन्द्र । स्रोतों से सिद्ध नेमिचन्द्र का समय ईसा की दशवी शती के उर्यक्त चार विद्वानो मे से दूसरे एवं चौथे नेमिचन्द्र स्थान पर ईसा को ग्यारहवी शती हो जाता है। को डा० कोठिया ने विभिन्न प्रमाणो क अाधार पर एक श्री घोषाल के इस कपन पर मापत्ति प्रकट करते हुए सिद्ध करते हुए द्रव्यसग्रह के कत्ता नेमिचन्द्र सिद्धात देव पाचार्य जगलकिशोर मुख्तार ने "जैन हितैषी" में "द्रव्य- का समय विक्रम सवत् ११२५ ईमा की ग्यारहवी शती संग्रह का प्रग्रेजी संस्करण नामक एक लेख में लिखा था के प्रास-पास निर्धारित किया है तथा डा. नेमिचन्द्र कि यह मापत्ति तभी उपस्थित होती है जबकि पहले यह शास्त्री विक्रम की बारहवी शती का पूर्वाधं । ये दोनो सिद्ध हो जाय कि यह द्रव्यसंग्रह ग्रन्थ उन्ही नेमिचन्द्र मत एक ही समय की ओर इगित करत है। सिद्धान्त चक्रवर्ती का बनाया हुपा है जो गोम्मटसार मादि नभिचन्द्र नाम के उपयुक्त विद्वानो के अतिरिक्त १. पुरातन जैन वाक्य सूची, प्रस्तावना, पृष्ठ ६४ । 6. वही प्रस्तावना, पृष्ठ २६। २. द्रष्टव्य-युग निबम्बावली, द्वितीय खण्ड, ५. द्रव्यमग्रह प्रस्तावना, पृष्ठ ३२-३६ । पुष्ठ ५३९-५५६ । ६ तार्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य परपरा, खण्ड ३. द्रव्य संग्रह, प्रस्तावना, पृष्ठ २६-३२ । २, पृष्ठ ४४१ ।
SR No.538034
Book TitleAnekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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