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________________ १६, वर्ष ३४, कि० २-३ अनेकान्त जल्लाल बाग के नाम से अब भी जाना जाता है। किन्तु था-उसकी उपाधियों में भी पाजम-मुअज्जम विद्यमान पशुषों के लिएविश्राम गृह बनवाना, यह तो जैन परम्परा है जो बाद के उत्तराधिकारी बराबर प्रयोग में लाते रहे । का सूचक है। मान्डव के सुलतान और चन्देरी के राज्यपाल, गैरभट्टारकीय पृष्ठभूमि मुस्लिम जनता का हृदय मोहने के लिए, मन्दिर बनवाने ईसा की पन्द्रहवी शताब्दी में गोरी-खिलची सुलतानो और मूर्तियो गढवाने पर कोई रोक-टोक न करते थे और के तत्वावधान मे बुन्देलखण्ड क्षेत्र में दिगम्बर जैनियो को जैन व्यापारियों को उच्च पद तथा सम्मान प्रदान करते गतिविधियां बढ़ गई थी। एक तो होशंगशाह गोरी तथा थे। सुदृढ़ शासन ही व्यवसाय वर्धक होता है और राजमहमूद शाह खिलची जैसे महान एव महत्वाकाक्षी सुल- भक्ति एवं स्वामी भक्ति की नींव डालता है। तभी तो तानों ने प्रथम स्वतंत्र शासक दिनावर की उदार एव सुलतान गवासुद्दीन खिलजी के समय में (१४६६-१५००)। जैन-पक्षीय नीति को पागे बढाया। दूसरे यह कि परिहारो फारसी के माथ सस्कृत शिलालेखों का बाहुल्य पाया जाता के चन्देरी राज्य का महत्व, जो दिल्ली के खिलजी-तुगलुक है और जैन ग्रन्थ-प्रशस्तियो में बड़ी संख्या में उसका सुलतानों ने चन्देरी में राज्यपाल और बटिहागढ मे उप- उल्लेख मिलता है और ये शिलालेख ग्रन्थ-प्रशस्तियो में राज्यपाल रख कर, पिछ नी एक शताब्दी मे कायम रख दूरवर्ती क्षेत्रो में पाई गई है। देवगढ क्षेत्र के शिलालेख में था-उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया और अबू चन्देरी, होशंगशाह को 'पालम शाह' कहा गया है (१४२४ ई.)। मालवा की उपराजधानी हो जाने के कारण उसकी वही यह देवगढ, खजुराहो पतन के पश्चात् चन्देरी देश का मान्यता रही जो पहले थी। हाँ मुनतान महमूद खिलजी तत्कालीन सबसे बड़ा जैन सास्कृतिक केन्द्र बन गया था के समय, उपराज्यपाल का कार्यालय बटिहा से उठ कर जहाँ जैनियो ने मन्दिरो मतियो की स्थापना की योजना 'दमोव' (दमोह) प्रा गया और दमाह से समूचे दक्षिणी चाल की थी। मूति-लेख में सुलतान का नामोल्लेख, तुर्की बन्देलखण्ड पर-वर्तमान सागर जिले से जबलपुर जिले शासको को धार्मिक सहनशीलता का द्योतक है। इन के बिलहरी (मुडवारा तहसोल, कटपी) तक का शासन सूलमानों की राजधानी माण्डवगढ़ तो प्रोसवाल-श्रीमाल सचारु रूप से होने लगा। इस समूचे चन्देरी क्षेत्र में, जाति के श्वेताम्बरों का गढ़ बनी हुई थी पौर सौ वर्षों जिसको शिलालेखो मे 'चन्देरी देश' कहा गया तक वे लोग न केवल दरबार में छाये रहे प्रपितु सस्कृत है-दमोह को जो महत्व प्राप्त हुपा उसके कारण उसका भाषा में धार्मिक ग्रन्थो की रचना करते रहे और कल्पसूत्र उल्लेख 'दमांचा देश' के नाम से होने लगा और घब कालकाचार्य कथा के ग्रन्थो में उच्च शैली के चित्र बनबटिहा छोड़ कर जैनी महाजन और सेठ भी दमोह तथा वाते रहे और अनेको ग्रथो की लिपिया कराते रहे। बिलहरी तक फैल गये और उनको बस्तियो में प्राचार्य प्राधुनिक विद्वानों ने मूर्ति लेखो, पट्टावलियो और ग्रथभट्रारक मनि तथा सतो का आवागमन हुप्रा ।मन्दिरों- प्रशस्तियो के आधार पर भट्टारकीय दिगम्बर संघो के पट्टों मतियों का निर्माण तथा ग्रन्थो की रचना साथ-साथ का उल्ले व किया है और पट्टाधीशो को नामावली बनाई चली। इस नवीन प्रगति को समझने के लिए भट्टारकीय है जिससे यह स्पष्ट हमा है कि एन्द्रहवी शताब्दी ईस्वी माम्दोलन का उल्लेख करना अावश्यक है । ग्रंथ प्रशस्तियो में भट्रारक गुरुपो से प्रेरणा लेकर जन गृहस्थों ने बड़ी में प्राय: इस युग में ग्रन्थ तथा ग्रन्थकर्ता के साथ 'महाखान स्फति से मूर्तियों, मन्दिरों, चैत्यालयो एव उपासरामो का भोजखान' का उल्लेख किया जाता था। यह विरूद निर्माण कराया। नरवर तथा सोनागिर के अतिरिक्त उस फारसी के 'प्राजम मु प्रजनम' का अनुवाद (प्राजम-महा) समय उदयगिरि, एर छ, प्राहार एव पपोरा के लघु-केन्द्रो भी है और अपभ्रंश (मप्रजनमभोज) भी। दिलावर का में सांस्कृतिक गतिविधियाँ चलती थी।। ज्येष्ठ पुत्र होशंश तो मान्डव की गद्दी पर बैठा पोर इसी समय मूल सघ-सरस्वती-गच्छ-नन्दी लहरा बेटा का खान, जो चन्देरी का प्रथम राज्यपाल माम्नाय के भट्रारक देवेन्द्रकीति द्वारा बन्देरी में एक पद्र
SR No.538034
Book TitleAnekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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