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हिन्दी साहित्य में नेमी-राजुल
डा० कस्तूरचन्द्र कासलीवाल, जयपुर
हिन्दी के जैन कवियों के अपने काव्यो को विषय. शृंगार रस से प्रोत-प्रोत होता है और वह पाठक के वस्तु प्रमुख रूप से महापुराण, पद्मपुराण एवं हरिवंशपुराण हृदय को खिला देता है और जब वैराग्य धारण करने का के प्रमख पात्रों का जीवन रही है। इनमे ६३ शलाका प्रकरण चलता है तो सारा काव्य शान्त रस प्रधान होकर महापुरुषों के अतिरिक्त १६६ पुण्य पुरुषों के जीवन चरित हृदय को द्रवीभूत कर देता है। प्रस्तुत शोधपत्र में हम भी जैन काव्यों की विषय-वस्तु के प्रमुख स्रोत रहे है। ऐसे ही काव्यो का उल्लेग्व कर रहे है जो काव्य के विविध राजुल, मैना सुन्दरी, सीता, अजना, पवन जय, श्रीपाल, रूपो मे लिखे हुए है तथा जिनको कथावस्तु नमिराजल भविष्यदत्त, प्रद्युम्न, जिनदत्त, सुदर्शन सेठ प्रादि सभी का जीवन है। पुण्य पुरुष है जिनके जीवन चरित के श्रवण एव पठन मात्र सुमतिगणिनेमिनाथ राम सभयतः हिन्दी म नमि से हो अपार पुण्य की प्राप्ति होती है और वही पुरुष राजुल सबधित प्रथम रचना है जिसका रचना काल संवत् भविष्य में निर्वाण पथ के पथिक बनने में सहायक होता १२७० है और जिसको एक मात्र पाण्डुलिपि जैसलमेर के है। हिन्दी के ये काव्य केवल प्रबन्ध काव्य अथवा खण्ड बृहद ज्ञान भण्डार में उपलब्ध होती है। इस रास में काव्य रूप में ही नही मिलते है लेकिन रास, बलि, पुराण, तोरणद्वार की घटना का प्रमुखता वर्णन किया गया है। छन्द, चौपाई, चरित, ब्याहलो, गीत, धमाल, हिण्डोलना,
१६वी शताब्दी के कवि बुचराज द्वारा नेमि-राजुल सतसई, बारहमासा, संवाद, जखडी, पच्चीसो, बत्तीमी,
के जीवन पर दो रचनाये निबद्ध करना उस समय जनसवय्या प्रादि पचासों रूपों मे ये का लिखे गये है जो
सामान्य मे राजुलन मि के जीवन की लोकप्रियता को प्राज अनुसंधान के महत्त्वपूर्ण विषय बने हुए है।
प्रदर्शित करने के लिये पर्याप्त है। बुचराज की एक कृति लेकिन शलाका पुरुषों एव पुण्य पुरुषो के जीवन
का नाम बारहमासा है जिसमें सावन मास में अषाढ मास सम्बन्धी कृतियों में राजलनेमि के जीवन से सम्बन्धित
तक के बारह महीनो के एक एक पद्य में राजल की विरह कृतियों को सबसे अधिक संख्या है। बाईसवें तीर्थंकर
वेदना एव नेमिनाथ के तपम्वी जीवन पर राजल का नेमिनाथ के जीवन के तोरणद्वार से लौट कर वैराग्य प्राक्रोश व्यक्त किया गया। बाद में जल धारण करने को एक मात्र घटना में सारा हिन्दी जैन मनोगत मावो को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि साहित्य प्रभावित है। उसो घटना को जैन कवियो ने वह पाठकों को प्रभावित किये बिना नही रहते। कवि के विविध रूपों में निबद्ध किया है। नेमिनाथ के साथ राजुल प्रत्येक रास मे व्यथा छिपी हुई है और जब वह परिणय भी चलती है क्योकि राजुल के परित्याग की घटना को को पाशा लगाये नव यौवन राजुल के विरह पर मजीव जैन कवियों ने बहुत उछाला है और अपने पाठको के चित्र उपस्थित करता है तो हृदय फूट-फूट कर रोने लगता लिये शृंगार, विरह एवं वैराग्य प्रधान सामग्री के रूप में है। राजुल को प्रत्येक महीने मे भिन्न-भिन्न रूप में प्रस्तुत किया है। एक मोर जहाँ बारहमासा काव्यो की विरह वेदना सताती है और वह उस वेदना को सहन सर्जना करके पाठकों को विरह वेदना मे डुबोया है वहाँ करने में अपने प्रापको प्रसमर्थ पाती है। जैन कवियों ने दूसरी भोर तोरणद्वार तक जाने के पूर्व का वृत्तान्त बारहमासा के माध्यम से इस विरह का बहुत सुन्दर एव