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________________ वर्ष ३४ किरण १ श्रीम् ग्रर्हम् अनेकान्त परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्ध सिन्धुरविधानम् । कलनगविलमितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर- सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर- निर्वाण सवत् २५०७ वि० सं० २०३७ णमोकार - महिमा घरघाइकम्ममा, तिहुवरणवरभव्व-कमलमत्तण्डा । रातराणी, प्रागुवमसोक्खा जयंतु जए ॥१॥ विकम्मवियला, स्पिठिपकज्जा परणटुसंसारा । मित्यमारा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥ २ ॥ पंचमहव्ययतुंगा, तक्कालिय- सपरममय - सुदधारा । सामागुगरिया, आइरिया मम पसीदंतु ॥३॥ जनवरी-मार्च १६८१ तिमिरे, दुनतीरम्ह हिडमारणारणं । भवियाजीयरा, उवज्झाया वरर्याद देतु ॥ ४ ॥ थिरपरि मोलभाला, बगराया जसोहपडिहत्था । बहुविभूसिंगंगा, सुहाई साहू पयच्छंतु ॥५॥ भावार्थ गन-पानि कर्मा का यानी न करने वाले, तीनो लोकों में विद्यमान भव्यजीवरूपी कमलों को विकसित करने वाले और अनुपम सुखमय अरहंतों की जगत् में जय हो । टकों से कृत्य जगत्यु के चक्र से मुक्त तथा सकलतत्त्वार्थ के दृष्टा सिद्ध मुझे सिद्धि प्रदान करे । समय और पर समयरूप श्रुत के ज्ञाता तथा नाना पंचमहातो से समुन्नत, तत्काली न हों। जिसका श्रोर-छोर पाना कठिन है, उस अज्ञानरूपी घोर अधकार में भटकने वाले भव्यजीवों के लिए ज्ञान का प्रकाश देने वाले उपाध्याय मुझे उत्तम मति प्रदान करे । गुणसमूह से परिपूर्ण याचार्य मुझ पर शीलरूपी माला को स्थिरतापूर्वक धारण करने वाले, संगरहित, यशः समूह से परिपूरणं तथा प्रवर विनय से अलंकृत शरीर वाले साधु मुझे सुख प्रदान करें । שרים
SR No.538034
Book TitleAnekant 1981 Book 34 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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