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दक्षिण को जैन पंडित परंपरा
पं० मलिलनाथ जैन शास्त्री, मद्रास
तमिल, कर्नाटक, प्राध्र और मलयांक नामक चार रचनायें हो साहित्य क्षेत्र में या भाषा के क्षेत्र में मेर प्रान्तो से जो समाविष्ट है, उसे दक्षिण भारत कहते है। शिखर के समाज महनीय गरिमा से मोत-प्रोत हैं। उनका मगर इसमें विचार करने की बात यह है कि तमिल और विवरण प्रागे दिया जा रहा है। कर्नाटक प्रान्तो मे ही प्राज भी जैन धर्म प्रवशिष्ट है और तमिल में उपलब्ध ग्रन्थ राजो में पता लगता है कि जैन विद्वानों से रचे गये अमूल्य जैन ग्रन्थ उपलब्ध होत उनके निर्मातागण ज्ञान सिन्धु के प्रमूल्य रत्न थे। ऐसे हैं। लेकिन प्रान और मलयालं में, न तो स्थानीय जनी ज्ञान पारावार के कुछ प्रभुत रत्नो का परिचय कराना लोग रहते है और न जैन ग्रन्थो की उपलब्धियाँ पायी प्रत्यन्त प्रावश्यक समझता हू। विद्वद्रत्न पंडितो ने जाती है । इसका मतलब यह नही है कि पुराने जमाने में प्राश्चर्य मय रचनायें तो की है, मगर नाम पोर यश को भी वहाँ जनी लोग न थे । परन्तु भरमार जैनी लोग रहत नगण्य समझने वाले वे महापुरुष कई ग्रन्थराजो के अन्दर थे पोर जैन धर्म भी उन्नत दशा पर था। लेकिन काल अपने नाम तक नही दिये है। ऐसे उदारमना सत्पुरुषो के के प्रभाव से कहिये या मत-मतान्तरो के विद्वेष से कहिये, बारे में क्या कहा जाय ? जिन-जिन के नाम मिलते हैं, वहाँ जैन धर्म जैन समाज एव जैन साहित्य इन सब का उन्हें नाम से जानें जिनके नाम नही मिलते उन्हें उनके लोप-सा हो गया। फलत प्रब इन दोनो प्रान्तो में केवल ग्रन्थो से परिचय कर लें। प्रतः काल पौर प्रन्यो के नाम जैन मन्दिरो के खण्डहर तथा जैनाचार्यों के निवास स्थान देने के साथ जिन महान प्राचार्यों परितो के नाम मिलते के रूप गुफाये, शिलालेख प्रादि काफी मिलते है। उनकी है यहाँ सिर्फ उन्हे सूचित करूंगा। सुरक्षा सरकार में किसी तरह नही की जाती।
उन महान प्राचार्य पण्डितो का काल, नाम पोर ग्रम्प तमिल और कर्नाटक प्रान्तो ता जैनी लोग काफी सारणी मे दिये गये है। इनसे पता चलता है कि इन्होने सख्या में रहते है और जैन माहित्य एव जैन कला प्रादि मभी प्रकार के विषयों पर ग्रन्थ लिखे है। ये प्रस्थ ईसापूर्व को भी उपलब्धियां पाया जाती है। तमिल प्रान्त को सदियों से प्राज तक लिख पाये जाते है। अपेक्षा कनाटक में प्रभाव कुछ ज्यादा है। उसका बहुत सारणीतामिल में जैन पंडित परंपरा का विवरण बड़ा कारण वहा क कि जगप्रसिद्ध विगिरो कमाल
काल पंडितो के नाम साहित्य प्रम्प अधिनायक भगवान गोमटेश्वर है।
(अ) प्रमुख प्रन्थ तमिल प्रान्त के निवासी होन के नाते मैं इस प्रान्त
६० पूर्व ३०० वर्ष प्रगत्तियर पेरगत्तिय के जन विद्रनो की रचना एवं सेवा प्रादि को बता कर
,, , तोल कापियर तोलकाप्पियं माप सज्जनों को चकित कराने का प्रयत्न करूंगा वास्तव
, , २०० वर्ष -
तामोल संघ के ग्रन्थ मे, तमिल भाषा के अन्दर जैन पण्डितो की जो रचनाये , , १०० वर्ष देवर
तिरुक्कुरल , उन सबको तमिल भाषा से अलग कर दिया ई० दूसरी शताब्दी इलंगोवडिगल शिलप्पधिकार जाये, तो तमिल भाषा एकदम फोकी रहेगी। इसका चौथी .. तिहत्तरेवर जीवक चितामणि मतलब यह है कि जैन पाडत कहिय या जैनाचार्य कहिय ..
य काहय , , , तिरत्तक्करेवर नरिविरुत्तम पषवा विम्मम्डली कहिय कुछ भी हो, उनको परंपरागत , पांचवी, तोलामालिदेवर खुलामणि