SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीम पहम् Jনকান परमागमस्य बीज निषिद्धजात्याध सिन्धविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमपनं नमाम्यनेकान्तम् ।। वर्ष ३३ किरण ३ वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर-निर्वाण संवत् २५०६, वि० सं० २०३७ जुलाई-सितम्बर १९८० । जिनवाणी अनंतधर्मरणस्तत्त्वं पश्यंती प्रत्यगात्मनः । अनेकान्तमयोमूर्तिनित्यमेव प्रकाशताम् ॥ अर्थ-अनन्तधर्मा परम-आत्मा अर्थात् चैतन्य के परम-अर्थ को, पृथक-रूप में-परद्रव्यो से भिन्न, दर्शाने वाली अनेकान्तमयीमति-जिनवाणी, त्रिकाल-प्रतिसमय तत्त्व को प्रकाशित करे। अध्या० तरं०-(अनेकान्तमयी मूर्ति) अनेकान्त अर्थात् स्याद्वादमयी मूर्ति -जिनवाणी। यहां जिनवाणी शब्द प्रयोग न किए जाने पर भी अनेकान्लात्मक होने से सामर्थ्य से जिनवाणी अर्थ फलित होता है। (नित्य) सदा-त्रिकाल । (प्रकाशताम् ) प्रकाशित अर्थात् उद्योतित करे। कैसो है जिनवाणी ? (प्रत्यगात्मन) परम-आत्मा अर्थात् चैतन्य रूप के (प्रत्यकतत्त्वं पश्यन्ती) भिन्नतत्त्व अर्थात् स्व-स्वरूप को प्रकाशित करती है। कैसा है आत्मतत्त्व ? (अनन्तधर्मण ) दो बार अनन्त अर्थात् अनन्तानन्त धर्मप्रमाण, अस्तित्व, नास्तित्व, नित्यत्व, अनेकत्व आदि धर्मवाला है। यद्यपि धर्म शब्द पुण्य, समन्याय, स्वभाव, आचार आदि अनेक अर्थो वाला है, तथापि यहां धर्म शब्द स्वभाव वाचक है। 000
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy