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________________ जैन विज्ञान D० हरिसत्य भट्टाचार्य चिन्ता तथ्य की खोज करता है उसे स्वार्थानुमान और जिस वचन. साधारतः चिन्ता को तकं या ऊह कहा जाता है। विन्यास द्वारा उक्त अनुमापक अन्य को यह तथ्य समझाता प्रत्यभिज्ञान प्राप्त दोनों विषयों में अच्छेध सम्बन्ध की उसे परार्थानुमान कहते हैं। ग्रीक दार्शनिक Aristotle खोज करना तर्क काम है। पाश्चात्य मनोविज्ञान अनुमान के तीन अवयव बतलाता है-(१) जो-जो इसे (Induction) कहता है। यूरोपीय पण्डित कहते हैं धूमदान हैं वह वह्निमान् है, (२) यह पर्वत धूमवान् है, कि Induction observation या भूयोदर्शन का फल है। (२) यह पर्वत घमवान् है (३) मतएव यह पर्वत वह्निमान जैन नयायिक उपसम्म और अनुपलम्म द्वारा तर्क की है। बौद्ध अनुमान के तीन अवयव इस प्रकार बतलाते प्रतिष्ठा मानते हैं। दोनों के कथन का तात्पर्य एक ही है। है-(१) जो घुमवान् है वह वह्निमान् है, (२) यथा पाश्चात्य साकिक Inductive truth को एक Invariable महानस, (३) यह पर्वत घुमवान है। मीमांसक भी अनुपषवा Unconditional relationship कहते हैं। मान के तीन अवयव मानते हैं। इनके मतानुसार अनुमान जैनाचार्यों में कितनी ही शताब्दी पूर्व यही बात कह दी के ये दो रूप हो सकते हैं। प्रथम रूप-(१) यह पर्वत यो। उनके मतानुसार तलब्ध सम्बन्ध का नाम अविना- बतिमान है, (२) क्योंकि यह घूमवान् है, (३) जो भाव अथवा अन्यथानुपपत्ति है। घूमवान् होता है वह वह्निमान् होता है यथा महानस । वितीय रूप-(१) जोघूमवान् है वह वह्निमान है, (२) अभिनिबोध यथा महानस, (३) यह पर्वत हिमान है। नंयायिक तकलब्ध विषय की सहायता से होने वाले अन्य विषय अनुमान को पञ्चावयव मानते हैं। उनके मतानुसार के ज्ञान को अभिनियोष कहते हैं साधारणतः अभिनिधोष अनुमान का पाकार यह होगा-(१) यह पर्वत वह्निमान् को प्रनमान माना जाता है। इसी को पाश्चात्य प्रन्थों में है, (२) क्योंकि यह धूमयान है, (३) जो धूमवान् है, मनुमान Deduction, Retiocianation अथवा (३) जो घुमवान होता है वह वहिमान होता है यथा syllogism नाम दिया गया है। घुमा देखकर यह कहना महानस, (४) यह पर्वत घुमवान् है, (५) इसलिए यह कि पर्वतो वह्निमान्' (पर्वत में अग्नि है)-इस प्रकार वह्निमान है। अनुमान के ये पांच अवयव क्रमशः प्रतिज्ञा, के बोध का नाम अनुमान है। इसमें पर्वत 'धर्मी', किवा हेतु, उदाहरण, उपनयन पौर निगमन के नाम से प्रसिद्ध 'पक्ष' ; वह्नि 'साध्य' मोर घूम 'हेतु', "लिंग', प्रथवा हैं। जैन दर्शन के नैयायिक कहते है कि उदाहरण, उपनय 'व्यपदेश' है। पाश्चात्य न्यायग्रन्थों में Syllogism के और निगमन निरर्थक है। जैन अनुमान के दो अवयव अन्तर्गत इन्हीं तीन विषयों की विद्यमानता दिखती है। मानते है-(१) यह पर्वत वह्निमान् है, (२) क्योंकि यह इनके नाम Minor term, Major term भोर Middle धुमवान है । जैन कहते है कि कोई भी बुद्धिमान प्राणो इन term हैं। अनुमान व्याप्तिज्ञान पर-पर्थात् अग्नि मोर दो भवयवों से ही अनुमान के विषय को समझ सकता है। धुम में जैसा भविनाभाव सम्बन्ध है उस पर-प्रतिष्ठित प्रतएव अनुमान के मश्य अवयव बेकार हैं। परन्तु यदि है। यह व्याप्ति तत्व पाश्चात्य न्याय के Distribution श्रोता अल्पबुद्धि हो तो उसके लिए जन लोग नवायिकों के of the middle term के अन्तर्गत है। जैन दृष्टि से पांच अवयवो का स्वीकार करते ही है, इतना ही नही अनुमान के दो भेद हैं- (१) स्वार्थानुमान पोर (२) इसके अतिरिक्त प्रतिशाशुद्धि, हेतुशुद्धि जैसे पौर मी पाच परार्थानुमान । जिस मनुमान द्वारा मनुमापक स्वयं किसी अवयव बनाते हैं। यह मावश्यक नहीं कि सम्बावग मंशल लेखकों के सभी विचारों से सहमत हो।
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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