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________________ २०, वर्ष ३३, कि०२ अनेकान्त एतद्धिरा परनाथ (रत्नत्रय) की प्रतिमामों की प्रतिष्ठा कराई ४. ज्ये कृतिराजनस्य ॥ परपाटान्वये सु (शु) द्धे साधु- पौर वे प्रतिदिन उनकी भक्तिपूर्वक पूजा करते थे। इन नम्निा महेस (१) बरः। महेस (श) वरेव विख्यातस्त- मूत्तियों की प्रतिष्ठा कर्मों के क्षय हेतु कराई गई थी। सुतो वो (बो) ध रत्ने की पत्नी का नाम गल्हा था। रत्ने के पिता सूपट ५. संज्ञकः। (1) तत्पुत्रोराजनोज्ञेयः कीत्तिस्तस्ये- थे, वे मनियों के सेवक थे, सम्यक्त्व प्राप्त थे, तथा मद्भुता । जिनेंदुवत्सुभात्यंतं । राजते भवनत्र चविषदान दिया करते थे। सूपट के पिता का नाम ६. ये। तस्मिन्नेवान्वये दित्ये गोष्ठिकावपरौ सु (शु) गणचन्द्र था पोर वे लम्बकञ्चक (माधुनिक लमेचु) भो। पंचमांसे (शे) स्थितो होको द्वितीयो द अन्वय के थे। इस लेख का मूल पाठ निम्न प्रकार है:७. म (श) मांसके ।। पाद्यो जसहडो ज्ञेयः समस्त जससा निधिः । भक्तो जिनवरस्चायो विख्यातो मूलपाठ ५. जिनसा (शा) सने ।। मङ्गलं महाश्रीः ॥ भद्रमस्तु १. ---|| जीयात्री (श्री) सो (शा)ति:--- जिनशासनाय || संवत ११२२ पस्सघातपातकः। -----द्रतिर ----- २. -पदद्वयः ।। संवत् १२०६ ।। अषाढ़ व (ब) दि ___ गूडर का मूर्ति लेख नवम्यां व (बु) धे। श्रीमस्वंव (ब) कंचुकान्वयगृहर, खनियाधाना से दक्षिण में लगभग पाठ किलो- ३. साधुगुणचद्र तत्सुत: साधुसूपट जिनमुनिपाद प्रणतो मीटर की दूरी पर स्थित छोटा-सा गांव है। यहां के (तो)तमागः। सम्यकत्वर--- माधुनिक जैन मन्दिर को विपरीत दिशा में एक खेत मे ४. लाकरः चतुर्विधदानचितामणिस्तत्पुत्रसाधुरत्ने सति तीन विशाल तीर्थकर मूत्तियां स्थित है, जो शांतिनाथ, (ती) त्व व्रतोपेत (ता) तस्य भाकुन्युनाथ और परनाथ की हैं। इनमें सबसे बड़ी प्रतिमा ५. र्या गल्हा तयी पुत्री मामेधर्मतेदेवो (वी) । तेन विसि लगभग नौ फुट ऊंची है। इस प्रतिमा की चरण-चौकी (शि) ष्टतर पुन्या (ज्या) वाप्ती (प्तये) निजपर विक्रम संवत् १२०६ का लेख उत्कीर्ण है । लेख की ६. कम्म (म) क्षयार्थं च पंचमहाकल्याणोपेतं देवश्रीसां लंबाई चौतीस सेंटीमीटर एव चौड़ाई इक्कीस सेंटीमीटर (शां) तिकुथंपरनाथ रत्न है। सात पंक्तियों का लेख नागरी लिपि एवं संस्कृत ७. अयं प्रतिष्ठापित तथाऽहन्निसं (शं) पादो प्रणमत्युत्त भाषा में है। मागेन भक्त्याः (त्या)।000 लेख के प्रारभ में श्री शांतिनाथ की स्तुति की गई उपर्युक्त लेखों के अलावा अन्य कई लेख पचराई में है । मागे बताया गया है कि (विक्रम) सवत् १२०६ में उपलब्ध हैं, जिनमे देशोगण के पंडिताचार्य श्री श्रुतकीति पाषाढ बदि नवमी बुधवार को, लम्बकचुक मन्वय के के शिष्य प्राचार्य शुभनन्दि और उनके शिष्य श्री मामे पौर धर्मदेव के पिता रत्ने ने पञ्चमहाकल्याणक लीलचन्दसूरि मादि के उल्लेख मिलते हैं । महोत्सव का प्रायोजन कर शांतिनाथ, कुन्धुनाथ पौर २३५५/१, राइटटाउन, जबलपुर-२ (मध्य प्रदेश) ५. अनावश्यक है।
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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