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________________ ग्रो मम् अनेकान्त परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्ध सिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वर्ष ३३ किरण २ वीर - सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर - निर्वाण संवत् २५०६, वि० सं० २०३७ नमः समयसाराय सम्यक् त्रिकालावच्छिन्नतया स्वगुरुपर्यायान् प्रयन्ति प्राप्नुवन्ति ते समयाः पदार्थाः तेषु मध्ये सारः परम श्रात्मा तस्मै नमः ।'- { घप्रैल-जून १६८० जा त्रिकालावच्छिन्न स्वगुण और पर्यायों को प्राप्त होते है-उन्ही में विचरण करते हैं, वे समय कहलाते है. अर्थात् पदार्थ । उन पदार्थो में - समयों में जो सारभूत पदार्थ है आत्मा-परम आत्मा । ऐसे समयसार युद्ध आत्मा को मेरा नमस्कार है । ये सम्यक् स्याद्वादात्मकं वस्तु प्रयन्ति जानन्ति सा तिशय सम्यग्दृष्टिप्रभृतिक्षीणकषायपर्यन्ता जीवाः तेषां पूज्यत्वेन सारो जिनस्तस्मै नमः ।' चा सम्यक् म्याद्वादात्मक वस्तु को जानते है ऐसे सातिशय सम्यग्दृष्टि से लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तक के जीव, उन जीवां में जा पूज्यपने से सारभूत हैं ऐसे 'जिन' भगवान है। ऐसे जिन भगवान का मेरा नमस्कार है । 'समं साम्यं यान्ति प्राप्नुवन्ति ते समयाः योगिनः तेषां मध्ये ध्येययतया सारः सिद्धपरमेष्ठी तस्मै नमः ।' जो माम्यभाव को प्राप्त होते है व समय है-अर्थात् योगी है । उन योगियों में ध्येय होने से सिद्धपरमेष्ठी सार हे (यतः योगियों के ध्येय सिद्धपरमेष्ठी हैं ) उन सिद्धपरमेष्ठी को मेरा नमस्कार है । 'सम्यक् प्रयनं गमनं यतं चरेदित्यादिलक्षणं चरणं येषां ते समयाः योगिनः तेषु मध्येसार प्राचार्यः । तस्मैनमः ।' जा सम्यक् यत्नाचा पूर्वक आचरण करते है वे समय-योगीगण हैं, उन योगियों में सारभूतउत्तम आचार्य हैं । उन आचार्य परमेष्ठी को मेरा नमस्कार है । - समयः सिद्धान्तः स्त्रियते प्राप्यते यैस्ते समयाः -- तेषु मध्ये सारः - उपाध्यायः । तस्मं नमः ।जिनके द्वारा समय अर्थात् सिद्धान्त प्राप्त किया जाता है वे समय है। उन समयों मे जो सारभूत हैं वे है उपाध्याय परमेष्ठी । उन उपाध्याय परमेष्ठी को मेरा नमस्कार है । 'समयेषु कालावलिषु सारः साधुः । - कालावलियों में जो सार हैं वे है साधु । उन साधु परमेष्ठी को मेरा नमस्कार है । ' स सम्यक्त्वं, प्रयो ज्ञानं, सरणं सारः सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि इत्यर्थः तेम्योनमः ।'सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र समयसार हैं। इन्हे मेरा नमस्कार है ॥ goa
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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