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पंन पत्र । एक अध्ययन
और संस्कृति की सेवा करना समझा जाता है ।
(६) जैसे कुछ कवि और अभिभूत पंडित भी कविता सुनाने या धार्मिक प्रवचन देने की बात सुन कर सब कुछ भूल जाता है, वैसे ही जैन पत्र रचना युग की बात भुलाकर वक्तव्य युग मे फूल जाता है। पत्र से पाठक को भने असन्तोष हो पर कवि-लेखक-सम्पादक को तो सन्तोष रहता है कि रचना छप गई ।
(७) जैन- पत्र सहयोगी, पारिश्रमिक पर दृष्टि नहीं डालते हैं। निःशुल्क सम्पादन लेखन मे निःशुल्क - धन होता रहता है। जैन-पत्र शब्द की गेंद को चाहे जब चाहे जैसा उछालते हैं। इसलिए कभी लालवहादुर बालबहादुर, तेजकुमारी तेजकुमारी, कापड़िया कीपड़िया, जयपुर जमपुर होकर हास्य रस की सृष्टि करता है। वैसे किसी भी जैन पत्र ने कभी भूले मटके भी हंसो की रचना छापो हो, मुझे स्मरण नही प्राता ।
(८) मतभेद भुला कर एक होना चाहिए, सभी दलों सहयोगी को होना चाहिए। यह कहने वाले भी दिगम्बर श्वेताम्बर कानजी मकानजी, तेरह-बीस पन्थ की बातें मूलभुला नहीं पाते है और ऐसे लोग शायद कहना चाह रहे हैं कि हम मतभेद कर रहे है पर मतभेद और मन भेद मत करो तो जानें।
(६) अधिकाश जैन पत्र-पत्रिकायें धर्म प्रधान होती हैं ये प्रथम धौर चतुर्थ (धर्म और मोक्ष) पुरुषार्थ को आशा से भी अधिक महत्व देती है पर द्वितीय और तृतीव ( अर्थ मोर काम) पुरुषार्थ को अतीव नगण्य समझती है, इसलिए समाज के युवक समुचित काम और गृहिणी नही पाते हैं तथा समाज मे पनिक वर्ग दहेज-दस्त से ही अपने गौरव की परम्परा को प्रांकने मे लगा है। एक वाक्य में धन देव हो गये और धर्म दास हो गया है ।
(१०) जैन पत्र महिसा अपरिग्रह पर घकार के गोठ वर्षों से गाते भा रहे पर विस्मय का विषय यही है कि वे बिल समाज को सही प्रयों में एकता का सन्देश नहीं दे सके, वे मन्दिरों और मूर्तियों को पूर्णतया पह नहीं बना सके, वे अनेकान्तवाद की सूक्ष्म व्याख्या- विवेचन प्रस्तुतीकरण भले कर सकें हों पर जीवन में समन्वयवादी अनेकान्तवादी अस्तित्ववादी नहीं बन सके।
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(११) अंनपत्र आदर्शवादी घासमान में चाहे जितनी देर तक रहे हों परम्गु यथार्थ की धरती पर वे निष्क्रिय हो रहे हैं। जैसे प्राज के युवक भूखे होकर भी गहले के गोदाम पर छापा नहीं मारेंगे बल्कि सिनेमा घर में या रेलगाड़ी अथवा मोटर में मुफ्त यात्रा करना चाहेंगे वैसे ही जैन पत्र औसतन जन-जीवन से दूर रहे हैं और अपने लिए तीसमारला समझते रहे हैं।
जंन पत्र बहुत बड़ी शक्ति हैं। अनुबन्ध इतना है कि वे अपना दायित्व समझें समाज को समता-ममता- क्षमता सिखायें समय श्रम सम्पति का सही दिशा में सदुपयोग करना वे ही सिखा सकते हैं । OOO
'अनेकान्त' के स्वामित्व सम्बन्धी विवरण
प्रकाशन स्थान- वीरसेवामन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली मुद्रक प्रकाशन - वीर सेवा मन्दिर के निमित्त प्रकाशन अवधि - मासिक श्री सोमप्रकाश जैन राष्ट्रिकता - भारतीय पता - २३, दरियागंज दिल्ली-२ सम्पादक श्री गोकुलप्रसाद जैन
राष्ट्रिकता - भारतीय पता वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागज, नई दिल्ली-२ स्वामित्व - वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ मैं धोम प्रकाश जैन, एतद्वारा घोषित करता हूं कि मेरी पूर्ण जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है ।
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- प्रोम प्रकाश जैन प्रकाशक
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- सम्पादक