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________________ गोम्मटेश्वर बाहुबली स्वामी और उनसे संबंधित साहित्य 0 श्री वेदप्रकाश गर्ग, मुजफ्फरनगर पत्यन्त प्राचीन युग में इस पार्य भमि पर महाराजा उपस्थित कर 'कर्म' का उपदेश दिया और उसकी महत्ता मामि राज्य करते थे, जो १४वें कुलकर थे। वे भाग्नीध्र का प्रतिपादन किया। ऋषभ ने जिन कार्यों की व्यवस्था के नो पुत्रों में ज्येष्ठ थे। वे अपने विशिष्ट ज्ञान, उदार को, उन्हें लौकिक षट्कर्म कहा जाता है। इनके द्वारा गुण और परमेश्वयं के कारण कुलकर अथवा मन कहलाते सामाजिक जीवन को एक व्यवस्थित प्राधार प्राप्त हमा। थे।' उन्हें हुए कितना समय बीता कुछ कहा नहीं ना इसके साथ हो धार्मिक षट्कर्मों का उपदेश भी दिया। सकता। कश्रिय से क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र के रूप मे श्रम-विभाजन का उनका युग एक सक्रान्ति काल था। उनके जीवन- भी निर्देश दिया । वे स्वयं इक्ष्वाकु कहलाये। इससे उन्हीं काल मे ही भोग-भूमि की समाप्ति हई और कर्मभमिका से भारतीय क्षत्रियों के प्राचीनतम इक्वाकुवंश का प्रारम्भ प्रारम्भ हुमा । उन्होंने धैर्यपूर्वक इन नवीन समस्याग्रो का हुमा । कृषि कर्म मे 'वृषभ' को प्रतिष्ठा प्रतिपादित करने समाधान प्रस्तुत कर युग-प्रवर्तन किया। उनके नाम पर के कारण वे स्वयं 'वृषभदेव' कहलाए और 'वृषभलांछन' ही इस पार्य भूमि को अजनाभ वर्ष कहा गया। उनकी पहचान का विशेष चिह्न बना । पाज पुरातत्वश उदयाचल और पूर्व दिशा के रूप में क्रमशः सबोधिन इसो चिह्न से उनकी मूर्तियों को पहचानते हैं। वे क्षात्रधर्म प्रयोध्या-नरेश महाराजा नाभिराय योर मरुदेवी मे सर्य. के प्रथम प्रवर्तयिता थे।" अनिष्ट से रक्षा तथा जीवनीय समान भास्वर तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म हया था। उपायों से प्रतिपालन ये दोनो गुण प्रजापति ऋषभदेव में उनका जन्म दो यूगों की संधिवेला प्रर्थात मानव-सभ्यता होने से उनको 'पुरुदेव' संशा भी हुई।" के प्रथम चरण में हुअा था, जब भोगभूमि का अन्त और ऋषभ का विवाह सुनन्दा भोर सुमंगला से हुमा था। कर्मभूमि का प्रारम्भ हो रहा था। उनके सौ पुत्र थे। उनमे दो विशेष प्रसिद्धथे-भरत पोर कुलकर-व्यवस्था से जब सामाजिक जीवन विकमित बाहबली२ भरत को कलापों और बाहुबली को प्राणीहोने लगा तो कुलकर के पुत्र होने के नाते ऋषभ पर उन लक्षण का ज्ञान कराया । इनके अलावा उनकी दो पुत्रियों व्यवस्थापों का दायित्व प्राया। उन्होंने बहुत मूक्ष्मता एव भी थी। एक ब्राह्मी और दूसरी सुन्दरी ऋषभ ने अपनी गम्भीरता से समस्यापों का विचारोपरान्त ममाघन पुत्री ब्राह्मीको लिपि तथा सुन्दरी को प्रक विद्या सिखाई।" १. त्रिलोकसार ७६२-६३ । (प्रादि पुराण १६।१७९) २. भागवत पुराण १११२।१५ । ८. देवपूजा, गुरु-भक्ति, स्वाध्याय, संयम तप और दान । ३. तिलोयपण्णत्ति ४१४६।६ । ६. महा पुराण १६।२६५ । ४. स्कन्द पुराण ११२।३७१५५; महा पुराण ६२।८। १०. महापुराण ४२१६ तथा महाभारत, शान्ति पर्व ५. महापुराण १४१५१। १२०६४।२०। ६. वही १६६१३३-३४ । (कुलकर उसे कहते हैं, जो जनता के जीवन की नई समस्याओं का सही समाधान ११. ब्रह्माण्ड पुराण २०१४ । देता है। १२. वसुदेव हिण्डो, प्र० ख० पृ० १८६ । ७.सि, मसि, कृषि, विषा, शिल्प तथा वाणिज्य। १३. पभिधान, राजेन्द्र कोश भाग २, पृ० ११२६ ।
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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