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जय चागद जय गुल्लिकाज्जि
0 श्री कुन्दनलाल जैन,
भावाबलियपि तीर्थकर नहीं थे, ये तो चौवोस सम्द से संबोषित किया जाता है। इस विचारे बागद को कामों में से प्रथम कामदेव सर्व सुन्दर थे इसी-माज कौन जानता है जिसने कामदेव बाहमि को साक्षात लिए कन्नर भाषा में इनको मोमटस्वामी हासिक
भगवान का रूप प्रदान कर माज हजार वर्ष बाद भी गोमट्र का प्रथं कन्नर में सर्वाधिक सुन्दर होता है, अस्तु । भारतीय पुरातत्व को ही नहीं अपितु संसार के समस्त परन्त श्रद्धालु भक्तजनों ने उनके त्याग तपस्या एवं साधना पुरातत्ववेत्तामों को ऐसा सर्व सुम्बर कला-वैभव धुनौती को देख कर उन्हे भगवान सश ही मान लिया भोर वे के रूप में प्रदान किया है जिसके पागे Seven Wonders युग-युगो से भगवान बाहुबलि नाम से विख्यात हो गए। सर्वथा तुच्छ प्रतीत होते हैं। तथा जब तक यावच्चद्र
भ. बाहुबलि का प्रपोरषेण एव महामानवीय बसिष्ट दिवाकरो यह मूर्ति विद्यमान रहेगी तब तक उस भेष्ठतम व्यक्तित्व विभिन्न कषियों कलाकारों एवं सरस्वती पूनों कला साधक महान् शिल्पी चागद को कोई भी नही भूक को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए विवशता पूर्वक प्रेरित सकेगा मोर सभी लोग उसकी बशोगाथा गाते हुए उसकी करता रहा। भ० मादिनाथ के समय से ही वे चर्चा और कमा की सराहना करते रहेंगे। विवेचना के केन्द्र बने रहे। संस्कृत के प्राचार्य जिनसेन, भ. बाहुबलि की मूर्ति के निर्माण कराने वाले श्री अपभ्रंश के श्रेष्ठतम कवि पुष्पदंत तथा कलिकाल सर्वज्ञ चामुण्डराय राजपुरुष ये विख्यात विद्वान् पौर प्राकृत के हेमचन्द्र प्रति उत्तर भारत के तथा दक्षिण भारत के श्रेष्ठ कवि थे उन्हें तो सभी लोग जानते हैं पोर पाब तक कवियों ने विभिन्न भाषामों में उनका चरित्र-चित्रण बरे इतिहास में वे पूर्णतया विख्यात है। पर उस तपस्वी मूक कलापूर्ण ढंग से अपनी-अपनी कृतियों में बड़े अनूठे ढंग से साधक, श्रेष्ठ शिल्पी उच्च कलाकार चागद को कौन किया है।
जानता है जिसको प्रमर साधना और मूक तपस्या ने ऐसे
विराट स्वरूप को उत्कीर्ण कर इतिहास मोर पुरातत्व को भ. बाहुबली का परिव पडालु पाठकों को युग-युगों
एक अनूठी पमर पुण्य विभूति प्रदान की। जिससे सेपाकर्षित करता पा रहा है। सभी लोग पठन-पाठन,
पामुण्डराय का यश भी चिरस्थायी हो गया है। पर्चा, स्तुति, पूजा, ग्रंथ रचना; मूर्ति निर्माण बादि के रूप में उनके प्रति बंदा-सुमन समर्पित करते रहे है, जो
शिल्पोषागद कोई पढा-लिखा प्रसिद्ध पुरुष न पा पर भाव तक ममर और विध्यातहै। पर श्रवणबेलगोल उसके हाथ में कला पी उसके छनी हपोडेको प्रमका स्थित भ. बाहुबलि की प्रतिमा बो १३ मार्च १में
पाशीष पोर वरदान प्राप्ता । उसके वय में उसकी तत्कालीन गङ्गनरेश राचमल्ल के महामात्य एवं प्रधान
मां ने भगवद्भक्ति उत्पन्न की थी भोर दिया था उसे
त्याग एवं तपस्या का उपदेश जिसके बल पर बह ऐसा सेनापति श्री समायराय ने निमित कराई थी वह भाज भारतीय इतिहास और पुरातत्व की ही नहीं अपितु संपूर्ण
भक्षुण्ण अनुपम स्वरूप उत्कीर्ण कर सका और स्वयं विश्वको स्पिात श्रेष्ठतम कलाकृति है।
इतिहास पुरुष बन गया।
म. बाहुबली की मूर्ति के निर्माण के बाद शिल्पी म. बाहुबलि की इस श्रेष्ठतम कलाकृति के प्रमुख पागद को जो यश पोर सम्मान मिला उसकी गौरव गारा शिल्पी (तमक) त्यागद ब्रह्मदेव थे जिन्हें कन्नर में पागद दक्षिण के जैन मंदिर पाज तक माते हैं। पागद