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दिव्य चरित्र बाहुबली
श्री रतनलाल कटारिया, केकड़ी (अजमेर) १६६ विशिष्ट महापुरुशों में २४ कामदेव भी हैं इन १. बाहुबली मे किमले बोकालो ? २४ कामदेवों में सर्वप्रथम बाहुबली है । अतः इन्हे गोम्म
महापुराण पर्व ३६ श्लोक १.४ तया १०६शात टेश्वर-कामदेवों में प्रमख कहते है। "तिलोयपण्णत्तो" होता
होता है कि-गुरु (पूज्य पिता ऋषभ देव) के चरणों में
-TE ( पिता aa अधिकार ४ में लिखा है
में वे दीक्षित हुए थे और उनकी प्राशा मे रहकर शास्त्रा. काले जिणवराण, चउबीसाणं हवंति परवीसा। ध्ययन किया था फिर एकल विहारी होकर एक वर्ष का ते बाह बलिप्पमहा, कंवप्पा णिहबमायारा॥१४७२।। प्रतिमायोग धारण किया था। श्लोक १८६ मे बताया है
(चौबीस तीर्थ करों के समय में महान सुन्दर बाहुबली कि-"भरतेश्वर मुझसे संबलेश को प्राप्त हुए है" ये प्रमख चौबीस कामदेव होते हैं।)
विचार बाहुबली के केवलज्ञान में बाधक हो रहे थे। भरत कामदेव बाहुबली प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के सुपूत्र के द्वारा बाहुबली की पूजा करते ही बाइबली का हवय थे। हंडावसपिणी के तृतीय काल में महारानी सुनन्दा से एकदम पवित्र हो गया भोर उन्हे केवलज्ञान हो गया। उत्पन्न हए थे । सर्वार्थसिद्धि की प्रहमिन्द्र पर्याय से चल- विषष्टि शलाका पुरुष चरित में हेमचन्द्राचार्य ने कर पाये थे। चरमशरीगे पोर ५२५ धनुष को उन्नत लिखा है कि भगवान ऋषभदेव के पास बाहुबली दीक्षा जायकेवारी थे। जिनसेनाचार्य कृत महापुराण पर्व १६ लेने को इस विचार से नही गये कि--बह! उनके लघु में इनका पावन चरित्र दिया है वह लिखा है
भ्राता पहिले से ही दीक्षा लिए बैठे थे उनका विनय करना बाहू तस्य महाबाहोः, प्रधाता बलजितम् ।
पड़े। प्रतः बे स्वयं ही दीक्षित हो गये और एक वर्ष का यतो बाइबलीत्यासीत्, नामास्य महसा मिषः ॥१७॥
कायोत्सर्ग धार लिया। उन्होने यह सकल्प किया कितेषु तेगस्पिना पर्यो, भरतोऽक बाध्यतत् ।
केवलज्ञान होने पर ही मैं ऋषभदेव की सभा में जाऊंगा। शशीव जगत: का तो, युवा बाहुबली बभौ ॥१६ फिर जब वे केवली हुए तब ऋषभ की समवशरण सभा
(लम्बी मजा वाले तेजस्वी उन बाहुबली की दोनों में गये। भयायें उत्कृष्ट बल को धारण करती थी पतः उनका पहिले उनको घोर तपस्या करते भी केवलज्ञाम न "बाहुबली" नाम सार्थक था। उनके बड़े भाई भरत सूर्य हा तो भगवान को भेजी ब्राह्मी सुन्दरी ने पाकर उनसे के समान तेजस्वी थे तो वे चन्द्र के समान सारे जगत के कहा-"तुम मान के हाथी पर चढ़े रहोगे तबतक तुम्हे प्रिय थे।
केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी।" यह सुना तो उन्हे १. सबसे प्रथम मोम किनका ?
अपनी उस गलती (पपने मधुभ्राता मुनियों का विनय महापुराण पर्व ३६ श्लोक २०४ में सर्वप्रथम मोक्ष नहीं करने का भान हुमा तोके जाने को उबत हुए कि इन बाहुबली स्वामी का ही बताया है। पपपुराण पर्व ४ उन्हें केवलशाम हो गया। पउमरिय मोर पपुराण में श्लोक ७७ में भी ऐसा ही कथन है। महापुराण पर्व २४ यपि इतना कोई विवरण नही है तथापि वहां भी बाहश्लोक १८१ में भरत के छोटे भाई मनन्तवीर्य का भी बली को भगवान् से दीक्षा लेने का कपन नहीं है। (उन सर्वप्रथम मोम बताया है। वे. हेमचनाचार्य ने मरुदेवी दोनों में पिसा कि-मरत की नीति को देशबा:का बताया है।
बली उसी समय दीक्षित हो गये। हरिवंशपुराण को