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________________ १६, वर्ष ३३, किरण उपनाम ही मवतिगधवारण पड़ गया था। इनका सारा परिवार धामिक वृत्ति का तथा शुभचन्द्र शातला रानी के पिता शेव थे एवं माता जैन । उसने सिद्धांतदेव का शिष्य था। लेख सख्या ८२ में ही उल्लेख अपने गुरु प्रभावन्द्र सिद्धांतदेव को प्रेरणा से जैन धर्म के है कि गगराज ने गमवाड़ी में सभी जैन बसदियों उन्नयन के लिए अनेक कार्य किए। श्रवणबेल्गोल में (जिनालयों) का जीर्णोद्धार करवाया, गोम्मटेश्वर मूर्ति के सतिगंधवारण मंदिर का निर्माण करवाया तथा सन चारों मोर परकोटे का निर्माण करवाया तथा जहाँ-जहाँ ११२३ में वहाँ तीर्थकर शातिनाथ की मूर्ति स्थापित की। भी गंगराज का प्रभाव रहा और वह जिस स्थान से शिलालेख क्रमांक १७६ एवं १६२ मे उसकी धर्म परायणता प्रभावित हुए वहां शिलालेखों का निर्माण करवाया। इस एक पातिव्रत की भरि-भूरि प्रशसा की गई। इस अत्यन्त लेख में यह भी वर्णन है कि तिगूलो को गंगवाड़ी से धामिक महिला ने मल्लखना व्रत द्वारा सन ११३१ मे निष्काषित कर उन्होने उसे विष्णुवर्धन को वापिस ममाधिमरण किया। दिलवाया। कर्नाटक में अनेक जैन मन्दिरों के निर्माण का अनेक शिलालवा में नरेश विष्णवघंन के निपुण मत्री श्रेय गगराज की प्राप्त होता है। एव वीर सेनापति जैन धर्मावलम्बो गगराज के वीरोचित गगराज ने अपने बड़े भाई बम्मदेव की पत्नी जक्कमब्बे गुणो, विष्णवर्धन के प्रति निष्ठा, धर्म-प्रेम, जैन माधुप्रो की स्मृति मे लेख उस्कोणं करवा कर उसमे उनके द्वारा के प्रति प्रादर एवं भक्ति, उनक द्वारा जैन मन्दिरी के किए गए सूकार्यो का वर्णन किया है। मिमणि, उनमे निर्माण कार्य, जार्गाद्वार एव सरक्षण के गगराज की माता पोचब्बे (पोच्चल देवी) तथा विषय मे विस्तार से उल्लेख हमा है। शिलालय क्रमांक पनि लक्ष्मी धर्म पगयण महिलाए थी। लक्ष्मी ने एरडक्ट्रे ८२ एवं ५६१ मे उल्लेख है कि जिम प्रकार इन्द्र के लिए बदि का निर्माण करवाया, पति की माता पोचब्बे की उनका श्य, बलराम के लिए उनका हल, विष्णु के लिए स्मृति में फत्तले बमदि तथा शासन बसदि का निर्माण उनका , गतिघर के लिए शक्ति तया वीर अर्जुन के करवाया। उसने अपने बड़े भाई बच एव बहिन देमेति लिए गांडीव धनूष उनके सहायक रहे है उसी प्रकार की मृत्यु को स्मृति मे शिलालेख उत्कीर्ण करवाया तथा गगराज भी विष्णवघंन के राज्य सचालन, संन्य-विजय जैनाचार्य मेघचन्द्र को स्मृति में भी लेख प्रकित करवाया। प्रादि मे सहायक रहे। वह विष्णुवघंन क राज्य कार्य का इन शिलालेखो द्वारा होयसल राजवंश के प्रतिरिक्त कुशलता एव निष्टा मेनचालन करते थे। अन्य राजवंशों के अनेक नरेशो, अमात्यों, सेनापतियो तथा शासन बदि के द्वार के दाहिनी पोर एक पाषाण धष्ठियो प्रादि के विषय में भी जानकारी प्राप्त होती है। खर पर उत्कीर्ण विस्तृत शिलालेख क्रम संख्या ८२ मे यह जहा उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि पहाडी पर उल्लेख है कि कन्नेगल के युद्ध मे चालुक्य नरेया त्रिभुवन हाथी गुम्फा में महाराजा खारवेल द्वारा ईसा पूर्व प्रथम मल्ल परमादिदेव को अनेक बार सामंतो सहित परास्त शताब्दी मे उत्कीर्ण १७ पक्तियों वाला शिलालेख जन करने पर विष्णवर्धन मे प्रसन्न होकर गगराज को कोई भी शिलालेखों में सबसे प्राचीन है एवं जैन इतिहास की दष्टि इच्छित वस्तु मागने के लिए कहा किन्तु धर्म प्रेमी गगराज से विशेष ऐतिहासिक महत्व का है, श्रवणबेल्गोल एवं ने केवल परमा नामक ग्राम भेंट में लेकर उन मन्दिरो की उसके अचल में अभी तक ज्ञात यह ५७३ शिलालेख एक व्यवस्था के लिए प्रोपत कर दिया जिमका निर्माण उनकी ही स्थान पर पाये जाने वाले शिलालेखों में संख्या की माता पोचवे (पोच्चाल देवी) तथा पत्नी लक्ष्मी द्वारा दृष्टि से सबसे अधिक है । कटवा (चन्द्रगिरि) पहाड़ी पर हमा था। बन्य विजय करने के उपलक्ष में उन्होने विष्णु. छठी सातवीं शताब्दी का उपरोक्त वणित शिलालेख क्रम न से गोविन्दगडी ग्राम भेंट लेकर उसे गोम्मटेश्वर मूर्ति संख्या १ तो इन सभी में सबसे अधिक ऐतिहासिक महत्व की व्यवस्था के लिए पर्पित कर दिया। का है। 000
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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