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श्रवणबेलगोल के शिलालेख
2 श्री सतीशकुमार जैन, नई दिल्ली
श्रवणबेल्गोल एवं उसके अचल मे भी तक ५७३ शिलालेख संकलित थे। ऐपिग्राफिया कर्माटिका भाग दो शिलालेख ज्ञात हुए है। इन शिलालेखों के कारण श्रवण- का सन् १९७३ मे अन्य परिवर्तित संस्करण प्रकाशित होने बेल्गोल तथा जैन धर्म के दक्षिण मे प्रसार का प्राचीन पर उस में तब तक प्राप्त ५७३ शिलालेखो का सकलन इतिहास तो मिलता ही है इसके अतिरिक्त यह शिलालेख किया गया है। कन्नड विद्या संस्थान, मैसूर विश्वविद्यालय वहाँ के स्थापत्य, निर्माण, निर्माताओं, राज-परिवारों, धर्म मानस गंगोत्री, मैसूर ने इम परिवदित संस्करण का परायण व्यक्तिगों पादि पर भी यथेष्ट प्रकाश डालते है। प्रकाशन कर पुरातत्व प्रेमियों एवं शोधकर्तामों पर विशेष मैसूर राज्य में शिलालेखों से संबंधित खोज एवं उनके
उपकार किया है। इन ५७३ शिलालेखों में केवल पाषाण
पर अकित लेख ही सम्मिलित हैं। कागज पर लिखी सनवें संकलन के कार्य का प्रारंभिक श्रेय एक अंग्रेज विद्वान
अथवा काष्ठो र उत्कीर्ण लेख शिलालेखो के प्रमतर्गत न मि० बी० एल. राइस को प्राप्त होता है जिन्हें सन् १८५०
माने का कारण उनमे नहीं दिए गए हैं । मे मैसूर राज्य के पुरातत्व विभाग का अंशकालिक निदेशक
इन ५७३ शिलालेखों मे से२७१ चन्द्रगिरि पर, १७२ नियुक्त किया गया था। उन्होने अपने बारह वर्ष के सेवा
बिध्यगिरि पर, ८४ प्रवणबेल्गोल नगर में तथा ५० काल में, सन् १९०६ तक, उस समय तक मंसूर राज्य में सम्मिलित पाठ जिलो तथा कुर्ग से जो उस समय एक
समीपस्थ ग्रामों में उत्कोग हैं। समीपस्थ ग्रामों में उत्कीर्ण स्वतन्त्र रियासत थो, ८८६६ मिलालेखों का सकलन
५० लेखों का विवरण इस प्रकार है : बस्तिहल्लि-१, किया । इन शिलालेखों को उन्होने Transliteration एवं
बेका-४, धोम्मेण हल्लि - २ चलया-२, है लेबेलगोल
१, हालुमत्तिगत्ता-२, हिन्दलहल्लि-१, हिरेबेल्टीअग्रेजी में अनुवाद सहित ऐपिग्राफिया कर्नाटिका नामक
१, होमाहल्लि-३, जिननाथपुर-१६ जिण्णेहल्लिपुस्तक के बारह भागों में प्रकाशित करवाया। भाग दो में केवल श्रवणबेल्गोल एवं उसके अंचल के शिलालेखों का
२, कम्बलु-१, कन्तराजपुर-१, कन्धिरयापुर-२,
कुम्बेणहल्लि -१, म काले-१, परमा-१, रागो. ही संकलन है। सन् १९०६ मे श्री राइस के सेवा निवृत्त
बोम्मणहल्लि-१, साणेहलि-४, सुन्दाहल्लि-१, होने पर रामानुजापुरम् नरसिंहाचार्य (१८६०-१९३६)
बद्दरहल्लि -२। उस पद पर भारूढ़ हुए। अपने सोलह वर्ष के सेवाकाल में उन्होने ५००० पौर शिलालेखों की खोज की। उनमें से इन ५७३ शिलालेखों में १, लेख छठों-सातवी शताब्दी महत्वपूर्ण शिलालेखों को उन्होंने राज्य के पूरातत्व विभाग
का, ५४ लेख सातवी शताब्दी के २०लेख पाठवीं शताब्दी की वार्षिक रिपोटों में भी प्रकाशित करवाया। मि. राइस
के तथा १० लेख नौवी शताब्दी के केवल चन्द्रगिरि पर ने ऐपिग्राफिया कर्नाटिका के दूसरे भाग मे, जिसका
ही उत्कीर्ण हैं। दसवी शताब्दी तथा उसके पश्चात् १६वी प्रकाशन सन् १८८६ में हुमा था, श्रवणबेलगोल में उस शताब्दा तक के शेष लेख चन्द्रगिरि के माथ-साथ विध्यसमय तक प्राप्त केवल १४४ शिलालेखो का ही संकलन गिरि, श्रवण बेल्गोल एव समोषम्य ग्रामों में भी मिलते है। किया था। पुरातत्व के धुरन्धर विद्वान श्री नरसिंहाचार्य इन ५७३ लेखों में से १०० लेख मुनियों, प्रायिकामों ने अथक परिश्रम करके जब सन् १९२३ मे इसका पौर श्रावक-श्राविकामो के समाधिमरण से, ४. लेख परिवदित संस्करण प्रकाशित किया तब उसमें ५०० योद्धामों की स्तुति, पाचार्यों को प्रशस्ति अथवा कुछ