SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( tv ) सन्नद्ध होना, मन्त्रियों के प्रस्ताव पर धर्मयुद्ध ( त्रिविध द्वन्द युद्ध) करना, भरत का पराजित होकर चक्र चलाना, बाहुबलि का वैराग्य, कैलाश पर्वत पर जाकर एक वर्ष का प्रतिमायोग लेकर निश्चल खड़े रहना, माघवी लत एवं बामियों से निकले मणि सर्पों द्वारा शरीर का प्रवेष्ठित होना, भरत द्वारा नमस्कार किये जाने पर कषायों से मुक्त होकर केवलि-जिन के रूप में भगवान ऋषभदेव के समवसरण में सभासद बनना वर्णित हुआ है। इस पुराण में एक विचित्र संकेत है ( श्लो० १०१ ) कि दो खेवरिया (विद्याधरियां) उनके शरीर पर लिपटी लता प्रादि को हटाती रहती थी -- यही वह रहस्य है जो कतिपय बाहुबलि मूर्तियों के साथ अंकित युगल स्त्री मूर्तियों द्वारा श्रमिव्यक्त हुमा है । जिनसेन स्वामि (ल० ८३७ ई०) ने अपने प्रादिपुराण (पवं ३५-३६, पृ० १७२-२२० ) में बाहुबली वृत्तान्त विस्तार से दिया है। स्थूलतः हरिवंश पुराण से अन्तर नही है सिवाब अधिक विस्तार के इसमें भी बाहुबली का पोदनपुर नरेश व स्वाभिमानी होना, भरत के दूत को तिरस्कृत लौटाना, त्रिविध द्वन्द्व रूपी धर्मयुद्ध, बाहुबलि का वैराग्य, बन में जाकर एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण करना, लता एवं बामी से निकलते सर्पों द्वारा शरीर का वेष्टित होना, भरत को मेरे निमित्त से दु:ख पहुचा है, इस विकल्प का बना रहना, भरत द्वारा नमस्कार एवं स्तुति करने से विकल्पमुक्त होकर कैवल्य प्राप्त करने प्रादि का सुन्दर वर्णन है। इस पुराण में बाहुबली के पुत्र एवं उत्तराधिकारी का नाम महाबली दिया है । इन्ही जिनसेन के शिष्य, उत्तरपुराणकार गुणभद्राचार्य ने अपने ग्रात्मानुशासन ( दलो० २१७) में बाहुबली की मुक्ति में बाधक उनके मानरूपी शल्य का संकेत किया है चक्रं विहाय निजदक्षिणबाहु संस्थं मत्प्राब्रजन्तुन न बंध स तेन मुचेत् । क्लेशं तमाप किल बाहुबली चिराय, मनो मनागपि अतिमहतो करोति ।। महाकवि पुष्पदन्त ने अपने पत्र महापुराण (६६५ ई०) की सन्धि १६ १८ मे भी विस्तार के साथ बाहुबली का इतिवृत्त दिया है। इसी प्रकार चामुण्डराय के कन्नड महापुराण, मल्लिषेण के महापुराण, दामनंदि के पुराणमार, हेमचन्द्राचार्य के त्रिषष्टिशलाकापुरुषवरित मादि सभी जैन महापुराणों में बाहुबली का इतिवृत प्राप्त होता है। उत्तर काल में, विशेषकर कन्नड भाषा में कई स्वतन्त्र मुजबलचरित भी लिखे गये। बाह्य एव प्राभ्यन्तर, लौकिक एवं प्रात्मीक स्वातन्त्र्य की साकार सजीव मूर्ति भगवान बाहुबली का पुण्य चरित्र और उनके अप्रतिम विग्रह के दर्शन लोक को सदैव धन्य करते रहेंगे । ज्योतिनिकुंज चारबाग, लखनऊ- १ तुभ्यं नमोऽस्तु निखिल - लोक बिलोचनाब, सुबोधकाम । तुभ्यं नमोऽस्तु गुण प्रनन्त तुम्पं नमोऽस्तु परमार्थं तुभ्यं नमोऽस्तु विभयो गुणाकराम, जिनगोम्मटाय ! ज्योतिप्रसाद जैन
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy