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________________ बीसवी सदी के मौज धरियों को चौधराहट का क्या होगा ?" क्तिनी मर्मान्तक सेवा-सुश्रुषा एवं उपचार से साहू जी को बचा लिया और व्यथा थी उनके इन शब्दो मे? वे प्राचीन जैन साहित्य को अपने पातिवृत्य एवं सतीत्व को सार्थक कर दिखाया, पूर्णतया सुरक्षित एवं प्रकाशित देखना चाहते थे। और कुछ समय बाद उन्हें अकेला छोड़ स्वयं स्वर्गवासिनी मैं विगत भट्रारह वर्षों से दिल्लीके जैन अथ भंडारों में हो गई, रमाजी ऐसी श्रेष्ठ और सती महिला रत्न थीं। रमा स्थित प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्धों का सर्वेक्षण एवं विस्तृत जी के चले जाने पर साहू जी सर्वथा टुट गए थे। वे प्रायः केटालाग (सूची) का काम करता पा रहा है। जब उदास रहते थे फिर भी समाज सेवा पौर साहित्यिक कार्यों इसके प्रकाशन की बाधा व्यवधान को प्रोर उनका ध्यान मे उनकी रुचि कम नही हो पाई थी । यद्यपि उनका बामांग प्राकर्षित किया गया तो उन्होंने तुरन्त ही इसकी व्यवस्था चला गया था फिर भी वे धार्मिक, सामाजिक एवं साहित्यिक करा दी और अब यह दिल्ली जिन-ग्रन्थ रत्नावली' के कार्यों में सदा ही सक्रिय और सजग बने रहे। इस तरह नाम से जानीठ से प्रक शित हो रही है। इसी तरह, उन्होंने कभी भी शिथिलता नहीं प्राने दो! स्व. साहू (जैन आर्ट एण्ड प्राकिटेक्चर) नाम बृहत् ग्रन्थ के प्रकाशन जी जैसा सरल और सात्त्विक जीवन विरले ही लक्ष्मी. मे भी उन्होंने अपार धन व्यय किया। जैन तीर्थ क्षेत्रों पति जी पाते है। वे पूज्य क्षुल्लक प. गणेशप्रसाद जी वर्णी और मंदिरों का इतिहास एवं उनकी डायरेक्टरी तयार के परम भक्त थे । वे नित्य नियम से पूजन करते थे। उनके कराने में भी साहू दम्पत्ति सदा ही तत्पर रहते थे। उठ जाने से प्राज जैन समाज का ही नहीं अपितु संपूर्ण निधन छात्रो के उच्च अध्ययन एव वैज्ञानिक और भारत राष्ट्र का जाज्वल्यमान नक्षत्र प्रस्त हो गया है तकनीकी प्रशिक्षण के लिए स्व. साह जी ने अपनी परम जिसकी क्षतिपूर्ति निकट भविष्य मे होना असंभव प्रतीत पूज्या मातेश्वरी मति देवी के नाम से 'मूर्ति देवी छात्रवृत्ति होता है। फड' की स्थापना की थी जिससे हजारो प्रतिभावान् छात्रो आज जब मै स्व० साहू जी को 'बीसवी सदी का भोज' ने लाभ उठाया मोर प्राज देश और समाज की सर्वांगीण लिख रहा है तो मेरे मष्तिस्क में अचानक ही धारा नरेश रूप से सेवा कर रहे है। महाराज भोज की पाठशाला की उस वाग्देबी को प्रतिमा लिखने का तात्पर्य यह है कि साह दम्पति बडे उदार का सहज पुण्य स्मरण हो रहा है जिसे महाराज भोज प्रौर उच्च चरित्र के धनी थे । लक्ष्मी की विपुलता एवं ने निमित और प्रतिष्ठित कराया था और वह प्राजकल बलता के कारण प्राय: व्यक्ति में अनेकों दुर्गुण पंदा हो लदन के इपीरियल म्यूजियम मे सुरक्षित है, जिसकी प्रनुजाते है पर स्व. साहू जी इसके सर्वथा अपवाद थे। ये बड़े कृतियां ज्ञानपीठ तयार करा कर पुरस्कृत साहित्यकार मितभाषी एवं उच्च विचारक थे। समाज सुधार और को प्रतिवर्ष भेट करती है। इस तरह स्व. साहू जी का उत्थान एवं साहित्य के बहुमुखी विकास के लिए वे सदा वाग्देवा को प्र वाग्देवी की प्रतिमा के माध्यम से महाराज भोज से ही प्रयत्नशील बने रहे। भ० महावीर के २५००वें सामञ्जस्य बठाना काइ सामजस्य बैठाना कोई चाटुकारिता या कल्पना नही है, निर्वाणोत्सव पर वे यद्यपि बहत ही अस्वस्थ थे, फिर भी अपितु सहज ही हृदय मे घुणाकर न्याय से उत्पन्न यथाइस शुभ अवसर पर उन्होंने जैन एकता के लिए जो प्र- र्थता है । 'बीसवीं सदी के इस भोज' को मैं धारा नरेश थक परिश्रम किया वह इतिहास मे सदा स्वर्णाक्षरो में से किसी भी दृष्टि से कम नही समझता हूं। अकित रहेगा। परमप्रभु से प्रार्थना है कि उनकी प्रात्मा जहां कहीं जब पटना मे साह जी को हृदय रोग का दौरा पड़ा भी हो, शान्ति और सद्गति प्राप्त करे। हम इस सदी के तो सौ. रमा जी ने बड़ी दढ़ता और पूर्ण विश्वास के शोधार्थी और सरस्वती के सेवक उनके प्रति अपने हार्दिक साथ कहा था कि मेरे रहते उन्हें कुछ नही हो सकता श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं और प्रार्थना करते है कि उनके और तुरन्त ही एक व्यक्ति को मुनिश्री विद्यानब जी के द्वारा निर्देशित पथ पर हमें चलते रहने की प्रेरणा पौर पास भेज कर उनका शुभाशीर्वाद मगाया पौर स्वयं शक्ति मिलती रहे। 100 श्रुत कुटीर हवाई जहाज द्वारा तुरन्त ही पटना पहुंची और अपनी ६८, कुन्तीमार्ग, विश्वासनगर, शाहदरा, दिल्ली-३२
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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