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________________ सौजन्य-मूर्ति साहू जी: कुछ संस्मरण पं० पन्नालाल साहित्याचार्य, सागर दानवीर सर सेठ श्री हकमचन्द जी के बाद श्री साहू हुए, उससे समाज को बड़ा हर्ष हुमा और कितने ही ग्रन्थों शान्ति प्रमाद जी ने दिगम्बर जैन समाज का नेतृत्व जिस के द्वितीय संस्करण छप चुके है। स्तर से संभाला उससे समाज के गौरव की चौमुखी वृद्धि तीर्थ क्षेत्रों सम्बन्धी जो विशाल सचित्र ग्रन्थ प्रभी हाल हुई। या तीर्थ क्षेत्र, क्या शिक्षा, क्या प्रकाशन, क्या सामा. ही में प्रकाशित हुए है उनसे दिगम्बर जैन क्षेत्रों के पुरा. जिक सेवा, सभी कार्यों को प्रापने जिस तत्परता से सभाला तत्त्व पर पर्याप्त प्रकाश पडा है । जनेन्द्र सिद्धान्त कोश के वह सबके समक्ष है । समस्त तीर्थ क्षेत्रो पर नया निर्माण न ४ भाग एक बडी निधि के रूप में माने गये है। करा कर जीर्णोद्धार मे बापने जो द्रव्य खर्च किया है और प्रकाशन के प्रतिरिक्त, ग्राप देश की सभी भाषामों नहीं अपने निरीक्षको को भेज कर उनको देख के मर्वोतम लेखक की कृति को एक लाख रुपये के नगद रेख मे, स्थायी काम कराया है जो उमसे अनेक क्षेत्रों का पुरस्कार से सम्मानित करते है। इसे लेखक को जो कायाकल्प हो गया है। पपौरा का भोयरों का मन्दिर पोर सहकार और प्रोत्साहन प्राप्त होता है उसकी सर्वत्र सराप्रहारजी का शान्तिनाथ मन्दिर इसके ज्वलन्त उदाहरण हना हो रही है।। है। बिहार प्रान्त ही नहीं, भारत के सभी प्रान्तीय क्षेत्र भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव के आपके द्वारा उपकृत हुए है। सम्बन्ध में माननीय साहूजी को तत्परता से ही उसे गौरव शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थानों का प्रापने के साथ सफलता प्राप्त हुई है। समाज में होने वाले भरपूर पोषण किया है। बनारस के स्यावाद विद्यालय विशिष्ट प्रायोजनों में प्राप स्वय पहुचते रहे है और अपने मोर सागर के गणेश दिगम्बर जैन विद्यालय को मापने सामयिक सम्बोधनो से उमाज को सबोधित करते रहे है। पर्याप्त सहायता देवर स्थायी बनाया है। मापके द्वारा पिछले वर्ष अस्वस्थता के रहते हए भी प्राप द्रोणगिरि क्षेत्र स्थापित छात्रवसि कोष से अनेक प्रसहाय छात्र, छात्रवृत्ति पर होने वाले गजरथ महोत्सव में शामिल हुए थे। मापके पाकर अपना जीवन सुसम्पन्न कर रहे है। सानिध्य तथा सामयिक सम्बोधन से वहां की विशाल प्रकाशन की दिशा में भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना जनता बहुत ही प्रभावित हुई थी। कर मापने जो काम किया है, वह देश में ही नहीं विदेशो पूज्य गणेशप्रसादजी बर्णीजी के माप विनम्र भक्त थे। में भी गणनीय माना गया है। ज्ञानपीठ की मूर्ति देवी जब तक वे ईसरी में विद्यमान रहे, तब तक उनके जयन्ती , प्रन्थमाला के माध्यम से दिगम्बर जैन प्राचीन ग्रन्थों के समारोहों में पहुंचते रहे है। उन्ही समारोहो, मे बिहार जो माधुनिक संस्करण प्रकाशित हुए है तथा लोकोदय प्रान्त में फैले हुए सराक जाति के उद्धार की योजना बनी ग्रन्थमाला के माध्यम से जो विपुल हिन्दी साहित्य सामने पो मोर उस योजना के पुरस्कर्ता माननीय साहजी थे। भाया है उसे देखते हुए हृदय मे बड़ा सन्तोष होता है। साहजी प्रत्यन्त विनम्र व्यक्ति थे। कई वार उनसे महापुराण एक-दो भाग, उत्तर पुराण, पमपुराण, साक्षात्कार हमा। कोई न कोई नयी बात उनके साक्षात्१.२.३ भाग, हरिवश पुराण, गद्य चिन्तामणि, पुरुदेव कार से प्राप्त होती थी। एक बार वे अतिशय क्षेत्र महाचम्पू, जीवघर चम्पू और धर्मशर्माभ्युदय मादि अन्य बीर जी मे बन रहे कीतिस्तम्भ का शिलान्यास करने जिस साज सच्चा और विविध सामग्री के साथ प्रकाशित गये थे। उसका विधि-विधान मैंने कराया था। विषि.
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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