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________________ जैन समाज के शिरोमणि श्री भगतराम जैन, दिल्ली उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत नजीबाबाद के पुराने घरानों ही प्रत्यन्त प्रास्थावान रहे । मे साह जैन धराना बहुत प्रतिष्ठित रहा है । शान्तिप्रसाद साहू साहब ने अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति को ष्टि जी का जन्म इसी नगर और घराने में सन् १९१२ मे मे रखते हुए प्रावश्यकता के अनुरूप अन्यान्य देशों हुधा था। उनके पितामह साह सलेकचन्द जैन थे। पिता ___ का भ्रमण-पर्यटन भी किया। सर्वप्रथम १९३६ मे वह श्री दीवान चन्द जी और माता श्रीमती मूर्तिदेवी जी थी। डच-ईस्ट इंडीज गये, फिर १९४५ में प्रास्ट्रेलिया और मापकी प्रारम्भिक शिक्षा नजीबाबाद के शिक्षा केन्द्रों १९५४ म सोवियत रूरा । ये तीनों यात्रायें उन्होंने भार. में हुई। हाई स्कूल करने के बाद प्रापने काशी विश्व- तीय प्रौद्योगिक प्रतिनिधि के रूप में की थी भोर परि. विद्यालय में प्रवेश किया। वहां से फिर प्रागरा विश्व- णामो की दृष्टि से ये प्रत्यन्त उल्लेखनीय मानी जाती विद्यालय में प्रा गये। प्रागरा विश्वविद्यालय से ही बी. है। ब्रिटेन, अमरीका, जमनी तथा अन्य कई योरोपीय एस-सी. परीक्षा प्रथम श्रेणी मे पास की। वस्तुतः देशो का भी प्रापने परिभ्रमण किया और अनुभवों के प्रापका समूचा विद्यार्थी जीवन प्रथम श्रेणी का रहा ममावेशन द्वारा साहु जैन उद्योगों को अधिकाधिक समद्ध और यह केवल अध्ययन और ज्ञानोपार्जन को दष्टि से ही किया । नही, वरन् अन्य दृष्टियों से भी। वे सभी सद्गुण मचमुच जिस सहजता के साथ उद्योग एव व्यवसाय पौर सद्वृत्तियां प्राप में विकसित हुई जो सफलता के के क्षेत्र में साहू जी ने मफलता प्राप्त की, वह उनकी शिखर तक पहुंचने के लिए प्रावश्यक है। स्वभावगत प्रतिमा और सूझबूझ, संगठन क्षमता तथा उद्योग के क्षेत्र में मापने तीसरे दशक में पदार्पण प्रध्यवमाय और सहनशीलता की सम्मिलित देन है। किया था और प्रारम्भ से ही अपनी दृष्टि इस पोर पिछले लगभग ४५ वर्षों में प्रापने विभिन्न प्रकार और केन्द्रित की कि न केवल देश के उद्योग ब व्यवसाय का प्रकृति क उद्योग धन्धा को एक सुविस्तृत श्रेणी की स्थाविकास और अभिवन हो बल्कि सचालन प्रणालियों पना एवं संचालना करके देश के प्रौद्योगिक विकास में योगमें भी नये-से-नये प्राविधिक रूपों का अन्वयन हो। दान किया मोर अनेक उद्योगों का नेतृत्व किया । इस श्रेणी इसके लिए प्रापने स्वयं विभिन्न प्राधुनिक पद्धतियों का क न के अन्तर्गत जहां एक ओर कागज, चीनी, वनस्पति, सीमेंट, गम्भीर अध्ययन किया तथा विविध विषय-क्षेत्र में निरंतर एस्बेस्टस प्रोक्ट्स, पार्ट निर्मित वस्तुयें, भारी रसायन, गवेषणायें कराई। अर्थशास्त्र और वित्तीय सिद्धान्तों और नाइट्रोजन खाद, पावर एल्कोहल, प्लाइवुड, साइकिल, पत्तियों का मापका बड़ा व्यापक और विशद मध्ययन कोयले की खाने, लाइट रेलवे व इंजीनियरिंग वर्क्स प्राते था और प्रत्येक विषय से सम्बद्ध पांक हों एवं विवरण की। हैं वहाँ दूसरी ओर हिन्दी, प्रजी, मराठी पोर गुजराती के जानकारी उन्हें इस प्रकार हृदयगम थी कि वह देश-विदेश दैनिक पत्र और भावधिक पत्रिकायें भोर महत्वपूर्ण सास्कृ. के पार्थिक मामलों के तथ्य को पूरे परिप्रेक्ष्य मे देखकर सही ' तिक साहित्यिक शोध एवं प्रकाशन के कार्य भी माते हैं। निष्कर्ष निकालते थे और अपनी प्रतिभा से सबको चकित विगत वर्षों में देश की विभिन्न शीर्ष व्यवसायकर देते थे। विशेष रूप से भारतीय उद्यम और भारतीय संस्थानों के माप अध्यक्ष रहे हैं। इनमें प्रमुख है-फंडक्षमता के प्रति माप अपने प्रौद्योगिक जीवन के प्रारम्भ से रेशन ग्राफ इंडियन चेम्बर प्राफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्री,
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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