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________________ नारी और जीवन-मूल्य : पपभ्रंश जन साहित्य के संदर्भ में ३७ प्रादि के नाम उल्लेखनीय है। दूसरी ओर जिस पर अधिकांश विवाहों का निर्वाह प्राजीवन हुमा, यह प्रासक्ति हई उमे प्राप्त करने के लिए नारियों ने भी युद्ध। तब विशेष रूप से उल्लेखनीय हो जाता है जब एक ही करवाये, अपहरण कराये, पति के शत्रु तक का वरण व्यक्ति ने एक साथ सैकड़ों या हजारों कन्यामों से विवाह करना चाहा और पति तक की हत्या की । ऐसे उदाहरण किया हो। भूमितिलक नामक नगर के राजा रक्ष राज है सुरसुन्दर नामक गन्धर्व की छह हजार कन्याएर, की ५०० कन्यामो को बन्दीगृह से मुक्त कराकर नाग वाराणसी के राजा लोकपाल की गनी विभ्रमा५, नल- कुमार ने उनसे विवाह किया। मेघरव पर्वत पर पहुंचने कुबेर की रानी उपरम्भा", यशोधर की रानी अमृतमती पर रावण ने एक बावड़ी में स्नान करती गन्धर्वराज प्रादि । सुरसुन्दर की छह हजार कन्यामों का तत्काल वरण किया क्योंकि वे उसके रूप-यौवन पर मोहित हो गयी नारी पुरुष के सम्बन्धो या यौन जीवन में उपर्युक्त थी। कुण्डलपुर के राजा मकरकेतु की एक सो पुत्रियो की विषमताप्रो के अतिरिक्त कुछ और विकृतियों भी पायी प्रतिज्ञा थी कि नगाड़ा बजाकर तथा दूसरे प्रकार किन्तु उन सब से अधिक, ऐसे उदाहरण मिलते है जिनम के हाव विभाव से उन पर विजय पाने वाला ही उनका यौन जीवन के स्वस्थ और शास्त्र-विहित पक्ष का बोय वरण करेगा", श्रीपाल इसमें सफल हुआ। यही श्रीपाल होता है। मानव जीवन का यह पक्ष विवाह-सस्कार से कोकपद्वीप नगर के राजा यशोरा शिविजय को सोलह मुख्यतया जुड़ा है । विवाहो के जो उदाहरण अपभ्रंश के सौ कन्यानों के ममस्यामूलक प्रश्नो के उत्तर देकर भी जैन साहित्य म मिलते है उनमे और विवाहो के शास्त्रीय उस सभी के द्वारा वरण किया जाता है। इस सब के भेद-प्रभेदों में चाहे अन्तर दिखायी पड़े पर वे अधिकाश अतिरिक्त भी उसने कचनपुर के राजा वज्रसेन की एक युगानुकल थे और आज भी अनुकरणीय है। पुष्पात्तर सौ राजकुमारियो से भी विवाह किया । पच पाण्डवो के विद्याधर की पुत्री कमलावती और लका के राजा श्री. सुप्रदेश मे दो हजार, मल्लिवाड मे सात सौ, तेलग देश कण्ठ का", मथुरा के राजा पाण्ड्य राज की पुत्री कामरति में एक हजार, सौराष्ट्र की पाच सौ, महाराष्ट्र की पांच और उत्तर मथुरा के राजा जयवर्म के पुत्र व्यान भट सो, गुजरात की चार सौ और मेवाड़ की नौ सौ कन्यामो का", अपने मामा की पुत्री गुणवती" से नाग कुमार का का भी वरण किया। अपभ्रंश साहित्य में बहु-विवाह तथा नारायण त्रिपृष्ठ के पुत्र श्रीविजय का अपने बहनोई के इन उदाहरणो के अतिरिक्त भी अनेक विचारोत्तेजक पौर प्रकीति के पुत्र अमित तेज की बहिन सूतार से उदाहरण मिलते है । रानियों की ये सख्याए जो विवाह हुए वे ऐसे हैं। विवाह थे। द्रष्टव्य है। चक्रवर्ती भरत की छियानवे हजार, चक्रवर्ती १४. स्वयंभू : पृ० १६३-६५, स० १०, क० ५.६। २१ विबुह सिहिर : पूर्वोक्त, पृ० १४७-१४६, स० ६, १५. वीर : पूर्वोक्त, पृ. २०६.२०७, स० १०, क. क०६। २०. पुष्पदन्त : पूर्वोत, पृ० १३६, स. ८, क० १३. १६. स्वयंभू : पूर्वोक्त, पृ० २४५, स० १५, क० ११ । १७. पुष्पदन्त : जसहरचारउ, नई दिल्ली १६७२, पृ० २३. स्वयभू : पूर्वोक्त, पृ० १६३, स० १० क०५। ५६.६१, स० २, क० २४ । २४. नरसेन : पूर्वोक्त, पृ० ५६, स. २, क ८६। १८. स्वयभू : पूर्वोक्त,पृ० १६-१०१, स०६, क. २-४ । २५. नरसेन : पूर्वोक्त, पृ. ५६, स० २, क. ८.६ । १६. पुष्पदन्त : णायकुमारचरिउ, नई दिल्ली, १९७२, २६. नरसेन . पूर्वोक्त, पृ०६१.६३, स० २, ११-१२ । पृ० १२६, स० ८, क. २-४ । २७. नरसेन : पूर्वोक्त, पृ०६५, स०२, क. १२१३ । २०. उपयुक्त पृ० ११६, स०७, के ०६। २८. स्वयभू: पूर्वोक्त, प०६१, स० ४, क. १३ ।
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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