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________________ २८, बर्ष ११,कि.१ अनेकान्त हरियाणा निवासी कवि श्रीधर से, जो स्वयं अग्रवाल वश मद्योगिनीपुरे सकलराज्यशिरोमुकुटमाणिक्य मरीचिकृत में उत्पन्न हुमा था। उक्त पार्श्वनाथच रित्र की रचना चरण कमलपादपीठस्य श्रीमत् पेरोजसोहे सकल साम्राज्यकराई थी। उस समय दिल्ली और हरियाणा प्रादि नगरों धुरां विभ्राणस्य समये वर्तमाने श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये में अग्रवालों का निवास था। इसके बाद संवत् १३२६, मूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे भट्टारक रत्नकोति १३९१, १३६' की लिपि प्रशस्तियों, तथा संवत् १३६५ तरुणतरुणित्वभर्वीकूणां श्रीप्रभाचन्द्राणां तस्य शिष्य में लिखी हुई दातृ-प्रशस्ति मे 'तहि मज्झ पसद्ध उ अगर- ब्रह्मनाथ पठनार्थ प्रयोतकान्वये गोहिल गोत्र भर (मर) बाल, णामेण पउतउ रयण पालु।' अग्रवाल रत्नपाल का थल वास्तव्य परमश्रावक साधुसाउ भार्यावीरो तयो पुत्र उल्लेख किया गया है । इसके अतिरिक्त वि० स० १४१६, साधु ऊधस भार्यालोथा ही भरहपाल भार्या लोथा ही १४८६, १५१०, १५६६ प्रादि के अनेक ग्रन्थों को प्रशस्तियों श्रीभरहपाल लिखापित कर्मदायार्थ । कनकदेव पंडित में उनके लिखवाने वाले अग्रवालों का उल्लेख है :- लिखित । शुभ भूयात् । "संवत्सरेस्मिन श्री विक्रमादित्य गताब्दा: संवत् १३६१ -(जैन शास्त्र भंडार, ठोलियों का मन्दिर, जयपुर)" वर्ष ज्येष्ठ सुदि गुरुवासरे प्रथेह श्री योगिनीपुरे समसूराजा- ४. "सवत् १४८६ वर्षे पोषवदी ६ रवो दिने श्री गोपबलि शिरो मुकुट माणिक्य ग्वचित नवररमो सरचाण श्री गिरेः तोमरवंश महाराजाधिराज श्रीमत् डोगरसोदेव राज्य महम्मदसाहि नाम्नि महीविभ्रति सति प्रस्मिन राज्ये प्रवर्तमाने श्री काष्ठासंघे माथुरान्वये पुष्करगणे भट्टारक योगिनीपूरस्थिता अग्रोतकवान्यनभ. शशाक सा० महिपाल श्री क्षेमेन्द्र कीतिदेवास्तद्गुरुशिष्य श्रीमद्कोतिदेवा: तस्य पुत्र: जिन चरणकमल चंचरीक सा० सेतु, फेरा, साढा, शिष्य श्री वादीन्द्रचुडामणि महासिद्धान्ती श्रीब्रह्मसीराख्य महाराजा, तूपा, ऐते, साहलेपु पुत्र गाल्हा माजा ऐते नामदेवा । अग्रोताकान्वये मीतलगोत्र साधु श्री गल्हा साह घेरा पुत्र बी था हेमराज एते: धर्म कम्मणि सदो. भार्या खेमा तयो पुत्रः भोणी एक पक्ष।। द्वितीय पक्षा समपरेः ज्ञानावरणीकर्मक्षयाय भव्य जननां पठनाय उत्तर- अग्रोतकान्वये गर्ग गोत्र साधु श्री क्षेमधरा भार्या हरो तयो पुराण पुस्तकं लिखापितं । लिखितं गोडान्वय कायस्थ पंडित पुत्राश्चत्वारः प्रथम पुत्र देखलु. द्वितीय वील्हा, तृतीय गंधर्व पुत्र वाहड राजदेवेन । (प्रशस्ति सं० पृ.६२)।" पाल्हा, चतुर्थ भरया। देखलु भार्यारूपा, वील्हा भार्या ना ___ "सं० १३६९ फाल्गुण सदी ५ शुत्रवासरे श्रीयोगिनी- थी. साधु नाल्हा भार्या था नी, तयोः पुत्राश्चत्वारः साधु पुर सुरत्राण श्री मन्महंमद साहि राज्य प्रवर्तमाने काष्ठासघे श्रीचन्द्रा, साधु हरिश्चन्द्र सा० रना, सा० साल्हा । त्रयोदशविधि चारित्र (धारक) भट्टारकनयसेनः तस्य । चन्द्र पुत्र मेघा, स्वधर्मरत साधु श्री मर्या मीणा, शीलशिष्यः भट्टारक दुर्लभसेन तस्याध्ययनाय पुस्तकामदं प्रति- शालिनी ध र शालिनी धर्मप्रभावनी रत्नत्रयाराधिनी बाई जोगी प्रात्मक्रमणरते लिखापयित्वा दरबारचेत्यालय समीप स्थित घम क्षाथ इद परमात्मप्रकाश प्रथालखापत। अग्रोतकन्वय परमश्रावक सागिया इति पूर्वपूरुषसज्ञकेन -ठोलियों का मन्दिर जंग शास्त्र भडा', जयपुर" पाटण वास्तव्य सा० पाणा भार्याहलो प्रनयो पुत्रो दिउप इसके अतिरिक्त म० यशःकीर्ति (१४०२-१५००) ने पूना नामादो सा० पूना भार्या बीक्षा प्रतयो पत्रेण दरबार- अपने पाण्डव पुराण पोर हरिवशपुराण मे अग्रवालों का चेत्यालये पंचभ्युद्यानाय सकलसंघमाकार्य देव-शास्त्र. उल्लेख किया है । यथागुरुणा महामहं विधाय सघपूजा वस्त्रापाराधिभिः कृता "मिरि अगरवाल बमहि पहाण शास्त्रदान प्रस्तावे पच पुस्तकानि ददानि । मो सघहे वच्छलु विनयमाणु ।"-पांडव पुराण -प्रशस्तिसंग्रह, पृ० ६७" । र "तहि प्रयरवाल बसहि पहायु सिग्गिग्गनोगंगेयभाण । ___ जो रूबें णिज्जिय काम बाणु दिउचंद साहू कि उपत्तदाणु।" ३. "सं० १९४६ वर्षे सादवा सुदी १३ गुरो दिने श्री. -हरिवश पुराण १. 'सवत् १३२६ चैत्र सदि दशम्या बुधवासरे अथेह योगिनीपुरे समस्त राजाबलि समालंकृत गयासुद्दीन राज्ये प्रवस्थित अग्रोतक परमश्रावक जिनचरणकमल..." तेरापंथी बहा मदिर भंडार, जयपुर की प्रथ सूची, भाग २, ५० १४२।
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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