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________________ १३०, वर्ष ३१, किरण ३-४ अनेकांत नीने दोनों पावों में एक-एक विद्याधर पुष्पमाला वारण हैं जो त्रिशक्ति का प्रतीक है। त्रिछत्र में मोतियों की पाँच किये हए हैं । तीर्थंकर के दायें-बायें सौधर्मेन्द्र एवं ईशानेन्द्र लटकनें हैं जो पंचतत्त्वों से परे त्रिकाल ज्ञान की परिचायक चंवर धारण किये हा खडे है। प्रतिमा के तीन प्रोर की है। त्रिछत्र के नीचे सृष्टि के प्रतीक तीन पद्मों से गुम्फित पट्टियो पर अन्य तीर्थकरों की लघु प्राकृतियाँ हैं । दाहिनी त्रिछत्र है। मस्तक के पीछे अाकर्षक प्रभामण्डल धर्मचक्र ओर की पट्टी पर है एवं बाई पोर की पट्टी पर ८ प्रतिमाए के रूप मे है। है। शेष ६ तीर्थकरों की प्रतिमाएं ऊपर की प्राडी पट्टी पर स्थानक मूर्तियाँ- कलचुरिकालीन तीर्थंकरो की स्थानिर्मित थी, जो अब खंडित हो गई हैं। इस प्रकार मूल- नक प्रतिमाएँ अल्प मात्रा में प्राप्त हुई है। उपलब्ध प्रतिनायक को मिलाकर इसमे २४ तीर्थकर है। प्रतिमा की मात्रों में शातिनाथ की दो एवं महावीर की एक प्रतिमा चौकी पर दो सिंहो के मध्य मे धर्मचक्र है। सिंहों के पास है। कारीतलाई से तीर्थकर की एक अन्य प्रतिमा उपलब्ध धरणन्द्र एव पद्मावती बैठे है। उनके मस्तक पर भी सर्प- हुई है परन्तु लाछन के अभाव में उसकी पहचान संभव फण है। यह प्रतिमा १०.११वी सदी ई० की है। नही है। जैनधर्म के अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर की कारीतलाई से प्राप्त शातिनाथ की एक प्रतिमा लगभग प्रामन प्रतिमाएं कारीतलाई एव लखनादौन (सिवनी) से ३ फुट ७ इच ऊँची है। यह कायोत्गर्ग मुद्रा में खड़ी है। प्राप्त हुई है। कारीतलाई से प्राप्त प्रतिमा मे तीर्थकर प्रतिमा का मस्तक खंडित है। हृदय पर श्रीवत्म का चिह्न, सिंहासन पर ध्यानस्थ बैठ है । उनके केश धुंघराले तथा मस्तक के पीछे प्रभामण्डल, मस्तक के ऊपर विछत्र एवं उष्णीषबद्ध है तथा हृदय पर श्रीवत्म चिह्न अकित है। पुष्पमालापो से युक्त विद्याधर तथा तीर्थंकर के दायें-बाये प्रतिमा का तेजोमण्डलयुक्त ऊपरी भाग तथा वाम पार्श्व परिचारक इन्द्र आदि है। पादपीठ पर इनका लाछन मृग खंडित है। तीर्थकर के दक्षिण पाच की पट्टी पर उनके उत्कीर्ण है । चौकी पर यक्ष-यक्षी (गरुड और महामानमी) परिचारिक सौधर्मेन्द्र खड़े है तथा अन्य तीर्थकरो की चार है। पद्मासनस्थ प्रतिमाए है। उच्च चौकी के मध्य में धमचक्र बहरीबंद मे प्राप्त प्रतिमा १३ फीट ऊंची है । स्थानीय के ऊपर महावीर का लाछन सिह अकिन है। लाहन के लोग इस वनग्रा देव के नाम से पूजते है। श्याम पाषाण दोनों पाश्वों मे "क-एक मिह चित्रित है। धर्मचक्र के नीचे में निर्मित इस प्रतिमा पर क लव है जिसका भावार्थ यह एक स्त्री लेटी हुई है जिसके चरणों में पढें रहने का प्राभास है कि यह प्रतिमा महागामंताधिपति गोल्हण देव राठोर के होता है। महावीर का यक्ष मातंग अजलिबद्ध पडा है किन्तु समय मे बनी, जो कलचुरि राजा गयकर्णदेव के अधीन वहाँ यक्षी सिद्धायिका चवर लिये हुए है । दोनो ओर पूजक भी का शासक था। गयकर्ण का काल १२वी सदी ई० है । प्रदशित किये गए है। अत: इस प्रतिमा का काल १२वी सदी ई० हुमा । कलचुरिकालीन लखनादौन से प्राप्त महावीर की इस भगवान् महावीर को ४ फुट ४ इंच ४१ फुट ६ इच प्रतिमा के गुच्छकों के रूप में प्रदर्शित केशविन्यास उष्णीष- प्राकार को एक प्रतिमा जबलपुर से प्राप्त हुई है जो माजबद्ध है। उनकी दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर स्थित है। कल फिलाडेल्फिया म्युजियम ग्राफ पार्ट संग्रहालय में है। प्रशात नयन, सुन्दर भौहे, अनूठी नासिका के नीचे मन्द- १०वीं सदी ई० मे निर्मित श्याम बादामी बलुमा प्रस्तर से स्मित प्रोष्ठ मे ऐसा प्रतीत होता है मानो भगवान् महावीर निर्मित महावीर की यह नग्न प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में की प्रमृतवाणी जैसे स्फुटित होना ही चाहती है। सुगठित है। हृदय पर श्रीवत्स चिह्न अंकित है। मूर्ति के नीचे दो चिबुक, चेहरे की भव्यता एवं गरिमापूर्ण रचनाकुशल लघु पाश्वरक्षक एवं उनके सामने एक-एक भक्त घुटने के शिल्पी के सधे हाथो की परिचायक है। प्रतिमा के कर्ण भार पर बैठे हैं। महवीर के शीर्ष के प्रत्येक पार्श्व पर लम्बे है जिन पर अंकित कर्णफूल प्रति शोभायमान हो रहे गर्व का प्रकन है। तीर्थकर मस्तक के ऊपर विछत्र है। है। ग्रीवा की विरेखा, सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान एव सम्यक छत्र के किनारे दो हस्ति अंकित हैं। मूर्ति में मंकित सिंह चरित्र को प्रदर्शित करती है। सबसे ऊर्ध्व भाग पर विछत्र के कारण यह प्रतिमा महावीर की जात होती है।
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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