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________________ जैन देवकुलमें यक्षी चक्रेश्वरी ७७ की सभी भुजाए सुरक्षित है । देवी की छह भुजाओं मे बारहवी शती की एक चतुर्भुज मति कर्नाटक की कम्बड़ चक एव अन्य में शृखला से युक्त घण्ट, खेटक, वज्र, पहाड़ी स्थित शातिनाथ बस्ती के नवरग स मिली है। खड्ग, तूणीर, मुद्गर, गदा, व्याख्यान मुद्रा -अक्षमाला, गरुड़वाहना यक्षी ने प्रभयमुद्रा, चक्र, चक्र एवं पप धारण परशु दण्ड, शंख, धनुष, सर्प एवं शल प्रदर्शित है। देवी किया है। होयसलकालीन एक षट्भुज मूर्ति कर्नाटक के के शीर्ष भाग में तीन जिन मूर्तियां निरूपित है। बहुमुजी जिननाथपूर स्थित जैन मन्दिर को दक्षिणी भित्ति पर चक्रेश्वरी को ग्यारहवी शती की एक मनोज्ञमति मध्य है। यक्षी के करो मे वरमुदद्रा, वज्र, चक्र, चक्र, वन एवं प्रदेश के गोलकोट नामक स्थल से प्राप्त होती है। पत्र प्रदशित हैं। बम्बई के संण्ट जाविधर कालेज के उड़ीसा की खण्डगिरि पहाडी (पुरी जिला) को नवमुनि गफा में ग्यारहवी शती की दमभुजा पक्रेश्वरी की इण्डियन हिस्टारिकल रिसर्च इन्स्टीट्यूट संग्रहालय में एक मूर्ति है। जटाम कुट से शोभित गरुड़वाहना यक्षी सुरक्षित ऋषभमूर्ति में चकेश्वरी द्वादशभुज है। विभंग मे योगासन मुद्रा मे दोनो पर मोड़ कर बैठी है। चक्रेश्वरी खड़ो यक्षो को पाठ भुजामो मे चक्र, दो मे व ब एवं एक के सात हाथो में चक्र, दो में बटक, प्रक्षमाला एव एक में पद्म प्रदर्शित है । एक भुजा खण्डित है। द्वादशमन चक्रहाथ योगमुद्रा मे गोद में स्थित है। उड़ीसा की खण्डगिरि श्वरी की एक अन्य मूर्ति एलोग (महाराष्ट्र) को गफा पहाड़ी की वारभुजी गफा में द्वादशभुज चक्रेश्वरी को एक ३० मे देखी जा सकती है। गरुड़वाहना चक्रेश्वरी के पाच मति है। गवाहना देवी की छह दक्षिणभुजाप्रो मे वरद- प्रवशिष्ट दक्षिण करो मे पद्म, चक्र, शंख, चक्र एवं गदा मुद्रा, वज, चक, चक्र, अक्षमाला एवं खड्ग है, और तीन प्रदशत । यही को प्रदशित है। यक्षी को केवल एक हो वामभुजा सुर मन वाममजापो में खेटक, एव सनाल पद्म हैं और तीन भुजाएं क्षित है, जिसमे खड्ग स्थित है। खण्डित है। 000 पश्चिम भारत के किसी स्थल से प्राप्त लगभग दसवी डी-५१/१६४बी, सूरजकुण्ड, वाराणसी-२२१००१(उ० प्र०) शती की एक अष्टभुज मति राष्ट्राय संग्रहालय, दिल्ली (क्रमाक ६७-१५२) मे सुरक्षित है। गरुड़वाहना यक्षी सम्वभं सूची की ऊपर की छह भुजाम्रो म चक्र और अन्य दो मे वरद १. शाह, यूपी0-माइकानोग्राफी माफ चक्रेश्वरी, दि मुद्रा एवं फन प्रदर्शित है। कुभारिया (बनासकाठा, यक्षा प्राफ ऋषभनाय, जनल प्राफ दि पौरिएण्टल गुजरात) के शातिनाथ एवं गहावीर मन्दिरो (११वी शती) की छतों पर उत्कीर्ण ऋषभनाथ के जीवन दृश्यो इन्स्टीट्यूट माफ बड़ोदा, ख० २०, अ०३, मार्च मे भी चतुभु । वऋशरी निरूपित है । शान्तिनाथ मन्दिर १६७१, पृ० २८०-३११ । के उदाहरण म यक्षी वरदमुद्रा, चक्र, चक्र एव शंख से युक्त २. 'तिवारी' मारुतिनन्दन प्रसाद, 'दि प्राइकानाग्राफी है। महावीर मन्दिर के उदाहरण में "वैष्णवी देवी" के प्राफ दि जैन यक्षी चश्वगे', श्रमण (वाराणसी), वर्ष नाम से सम्बोधित यक्षी के करो में वरदमुद्रा, गदा, २७, अ० १०, अगस्त १६७५, पृ० २४-३३ । सनालपन एवं शंख प्रदशित है । गजगत एवं राजस्थान ३. शर्मा, बजेन्द्रनाथ -'अपब्लिश्ड जैन ब्रोन्जज इन दि के श्वेताम्बर स्थलो की चक्रेश्वरी मूर्ति के सन्दर्भ में एक नेशनल म्यूजियम', जर्नल ग्राफ दि प्रोरियन्टल इन्स्टी. प्रमुख बात यह है कि इस स्थलों पर यक्षो चश्वरी और ट्यूट, बड़ोदा, ख० १६, भ० ३, मार्च १६७०, पांचवी महाविद्या अप्रतिचक्रा के निरूपण में अत्यधिक पृ० २७५-७६ । समानता प्राप्त होती है। इस कारण कभी-कभी यह निश्चित करना कठिन हा जाता है कि मूर्ति यक्षो की है ४. गुप्ता, एस०पी० तथा शर्मा, बी० एन.-"गधावल, या महाविद्या की। यद्यपि लाक्षणिक ग्रंथों में दोनो के और जैन मूर्तियाँ, अनेकांत, खं० १६, म क १-२, लिए स्वतन्त्र विशेषताए वर्णित है, पर मूर्त अभिव्यक्तियो भप्रैल-जून १६६६, पृ० १३० । में उनका निर्वाह नही किया गया । ५. मित्रा, देवला-शासन देवीज इन दि खण्डगिरि दक्षिण भारत में यक्षो का चतुर्भुज, षट्भुन, प्रष्ट भज केन्स', जल माफ वि एशियाटिक सोसायटी, ख० एवं द्वादशभुज स्वरूपों में निरूपण हा है। ग्यारहवीं. म०२, १६५६, पृ० १२७-३३ ।
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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