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________________ ७६, वर्षे ३२, कि० ३-४ अनेकान्त चित्रण बहुत नियमित नहीं रहा है। साथ ही, भुजामों में मोर शख से युक्त है । शंख मोर गदा का प्रदर्शन भी दुर्लभ रहा है। इस क्षेत्र में देवगढ़ मे चक्रेश्वरी का चतुर्भुज स्वरूप सर्वाधिक यक्षो की भुजामों में बक, वन एव पद्म के प्रदर्शन में लोकप्रिय रहा है । पर यक्षी को षड्भुज, प्रष्टभुज, दशभुज नियमितता प्राप्त होती है। एव विशतिभुज स्वरूपों में भी अभिव्यक्त किया गया। चक्रेश्वरी को प्राचीनतम स्वतन्त्र मति उत्तर प्रदेश उल्लेखनीय है कि नवी (८६२ ई.) से बारहवी शती के के ललितपुर जिले में स्थित देवगढ़ (दिगम्बर) के मंदिर मध्य को चक्रेश्वरी की सर्वाधिक स्वतन्त्र मतियां देवगढ़ १२ को भित्ति से प्राप्त होती है। ८६२ ई० मे निर्मित से ही प्राप्त हुई है। अधिकांश उदाहरणों में किरीटम कुट मन्दिर सं० १२ (शान्तिनाथ मन्दिर) की भित्ति पर जन से प्रलंकृत गरुड़वाहन यक्षी के हाथो में चक्र, शंख एवं देवकुल को सभी २४ यक्षियों का प्रकन प्राप्त होता है, गदा है। बहुमुजो मूर्तियों में चक्र, शख, गदा के अतिरिक्त जो २४ यक्षियों के सामहिक चित्रण का प्रारम्भिकतम खेटक, खड्ग, परशु एवं वज्र का प्रदर्शन लोकप्रिय रहा उदाहरण है । विभग मे खड़ी चतुर्भुज चक्रेश्वरी को सभी है ।चतुर्भुज यक्षी को द्विभंग मे खड़ी एक मति मन्दिर भुजानों मे चक्र है । गरुड़वाहन दाहिने पावं मे नमस्कार १२ के मधमण्डप के स्तम्भ पर उत्कीर्ण है। यक्षी के करो मुद्रा में खड़ा है। मतिलेख में यक्षी का नाम 'चक्रेश्वरी' में वरदमुद्रा, गदा, शख एव चक्र प्रदर्शित है। षट्भ ज उत्कीर्ण है । यक्षी के निरूपण में जैन देवकल की पांचवी चक्रेश्वरी को एक मूति (११वी शती ई०) मदिर १२ महाविद्या प्रतिचक्रा के स्वरूप का अनुकरण किया गया को दक्षिणी चहारदीबारी पर उत्कीर्ण है । यक्षी वरदमुद्रा, है, जिसकी सभी भजामों में चक्र के प्रदर्शन का विधान खड्ग, चक्र, चक्र, गदा एव शंख से युक्त है। अष्टभुज रहा है। महाविद्या की धारणा यक्षी चक्रेश्वरी की अपेक्षा चक्रेश्वरी को तीन मूर्तिया है । ग्यारहवी शती की एक मति प्राचीन रही है। मन्दिर सं० १ के मानस्तम्भ पर उत्कीर्ण है, जिसमें यक्षी प्रारम्भिक दसवी शती की दो प्रष्टभुज मूर्तिया की भुजानो मे वरदमुद्रा, गदा, वाण, छल्ला, छल्ला, बज्र, मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में स्थित ग्यारसपुर के माला- चाप एवं शख है। मंदिर १४ की बारहवी शती ई० को देवी मन्दिर के शिखर पर उत्कोणं है। इनमे पक्षी के एक मूर्ति मे तीन हाथो में चक्र और शेष में दण्ड, खड्ग, प्रवशिष्ट करो मे छल्ला, वच, चक्र, चक्र, चक्र और शंख अभयमुद्रा, परशु एव शख प्रदर्शित है। प्रदर्शित है । दसवी शती की एक दशभुजा चक्रेश्वरी मनि दशभुजा यक्षी को एक मूति मन्दिर ११ के समक्ष पुरातास्विक संग्रहालय, मथुरा (क्रमांक-०० डो-६) मे के मानस्तम्भ (१०५६ ई०) पर उत्कीर्ण है ! यक्षी वरदसुरक्षित है। पद्मासन पर समभग मे खड़ो यक्षो की नो मृद्रा, वाण, गदा, खड्ग चक्र, चक्र, खेटक, वज्र, धनुष एव सुरक्षित मजागो मे चक्र स्थित है। दो से विकाग्रो से सेवित शख से युक्त है । विशतिमुज चक्रेश्वरी को ग्यारहवी शती देवी के शीर्ष भाग मे लघु जिन भाकृति उत्कीर्ण है । दिगबर को तीन मतिया प्राप्त होती है, जिनमे से दो स्थानीय स्थल खजुराहो (छतरपुर, मध्य प्रदेश) से यक्षो को दसवी साहू जैन संग्रहालय में सुरक्षित है। साहू जैन संग्रहालय से बारहवी शती के मध्य चार से दस भुजाम्रो वाली कई की एक विशिष्ट मूर्ति मे चक्रेश्वरी के साथ दो उपासको, मतिया मिली है । यहा की चतुर्भुज मूर्तियों में गदा, चक्र, चामरधारिणी सेविकामों, पद्म धारण करने वाली पुरुष शंख और प्रभयमदा (या पद्ध) प्रदर्शित है । घण्टई मन्दिर प्राकृतियो, उडडीयमान मालाघरों एवं ऊपर की भोर (१०वी शती) के प्रवेश द्वार पर चक्रेश्वरी की प्रष्टभुज जैन यक्षी पद्मावती और सरस्वती को भी मामूर्तित किया मति निरूपित है। यक्षी के हाथों मे फल, घण्ट, चक्र, गया है। चक्रेश्वरी की केवल सात ही भुजाए सुरक्षित हैं, चक्र, चक्र, चक्र, धनुष एवं कलश है। पार्श्वनाथ मन्दिर जिनमे चार में चक्र और अन्य में वरदाक्ष, खेटक और शख (८५४ ई.) के प्रवेश द्वार की मूर्ति मे दशभुजा यक्षी प्रदर्शित है। संग्रहालय को दूसरी मूर्ति मे चामरघारिणी बरद, खड्ग, गदा, चक्र, पप, चक्र, धनुष, फलक, गदा सेविकामो एव उड्डीयमान मालाधरों से युक्त चक्रेश्वरी
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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