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________________ जैन देवकुल में यक्षी चक्रेश्वरी Dहा. मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, वाराणसी हिन्दू एव बौद्ध धर्मों के समान ही जैन धर्म भीभारत को शासनदेवता के रूप में नियुक्त किया था। जैन ग्रंथ का एक प्रमुख धर्म रहा है । जैन धर्म का अस्तित्व लगभग हरिवंश पुराण (८वी शती) के ६६वें सर्ग में स्पष्ट पाठवीं शती ई०पू० में २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथ के समय उल्लेख है कि २४ जिनो के निकट रहकर उनकी सेवा में स्वीकार किया जाता है। कुछ विद्वान् सिन्धु सभ्यता करने वाले शासन देवता सज्जनो का हित और शुभ कार्यों (लगभग ३००० ई० पू०) मे जैन धर्म का अस्तित्व ~ की विघ्नकारी शक्तियो, ग्रह. नाग, भूत, पिशाच, राक्षस-- प्रतिपादित करते है, जिसे निर्णायक प्रमाणों के अभाव मे को शान्त करते है । यक्ष-यक्षी युगलों को जिन मतियो के स्वीकार नहीं किया जा सकता। जैन देवकुल म २४ मिहामन या सामान्य पीठिका के दाहने और बायें छोरो तीर्थकरों (या जिनो) को सर्वोच्च महत्ता प्रदान की गई। पर निमपित किया गया है । लगभग नवी शती ई० से इन्हें देवाधिदेव कहा गया। जैन देवकुल के अन्य सभी यक्ष एवं यक्षी की स्वतन्त्र मूर्तियाँ प्राप्त होने लगती है । देवताओं को किसी न किसी रूप में जिनो से चवरी (या अप्रतिचका) प्रथम जिन प्रादिनाथ उनके सहायक के रूप मे संबद्ध किया गया । छठी से दसवी (या ऋषभनाथ) की यक्षी है । चक्रेश्वरी जैन देवकुल की शती ई. के मध्य तात्रिक प्रभाव के फलस्वरूप सभी धर्मों चार सर्वाधिक लोकप्रिय यक्षियों में एक है। अन्य यक्षिया ti में नवीन देवतामों को सम्मिलित कर देवकुल का विस्तार विका, पदमावतो और सिद्धायिका है, जो क्रमशः २२वें, किया गया । जैन देवकूल में वृद्धि की यह प्रत्रिया छठी शती २३वें एवं २४वें तीर्थंकरो नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एव महाई. में प्रारम्भ हुई और तेरहवी-चौदहवी शती ई. तक वीर की यक्षिया है। जैन चक्रेश्वरी के स्वरूप पर विष्णु चलती रही। छठी शती ई. में जिनो के साथ उपासक की शक्ति वैष्णवी (या चक्रेश्वरी) का स्पष्ट परिलक्षित देवतामों के रूप में यक्ष-यक्षी युगलों को सश्लिष्ट किया होता है। जैन लाक्षणिक प्रथो मे यह प्रभाव देवी के गया, जिनकी उपासना से मनुष्य अपनी भौतिक आकां- गरुड़वाहन एवं भुजा में चक्र के प्रदर्शन के सन्दर्भ मे देखा क्षानों की पूर्ति कर सकता था। उल्लेखनीय है कि वीत- जा सकता है। रागी जिनों की उपासना से सासारिक सुख-समृद्धि की परन्तु मूर्त कनो मे यह प्रभाव गरुड़वाहन और प्राप्ति संभव नही थी। भजायो मे चक्र के अतिरिक्त, शख और गदा के प्रदर्शन पाठवी-नवी शती ई० में, श्वेताम्बर एव दिगम्बर के सन्दर्भ में भी प्राप्त होता है। हिन्दू देवी वैष्णवी के परम्परा के ग्रन्थों में प्रत्येक जिन के साथ एक स्वतन्त्र लाक्ष- प्रभाव का स्पष्ट सकेत कुमारिया (गुजरात) के महावीर णिक स्वरूपों का निर्धारण दसवी-ग्यारवी शती ई० यक्ष यक्षी जैन मन्दिर की छत पर उत्कीर्ण चक्रेश्वरी की मति मे युगल की कल्पना की गई। इन यक्ष-यक्षी युगलो मे स्वतन्त्र देखा जा सकता है । मूर्ति लेख मे जैन यक्षी को 'वैष्णवी' में हुमा । यक्ष यक्षी युगल जिनों के चतुर्विध सघ के शासन देवी कहा गया है । विष्णुधर्मोत्तर पुराण, रूपमण्डन एव एव रक्षक देव होते है । जैन मान्यता के अनुसार केवल देवपुराण जैसे ब्राह्मण ग्रथो मे किरीटम कुट से शोभित ज्ञान प्राप्त होने के बाद सभी जिनो ने अपना प्रथम उपदेश ___ गडवाहन वैष्णवी की भुजानो मे शख, चक्र, गदा एव देवनिर्मित सभा (ममवसरण) मे दिया था और उसी पद्म के प्रदर्शन का निर्देश दिया गया है। सभा मे इन्द्र ने प्रत्येक जिन के साथ एक यक्ष-यक्षी युगल इसी प्रसग में यह उल्लेख मावश्यक है कि हिन्दू प्रभाव
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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