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________________ बा जिनवास और उनकी हिन्दी साहित्य को बैन रास' का रचनाकाल सं० १५२० हैं। इनके अतिरिक्त इनके अतिरिक्त अन्य किसी गुरु का उल्लेख नहीं मिलता। स्वयं कवि ने अन्यत्र किसी भी काल सवत् का उल्लेख अपने इन दोनों गुरुपों के प्रति ब्रह्म जिनदास की प्रगाढ़ नही किया है। परन्तु 'पद्मा' नामके कवि ने अपने भक्ति एव प्रसीम श्रद्धा थी। अपने उद्धार के लिए कवि 'वर्द्धमान रास' की रचना मे 'ब्रह्म जिनदास' की सहायता ने अनेक स्थानों पर अपने गुरु से अपनी दीक्षा की याचना का उल्लेख किया है। इस रास का रचनाकाल सं० की है । 'गुरु जयमाल' नामक १४ पद्यों की लघु-रचना में १५१६ दिया गया है। इसी प्रकार, गजवासौदा (म०प्र०) गुरु का स्तवन किया गया है। के बूढ़ेपुरा के जैन मन्दिर मे ब्रह्म जिनदास के उपदेश ब्रह्म जिनदास एक साथ विद्वान, संत एवं कवि तीनों से प्रतिष्ठित स० १५१६ की मूर्ति प्राप्त हुई है।' ही थे। उनका अधिकाश समय प्रात्म-साधना के अतिरिक्त इन सबसे कवि का समय वि० स. १४६० से वि० स० अध्ययन एव अध्यापन मे व्यतीत होता था। उन्होने अपने १५२० तो सुनिश्चित है । मूर्ति का लेख इस प्रकार है- शिष्यों को हिन्दी एव संस्कृत का ज्ञान कराकर उनमे धर्म एव साहित्य के प्रति रुचि जागृत की और साहित्य-सजन ''स० १५१६ माघ सुदी ५ श्री मूलसघे भ० को प्रेरणा दी। उनके सन्तत्व, विद्वत्ता एवं कवित्व से सकलकीतिदेव: तच्छिष्य ब्रह्मश्रीजिनदासस्य उपदेशात् ब्र० उनके सम-सामयिक विद्वान, श्रावक-श्राविकाए एवं शिष्य. मल्लिदाम जोगडा पोरवाड साहु नाऊ भार्या नेइ भ्राता गण प्रभावित हए। उनकी रचनामों की भिन्न-भिन्न घणा भार्या हर्षी नित्यं प्रणमति ।" कालों एव स्थानो पर की गई प्रतिलिपिया इस तथ्य की इससे प्रतीत होता है कि ब्रह्म जि नदास प्रतिष्ठाचार्य साक्षी है। भी थे । वैसे भट्टा. सकलकीति के मान्निध्य मे उन्होने जहा तक उनके शिष्य-सम्प्रदाय का सम्बन्ध है, हमे कई प्रतिष्ठानो म भाग लिया। इनके समय में भट्टा० अभी तक उनके छ. शिष्यो की जानकारी मिली है। उनके सकलकीति द्वारा प्रतिष्ठित प्रनेको प्रतिमाए उदयपुर, हरिवंश पुगण वी प्रशस्ति मे मनाहर, मल्लिदास एव गुण. डगरपुर आदि स्थानो में मिलती है और अपने समय दास इन तीन शिष्यो का तया परमबम राम में ने मिदास का के श्रावको को जिनालयो के निर्माण एवं जीर्णोद्धार की तथा एक अन्य कृति मे शान्तिदाम का उल्लेख मिलता है। प्रेरणा दी। रामसीता राम के कर्ता गुण-कीति भी इन्ही के शिष्य ब्रह्म जिनदास ने अपने सभी काव्यो के प्रारम्भ एव थे। चारुदत्त रास मे डा. मल्लिदास एवं नेमिदास का प्रत में अपने गुरु भट्टा• सकलकीर्ति एवं भट्टा० भुवन- उल्लेख है। कीति का बही ही प्रादर-भावना से गुण-गान किया है। महाकवि ब्रह्म जिनदास अपने गुरु एव अग्रज भट्टा १. संवत पन्नर अठोतरा, मानसिर मास विसाल । ४. श्री सकलकीरति पाय प्रणमीन, शुक्ल पक्ष चउदिसि दिनी, गस कियो गुणमाल ॥ मुनि भुवन कीर्ति गुरु चग । -रामरास, ॥६॥ चारुदत्त गुण वशणवं. सवत पनर वीसोतरे, वंशाख मास वीशाल । ब्रह्म जिणदास भणे मन रग ॥१॥ चारुदत्त रास । सुकल पक्ष चौदस दिने, रास कियो गुणमाल ।। ५. शीष्य मनोहर रूवड़ा, ब्रह्म मलिदाग गुणदास । - हरिवंश रास, ॥६॥ पढ़ो पढावो बहु भाक्स, जिम होय मौरव्य निवास ।। ॥४॥ रामरास । २. वर्द्धमान रास : पदमा कवि-मामेर शास्त्र भण्डार, ब्रह्म जिनदास शिष्य निरमला, नेमिदास सुविचार ।। जयपुर। --परमहंस रास ३. अनेकान्त :५० परमानन्द शास्त्री, वर्ष २४, किरण ६. राजस्थान के जैन सन्त : ५, पृ० २२७ । डा. कस्तुरचन्द कासलीवाल, पृ. १८६ ।। -परमह
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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