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________________ भरत और भारत श्री गणेश प्रसाद जैन, वाराणसी "भरत" नाम के कई महापुरुष इस पुण्य-भूमि 'भारत- सूर्य-वश, सूर्य-कुल मादि उपाधियों से विभूषित, प्रख्यात देश' मे हुए है। किन्तु जिस महामानव 'भरत' के नाम पर तथा इस देश का मूल निवासी है। अयोध्यापति, "सुदास', इस देश का नाम 'भारत' प्रख्यात हुमा, जिसका वेदों में 'सुहास' व भरत नाम भी मिलता है, सूर्य वह 'भरत' प्राग-ऐतिहासिक-काल में हुमा है। वह वंशी और इस 'प्राग-कालिक' भरत का वशज है। इसी जैन धर्म के प्रवर्तक, प्रादि-तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के एक सो 'सुदास' का युद्ध चद्रवंशीय राजा 'पुरु', जिसकी राजधानी पत्रों में ज्येष्ठ थे । वह चक्रवर्ती, महान् प्रतापी, महापरा 'प्रयाग' (झसी) में थी, हुमा था। इस युद्ध का वर्णन क्रमी महायोगी, महातपस्वी मोर ब्रह्मज्ञाना थ । मद तानु- "देवासर-संग्राम" अथवा "देवराज-युद्ध" के नाम से वंदिक भति अत्यन्त तीव्र होने से प्राचीन वैदिक ग्रन्थों में जह. मोगा । भरत के नाम से उनका कथन है। 'ऋग्वेद' प्रादि में जिन ऐल या चंद्रवंश--महाराजा 'इक्ष्वाकु' के समय के 'भरतों' का बारम्बार उल्लेख है, वे उक्त भरत के हो लगभग ही 'मध्य-प्रदेश' का एक प्रतापी राजा था, जो मानव वंशज हैं। वश का नही था, उसका नाम 'पुरुरवा' ऐल था। उसकी ज्य राजधानी प्रतिष्ठान अथवा प्रतिष्ठानपुर' प्रयाग के सामने और पाश्चात्य विद्वानों को भ्रम हुमा है, और देश के नाम भंसी के पास थी। वहाँ माज भी 'पहिन' नाम का एक का सम्बन्ध प्रर्वाचीन चंद्रवंशीय दुष्यन्त-पुत्र 'भरत' के माँव है। उसे ही 'प्रतिष्ठान' का ठीक स्थान माना गपा नाम से जोड़कर इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों मे पाठ्य-रूप है। प्रचलित कर दिया गया है, जिसके कारण एक गलत पर ___'पुरुरवा' की रानी 'उर्वसी' मप्सरा थी। उसका वंश म्परा का विकास हो रहा है ! 'चंद्र पथवा ऐल' कहलाता था। 'ऐल वंश' ने शीघ्र ही अनेक विद्वानों ने अपनी शोधस्वरूप उक्त भ्रांति का बड़ी उन्नति की प्रौर दूर-दूर के प्रदेशो तक अपना राज्य निराकरण करते हुए, ठोस प्राचीन-साहित्यिक प्रमाणो से स्थापित किया था। 'प्रतिष्ठान' वाले मुख्य वश मे 'पुरुरवा' सिद्ध कर दिया है कि-"दुष्यन्त-पुत्र चंद्रवंशीय था। इस का पौत्र 'नहष' हुमा और नहुष का 'ययाति'। (सूर्य 'भरत' से १५०० वर्षों (पन्द्रह सौ वर्षों) के पूर्व से (इस) वंश में भी नहुष-पुत्र ययाति हुमा है।) 'ययाति' के भ्राता देश का नाम 'भारत' संसार में प्रख्यात हो चुका था।" ने नीचे की ओर गंगा के तट पर वाराणसी' 'प्राग-ऐतिहासिककाल' से ही इस भारत देश की राज्य की स्थापना की। बाद में उसके वंशज राजा' काश' भूमि पर 'भरत' अथवा 'भारत' नाम की एक जाति बसती के नाम पर वह 'काशी-राज' कहा जाने लगा। थी। उस भारत अथवा भरत जाति का सम्राट् (चक्रवर्ती) चद्रवशीय 'ययाति' के पांच पुत्र-१. यदु, २. तुवंस, 'भरत' 'सूर्यवंशीय' था और उसी भरत के नाम पर इस ३. हय, ४. अनु और ५. पुरु थे। 'पुरु' के पास प्रतिष्ठान भूमि का नामकरण भारत हा है। 'ऋग्वेदादि' प्राचीन का राज्य था। उसके वंशज पौरव कहलाए। महाभारत तम साहित्य इसी "भरत-जाति" को स्मृति मे प्रथित के उद्योग-पर्व (१४६३) मे वणित है कि-"समः प्रजा पतिः पूर्व कुरूणां वंशवर्धनः।" इस बाक्य से स्पष्ट है पादि सम्राट् (चक्रवर्ती) भरत का वंश इक्ष्वाकुवंश, कि-"कौरव-वंश" का प्रणेता 'सोम' का ५वां पु
SR No.538031
Book TitleAnekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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